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‘गजवा-ए-हिन्द’ के जहरीले नाग

यह संयोग नहीं है कि भारत की आजादी के 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं जिसे हम अमृत महोत्व के रूप में मना रहे हैं और इसी वर्ष में पूरे देश में ‘गजवा- ए-हिन्द’ की इस्लामी तहरीक शुरू करने के सबूत बिहार पुलिस के मिल रहे हैं ।

यह संयोग नहीं है कि भारत की आजादी के 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं जिसे हम अमृत महोत्व के रूप में  मना रहे हैं और इसी वर्ष में पूरे देश में ‘गजवा- ए-हिन्द’ की इस्लामी तहरीक शुरू करने के सबूत बिहार पुलिस के मिल रहे हैं । हमे भूलना नहीं चाहिए कि जब 1947 में कम से कम दस लाख लोगों की लाशें बिछा कर और 20 लाख के लगभग लोगों को घर से बेघर करके पाकिस्तान का निर्माण भारत के दोनों हाथों (पंजाब व बंगाल) को काट कर किया था तो मुहम्मद अली जिन्ना की जहरीली जहनियत के शिकार मुस्लिम बंधुओं ने यह नारा लगाया था कि ‘लड़कर लिया है पाकिस्तान-हंस कर लेंगे हिन्दुस्तान’। इस नारे के पीछे कुछ और मंशा नहीं थी बल्कि वह ‘गजवा-ए-हिन्द’ ही थी।  बिहार पुलिस को जो दस्तावेज कुछ कट्टरपंथी इस्लामी जेहादियों के घरों व दफ्तरों से मिले हैं उनमें गजवा-ए-हिन्द को अंजाम देने की पूरी तफसील लिखी हुई है कि किस तरह आजादी के 100वें साल 2047 तक पूरे भारत को ‘इस्लामी मुल्क’ बनाने का सपना पूरा किया जायेगा और ‘डरपोक’ हिन्दुओं को घुटनों पर लाकर उनका  धर्म परिवर्तन करके उन्हें इस्लामी मुल्क को तस्लीम करने के लिए मजबूर कर दिया जायेगा। 
बिहार की फुलवारी शरीफ पुलिस ने इस मामले में अभी तक छह लोगों को गिरफ्तार किया है और 26 के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज की है जिनमें झारखंड पुलिस का एक पूर्व इंस्पेक्टर भी शामिल है। इसके साथ ही अधिकतर लोग ‘पापुलर फ्रंट आफ इंडिया’जैसी उग्रवादी पार्टी के सदस्य हैं जिनका पहले सम्बन्ध प्रतिबन्धित आतंकवादी संगठन सिम्मी से भी था। मूल प्रश्न यह है कि आजाद व धर्मनिरपेक्ष तथा दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र कहे जाने वाले भारत में इस प्रकार की जेहादी मानसिकता कैसे और किस तरह फैल रही है जबकि भारत के मुसलमानों को हिन्दू नागरिकों से भी ज्यादा मौलिक अधिकार प्राप्त हैं (मुसलमानों को छूट है कि वे अपने घऱेलू सामाजिक मामलों में अपने धार्मिक कानून शरीया का पालन कर सकते हैं)। बिहार पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गये सभी नागरिक मुस्लिम हैं और वे गजवा-ए-हिन्द के नाम से बनाये गये एक ‘व्हाट्स एप ग्रुप’ के सदस्य हैं। इस ‘ग्रुप’ में कुल 181 सदस्य हैं जिनमें पाकिस्तान से लेकर यमन व अन्य इस्लामी देशों के लोग शामिल हैं। इन देशद्रोहियों का मानना है कि यदि भारत के दस प्रतिशत मुसलमान भी उनके साथ आ जायें तो वे ‘गजवा-ए-हिन्द’ को सर अंजाम दे सकते हैं। परन्तु यह घटना हम अलग-थलग रख कर नहीं देख सकते हैं क्योंकि जिस तरह अजमेर शरीफ की प्रसिद्ध दरगाह के खादिमों ने  हिन्दुओं के विरुद्ध मुहिम छेड़ी है उससे अन्दाजा लगया जा सकता है कि मुस्लिम धर्म के कथित धर्मोपदेशकों के दिलों में किस कदर जहर भरा हुआ है। 
