PM Modi in Varanasi : जब वाराणसी में मुस्लिमों ने मोदी पर फूल बरसाए!

PM Modi in Varanasi : जब वाराणसी में मुस्लिमों ने मोदी पर फूल बरसाए!
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PM Modi in Varanasi: जिस समय प्रधानमंत्री की पदयात्रा काशी के बाजारों से गुजर रही थी तो उसमें कुछ मुस्लिम बहुल क्षेत्र भी थे, जहां से उनके ऊपर लगातार फूल बरसाए जा रहे थे। मुसलमानों की भी कमी नहीं है जो मोदी जी को दिल से तस्लीम कर चुके हैं। वहीं जहां भारत का मुस्लिम जानता है कि उसका और बिरादरान-ए-वतन हिन्दुओं का डीएनए एक है व वह अरब, ईरान, तुर्की आदि से नहीं अाया है। आज का मुसलमान और विशेष रूप से कश्मीरी मुसलमान यह समझ गया है कि उसके लिए हिन्दुस्तान से बेहतर मुल्क और हिंदू से अच्छा दोस्त कोई नहीं है। ठीक इसी प्रकार से हिंदू भी जानते हैं कि अ​िधकतर भारतीय मुस्लिम संस्कारी और राष्ट्रवादी हैं।

कुछ तो प्रारंभ से ही उन्हें चाहते हैं और कुछ ने अपनी सोच को "हिंदू-मुस्लिम" (अर्थात् हिंदू घटा मुस्लिम) के प्राचीन दंभ से निकाल कर "हिंदू+मुस्लिम" (अर्थात् हिंदू जमा मुस्लिम) के दायरे में दाख़िल किया है, जिसका जीता जागता उदाहरण है, पद, पदक, प्रतिष्ठा, पोजीशन, पैसे और पेमेंट की वीभत्स राजनीति से कोसों दूर, इक़बाल अंसारी का। अयोध्या में अपनी पत्नी के साथ वे प्रधानमंत्री के राम मंदिर के रास्ते में, यह बोर्ड लेकर खड़े हो गए, ''हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के परिवार का हिस्सा हैं ।'' इक़बाल अंसारी वास्तव में उन हाशिम अंसारी के बेटे हैं, जिन्हाेंने बाबरी मस्जिद के लिए मुकदमा लड़ा और जिनकी नेम प्लेट पर आज भी लिखा है, "बाबरी मस्जिद लिटिगेंट", यानि बाबरी मस्जिद का मुकदमा लड़ने वाले। बाद में फिर उनकी समझ में आ गया की सैंकड़ों सालों से टाट के नीचे विराजे रामलला को उनका अधिकार प्राप्त होना चाहिए।

भारत के चीफ़ इमाम, मौलाना उमैर अहमद इल्यासी, जो कि राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में पधारे थे, वहां से उनका इन्सानियत का संदेश पूर्ण विश्व में गया कि दुनिया में सबसे अच्छा धर्म इन्सानियत है और जिस देश में भी मुस्लिम रहते हैं, वह सर्वोपरि है, जिसके लिए उनके विरुद्ध कई फतवे सादिर कर दिए गए थे, मगर इस्लाम के संदेश, "हुब्बूल वतनी, निस्फुल ईमान", (मुसलमान के लिए आधा ईमान, वतन से मुहब्बत) वहां से सभी को उन्होंने दिया। डा. मोहन भागवत, सरसंघ चालक, आरएसएस ने सदा से ही मुस्लिमों के प्रति आदर व अच्छी भावना रखी है और कहा कि बिना उनके सहयोग के भारत की कल्पना नहीं की जा सकती और मुस्लिमों को तो उन से लिपट और चिपट जाना चाहिए कि वे हुक्म दें और मुसलमान आगे बढ़ कर ग्रेनेडियर अब्दुल हमीद और ब्रिगेडियर मुहम्मद उस्मान की तरह देश पर न्यौछावर होने को तैयार हैं, भले ही सामने चीन हो या पाकिस्तान।

मोदी ने सदा मुस्लिमों के लिए कहा कि वे उनके एक हाथ में कंप्यूटर और एक में क़ुरान देखना चाहते हैं और यह कि वे मुस्लिमों के साथ बराबरी का सुलूक करना चाहते हैं, यही कारण है कि उन्होंने आते ही विज्ञान भवन में विश्व सूफ़ी समागम किया और अल्लाह ने 99 नामों का बखान कर विश्व के दूर, दूर के कोनों से आए सूफियों को गद-गद कर दिया। लेखक, जोकि दूसरी पंक्ति में बैठा था, से अगली अगली अर्थात प्रथम पंक्ति में सूडान से आए एक सूफी ने तो "आई लव यू मोडी।" का वजीफा ही पढ़ना शुरु कर दिया था। क्या शेर
''मुझे सुकून मिलता है मेरी आजान से मेरा देश सुरक्षित है गीता के ज्ञान से''

