राजस्थान में कांग्रेस के भीतर जिस तरह का परोक्ष युद्ध मुख्यमन्त्री अशोक गहलोत व पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व उप-मुख्यमन्त्री रहे श्री सचिन पायलट के बीच पिछली भाजपा की वसुन्धरा राजे सरकार के भ्रष्टाचार को लेकर चल रहा है उससे वर्तमान सरकार की प्रतिष्ठा पर ही गहरा आघात तब लग रहा है जब राज्य विधानसभा चुनावों में मुश्किल से आठ महीने का समय भी शेष नहीं रहा है। इस आपसी रंजिश से पूरे देश में विपक्षी पार्टी कांग्रेस के बारे में जो सन्देश आम जनता में जा रहा है वह यह है कि इस पार्टी के भीतर अपने ही नेताओं को अनुशासित रखने की क्षमता नहीं है। एक तरफ राष्ट्रीय स्तर पर 2024 के आसन्न लोकसभा चुनावों को देखते हुए जब कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खड़गे विभिन्न विपक्षी दलों के बीच एकता व साझा मंच तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं तो श्री पायलट के इस कृत्य को निश्चित रूप से अपनी पार्टी को ही नुक्सान में कहलाने वाला माना जायेगा। उन्होंने अपनी ही सरकार के खिलाफ एक दिन का धरना भी दिया जो इस मांग पर था कि उन्होंने वसन्धरा राजे के कार्यकाल के कथित भ्रष्टाचार के बारे में मुख्यमन्त्री गहलौत को दो पत्र लिखे जिनका उन्हें उत्तर तक नहीं मिला जबकि विगत विधानसभा के चुनाव प्रचार के दौरान ये मुद्दे प्रमुखता के साथ उठाये गये थे।
मुख्य सवाल यह है कि श्री पायलट एेसा करके सिद्ध क्या करना चाहते हैं और उन्होंने यह काम कांग्रेस पार्टी के विभिन्न मंचों पर ही क्यों नहीं किया? यदि वह एेसा करते तो निश्चित रूप से उन्हें मुख्यमन्त्री की तरफ से सन्तोषजनक उत्तर मिल सकता था मगर लगता है उनका लक्ष्य राजस्थान की आम जनता के बीच अपने ही मुख्यमन्त्री गहलोत की लोकप्रिय छवि पर प्रहार करने का है जिसका लाभ निश्चित रूप से उनकी पार्टी की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा लेना चाहेगी। श्री पायलट कांग्रेस के उदीयमान नेता माने जाते हैं। वह स्वर्गीय राजेश पायलट के पुत्र हैं जो उनकी बहुत बड़ी विरासत है मगर ध्यान यह भी रखना होगा कि स्व. पायलट उस कांग्रेस पार्टी की भी धरोहर हैं जिन्होंने उन्हें वायुसेना की नौकरी छोड़ कर राजनीति में आने का अवसर दिया था और उनकी योग्यता के अनुसार उन्हें पार्टी व सरकार में रुतबा बख्शा था लेकिन लगता है कि श्री पायलट राजनीति में सब कुछ बहुत ही जल्दी पा लेना चाहते हैं तभी तो वह अशोक गहलोत सरकार द्वारा पिछले चार साल से अधिक समय के दौरान प्राप्त की गई उपलब्धियों की जगह उन मुद्दों पर जोर दे रहे हैं जिससे श्री गहलोत विरोधी पार्टी भाजपा व मतदाताओं की निगाहों में असफलता के लिए भी जिम्मेदार ठहराये जा सकें जबकि श्री गहलोत ने हाल ही में स्वास्थ्य के अधिकार को राजस्थान के नागरिकों का मूल अधिकार बना कर पूरे देश में एक नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया है और अन्य राज्य सरकारों के सामने भी चुनौती फेंक दी है।
श्री गहलोत की सबसे बड़ी योग्यता यह है कि वह एक सामान्य कार्यकर्ता से अपने श्रम व दूरदृष्टि के बातें कर राजस्थान के सर्वमान्य नेता बने हैं और समाज के सभी समुदायों व सम्प्रदायों से लेकर सभी वर्गों में उनकी स्वीकार्यता एक-समान है। श्री पायलट को सबसे पहले यह योग्यता प्राप्त करनी होगी तभी उनके दावों में कोई विश्वसनीयता आ सकती है। देश का हर प्रबुद्ध नागरिक जानता है कि कांग्रेस के भीतर आन्तरिक लोकतन्त्र की कमी नहीं है। कोई भी नेता अपने विचार पार्टी मंचों पर खुले तौर पर रख सकता है। इसकी एक लम्बी विरासत है जो कांग्रेस के 137 साल पुराने इतिहास से जुड़ी हुई है। अतः यह बेवजह नहीं है कि राजस्थान के कांग्रेस प्रभारी महासचिव ने कहा कि उनके सामने एक बार भी श्री पायलट ने न तो अपने दो पत्रों का जिक्र किया और न ही कभी उनसे वसुन्धरा सरकार के भ्रष्टाचार के बारे में बातचीत की। अब यह कांग्रेस आलाकमान को सोचना है कि वह पायलट के बारे में क्या रुख अपनाता है। यह तथ्य हमेशा ध्यान रखना होगा कि 2013 के विधानसभा चुनाव राष्ट्रीय राजनीतिक पटल पर श्री नरेन्द्र मोदी के उबरने के बाद हो रहे थे और श्री मोदी भाजपा की तरफ से प्रधानमन्त्री पद के दावेदार के तौर पर पेश कर दिये गये थे। इसकी वजह से पूरे देश में भीतर ही भीतर मोदी लहर चल पड़ी थी और राजस्थान के विधानसभा के 2013 के चुनावों में यहां के मतदाताओं ने भाजपा के पक्ष में ‘मोदी’ को ही वोट दिया था। जिस वजह से कांग्रेस की 120 सीटें घटकर केवल 21 रह गई थीं। मगर इसके बाद 2018 के विधानसभा चुनाव 2013 में जयपुर में काबिज हुई भाजपा की वसुन्धरा राजे सरकार के कार्यकाल के गुण-दोष के आधार पर हुए थे। जिसकी वजह से कांग्रेस की 98 के लगभग सीटें थी। इसमें कांग्रेस के सभी नेताओं का योगदान था और विशेषकर श्री गहलोत का योगदान था क्योंकि वसुन्धरा राजे के शासन में ही लोग गहलोत के शासन के पिछले दिनों को याद करने लगे थे। अतः श्री पायलट को आत्मालोचन भी करना होगा और स्वयं ही अपनी हैसियत को आंकना होगा और तब अपनी ‘उड़ान’ की सीमा तय करनी होगी।