दरगाह की इन्तजामिया कमेटी का सचिव सरवर चिश्ती फरमा रहा है कि अगर भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा को गिरफ्तार न किया गया तो वह हिन्दोस्तान को तबाह कर देगा जबकि उसका बेटा हिन्दुओं के तेंतीस करोड़ देवताओं की ‘होलसेल’ लगा रहा है और चुनौती दे रहा है कि हिन्दू भगवान श्री गणेश व बजरंग बली हनुमान के अस्तित्व को सिद्ध करके दिखायें। इतना ही नहीं वह भगवान विष्णु के दस अवतारों का भी मजाक उड़ा रहा है। दूसरा खादिम सलमान चिश्ती वीडियो जारी करके अपील कर रहा है कि जो कोई भी नूपुर शर्मा का सर कलम करेगा उसे वह अपना घर तोहफे में देगा। नूपुर शर्मा ने आखिरकार गुनाह क्या किया था? उसने सिर्फ इस्लाम की हदीसों का हवाला देते हुए पैगम्बर ‘हजरत मुहम्मद सले अल्लाह अलै वसल्लम’ की निजी जिन्दगी के बारे में तैश से बताया था। मगर इसी मुद्दे पर अजमेर की दरगाह के चुश्ती खादिमों ने कयामत बरपा कर डाली और अजमेर में जुलूस निकाल कर गुस्ताखे रसूल का ‘सर तन से जुदा’  के नारे लगाये। इतनी भी शर्म इन खादिमों को नहीं आयी कि जिस दरगाह के वे खादिम हैं वहां मुसलमानों से ज्यादा हिन्दू चादर चढ़ाने आते हैं और उनकी बदौलत ही उनकी रोजी-रोटी चलती है। हिन्दू अजमेर की दरगाह पर यह जानते हुए भी जाते हैं कि वहां जिस फकीर की मजार है वह एक मुसलमान था। इन खादिमों को इस पर भी अक्ल नहीं आयी कि भारत के मूल निवासी हिन्दू किस कदर फऱाख दिल हैं और उनका धर्म कितना उदार है कि वे हिन्दू-मुसलमान में भेद नहीं करते। 
हकीकत तो यह है कि अगर अजमेर की दरगाह के खादिमों के ऐसे  उग्रवादी विचार हैं और उनकी जहनियत हिन्दू-मुसलमान के भेद से भरी हुई है तो दरगाह पहुंचने पर इंसानियत की बात करने के क्या मायने हैं? फिर किस मुंह से ये इस्लाम को ये शान्ति का पैरोकार बता सकते हैं। इससे दरगाह का वकार ही कम हुआ है जिसकी पूरी जिम्मेदारी नफरती खादिमों की है।  जबकि पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब ने तो यह फरमाया था कि उन्हें हिन्द की तरफ से ‘खुश्बुएं’ आती हैं। मगर मसला मजहब का नहीं बल्कि उस मुल्क का है जिसे हिन्दोस्तान कहते हैं और इसकी शिफा है कि दुनिया की हर मजलूम और मुसीबत से मारी कौम को इसके दामन में  पनाह मिली है। मगर इसका मतलब यह नहीं है कि यहां के लोग डरपोक या बुजदिल हैं। अगर ऐसा  होता तो 1971 में हम पाकिस्तान को बीच से चीर कर दो टुकड़ों में न बांट पाते। मगर दिक्कत यह है कि इसी मुल्क में कुछ ऐसे  जहरीले सांप भी पलते रहे हैं जो इसकी गंगा की निर्मल धारा का जहरीला बनाना चाहते हैं। ऐसे  चन्द लोग ही हैं वरना भारत के ‘पसमान्दा’ मुसलमानों के लिए यह धरती उतनी ही पवित्र है जितनी हिन्दुओं के लिए। मगर मुस्लिम उलेमाओं के साथ गठजोड़ करके  संभान्त व कुलीन समझने वाले और खुद को अरबों, तुर्कों  की सन्तान कहने वाले मुट्ठी भर मुसलमानों ने 95 प्रतिशत से अधिक भारतीय मुसलमानों को अपना गुलाम बना रखा है। वरना इतिहास गवाह है कि भारतीय मुसलमान हिन्दुओं के साथ कन्धे से कन्धा मिला कर उनके हर सुख-दुख में साथ खड़े नजर आते हैं। इसलिए बहुत जरूरी है कि ‘गजवा-ए-हिन्द’ की जेहादी जंग छेड़ने वाले नागों का जहर वक्त रहते ही निकाल दिया जाये। भारतवासी इस मुद्दे पर किसी भी सूरत में समझौता नहीं कर सकते।

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