सच्चाई यह है कि भारत में ऐसे मुसलमानों की कमी नहीं है, जिनके लिए मोदी मसीहा हैं। पिछले वर्ष जब एक मुस्लिम कारीगर शाह रशीद अहमद कादरी को पद्मश्री सम्मान प्राप्त हुआ तो उन्होंने राष्ट्रपति भवन में ही प्रधानमंत्री को यह कह कर गद-गद कर दिया कि उन्होंने कादरी को गलत साबित कर दिया। पीएम ने पूछा, "क्यों?" तो क़ादरी ने कहा-इतने वर्ष में जब कांग्रेस के राज में मुझे पुरस्कार नहीं मिला तो भाजपा क्यों एक मुसलमान को सम्मान देगी। मगर आपने मेरी मानसिकता को ग़लत साबित कर दिया कि इस सरकार में सभी का ​भेदभाव के बिना सम्मान किया जाता है। कोई तो बात है कि सात मुस्लिम देशों ने प्रधानमंत्री मोदी को अपने-अपने देश के सर्वश्रेष्ठ सम्मान से नवाजा है, जो विश्व के इतिहास में किसी का मुकद्दर नहीं।

यह अलग बात है कि मोदी की दिल से तारीफ़ से कुछ कट्टरपंथी विचारधारा वाले लोगों के दिलों पर सांप लौट गया और कादरी को मोदी भक्त, चाटुकार, खुशामदी आदि कहने लगे। प्रायः ऐसा देखने में आता है कि जो व्यक्ति भी मोदी, भाजपा, संघ, विहिप आदि से बिना किसी निजी लोभ-लालच के संबंध बना के रखता है, वह कट्टरपंथी तत्वों की आंखों में खटकने लगता है, उस पर किस्म-किस्म से प्रहार किया जाता है और प्रताड़ित किया जाता है। प्रायः मुस्लिम समाज में उसे गद्दार-ए-कौम का तमगा दिया जाता है, जो कहीं से कहीं तक मुनासिब नहीं, क्योंकि राजनीति में कोई अछूत नहीं होता।
हम दशकों से भारतीय चुनाव देखते चले आ रहे हैं और यह भी भली-भांति जानते हैं कि चुनाव से पूर्व किस प्रकार से सभी राजनीतिक पार्टियां "तेरे-मेरे मुस्लिम" शुरू कर देती हैं। भारत अपने अमृत महोत्सव में है, मगर कैसा अमृत महोत्सव, क्योंकि 1947 में भारत आज़ाद थोड़े ही हुआ था, उसे तो अंग्रेजों द्वारा प्रदान की गई "डोमीनियन स्टेटस" प्राप्त हुआ था, जो पूर्ण आज़ादी न हो कर अधूरी आज़ादी थी।

हां, सफ़ेद अंग्रेज़ों के स्थान पर काले अंग्रेज़ों ने सत्ता पर कब्ज़ा कर मुसलमानों को हिंदू महासभा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जनसंघ आदि से यह कह कर भयभीत करना शुरू कर दिया कि संघी राज में आ गए तो सभी मुस्लिम काटे जाएंगे, जो कि बिल्कुल निराधार है और जिसको भाजपा के दस वर्ष ने भी साबित कर दिया कि इस प्रकार का ज़हर वही लोग फैला रहे हैं, जो विदेशों में कुछ फाउंडेशनों व जॉर्ज सोरोस आदि एेसे संगठनों से जुड़े हैं और देश को साम्प्रदायिक दंगों की आग में झोंकना चाहते हैं। इनसे मुस्लिमों को सतर्क रहना होगा क्योंकि भारत को छिन्न-भिन्न और विभाजित करने के लिए ये तत्पर हैं और कभी शाहीन बाग, कभी सीएए, एनआरसी आदि मुद्दों से मुस्लिमों को बहलाना, फुसलाना, लटकाना, झटकना, भड़काना और भटकाना चाहते हैं ताकि भारत वर्ष को विश्व गुरु और प्रधानमंत्री मोदी को विश्व शांति नोबेल सम्मान प्राप्ति से रोका जा सके।

मुस्लिम सभी भारत विरोधी तत्वों से दूर रहें और चुनाव के समय इस प्रकार के दुष्प्रचार से बचें कि मुसलमान उसी प्रत्याशी को वोट दें, जिस में भाजपा के प्रत्याशी को हराने की क्षमता हो। इससे हुआ यह है कि भाजपा के वोट तो इकट्ठे हो गए और मुस्लिम वोट बंट गए। इस बात ने भाजपा को ऐसे ही मज़बूत किया है जैसे राहुल गांधी के बचकाना बयानों ने। मुसलमानों को चाहिए कि इन बातों से बचें और भारत माता को सर्वोपरि मानें।

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