पीओके : सच का आइना

पीओके : सच का आइना
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PoK: mirror of truth ; आप सबने भारत तेरे टुकड़े होंगे हजार, नारे की गूंज तो सुनी ही होगी लेकिन भारत का लोकतंत्र इतना मजबूत है कि वह पहले से कहीं अधिक सशक्त हो चुका है। मैं यह कह रहा हूं कि भारत 75 वर्षों से कहां से कहां पहुंच गया और पाकिस्तान आज कहां पर है। पाकिस्तान के जो हालात हैं वह यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या भविष्य में पाकिस्तान सचमुच विश्व के नक्शे पर बच पाएगा? चुनावों में आप सभी ने पीओके यानि पाक अधिकृत कश्मीर का शोर तो सुना होगा। कश्मीर से कन्याकुुमारी तक समूचे भारत में करोड़ों लोग ऐसे हैं जिन्हें इस देश से बेपनाह मोहब्बत है। उन्हें इस बात की पीड़ा है कि हम पीओके को आज तक पाकिस्तान से वापिस नहीं ले सके। चुनाव प्रचार के दौरान गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर और अन्य कई नेताओं ने पीओके को भारत का अभिन्न अंग बताते हुए स्पष्ट कहा कि हम उसे लेकर रहेंगे। पीओके का आवाम बार-बार सड़कों पर आता है और अपने अधिकारों की बात करता है। पीओके का आवाम आजाद होकर भारत के साथ मिलने की इच्छा रखता है।

सोशल मीडिया के तौर में पीओके की जनता भारत के कश्मीर का विकास देख रही है। लोकसभा चुनावों के दौरान जम्मू-कश्मीर के लोगों ने जिस उत्साह के साथ रिकाॅर्ड मतदान किया है, उससे स्पष्ट है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों की आस्था भारत के संविधान में है। पाकिस्तान के सियासतदान हर मंच पर भारत के जम्मू-कश्मीर पर अपना दावा जताते हैं पर दुनिया देख रही है कि उसके कब्जे वाला कश्मीर जल रहा है। पीओके में पिछले महीने आया उबाल बिजली के भारी-भरकम बिलों और आटे के आसमान छूते दामों के कारण आया था। तब पाकिस्तान की सरकार ने पोअोके के लोगों को बड़ी मुश्किल से शांत किया था। पीओके के लोग पाकिस्तान से आजादी चाहते हैं। आवाम में लगातार आक्रोश फैल रहा है। उसके पीछे पाकिस्तान के हुक्मरानों द्वारा पीओके की जनता पर अत्याचारों और संसाधनों की लूट का लम्बा इतिहास है। मैं यह लेखमाला आज के किशोरों और  युवा पीढ़ी को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की सच्चाई से अवगत कराने के लिए ही लिख रहा हूं। मेरी इच्छा रहती है कि राष्ट्र के लोग तथ्यों को जानें, क्यों​िक युवा शक्ति से हमारी बड़ी अपेक्षाएं हैं। मेरे पास पूजनीय दादा रमेश चन्द्र जी और पिता श्री अश्विनी कुमार द्वारा ​िलखे गए लेखों का विस्तृत संग्रह है। उनका अध्ययन करने के बाद मैं आप को प्रमाणित तथ्यों से अवगत कराना चाहता हूं।

बात 15 अगस्त, 1947 से ही प्रारम्भ करें। अहिंसा औंधे मुंह जा गिरी। भारत दो टुकड़े हो गया। भारत का बुढ़ापा जीत गया और भारत की जवानी समय से एक दिन पूर्व ही तख्ते पर झूल गई। अंग्रेज गए और भारत को दोफाड़ कर गए। उधर लियाकत अली जिन्ना नए मुल्क का सृजन दिवस 14 अगस्त को मना रहे थे। इधर 14 अगस्त की आधी रात को इसे 'ट्रीस्ट विद डैस्टिनी' कहकर नेहरू भारत देश की जनता से प्रधानमंत्रित्व की बधाइयां ले रहे थे। पर एक मंजर ऐसा भी था, जिसे केवल सच की कलम से ही बयान किया। लाखों लोग पाकिस्तान से उजड़ कर आ गए। दस लाख से ज्यादा हिन्दू, मुस्लिम और सिख मार दिए गए। एक सर्वेक्षण के अनुसार 2 लाख से अधिक बच्चे नृृशंसता का शिकार हो गए। मानवता कालकवलित हो गई। चिनाव लहूलुहान हो गई। लेकिन इस मुल्क के नेताओं ने सतियों के शवों से भरे हुए वे कुएं नहीं देखे जो हिन्दू और ​सिख नारियों द्वारा सतीत्व बचाने के लिए भर दिए गए थे।

आज के दिन किसी को यह आज्ञा नहीं थी कि वह उस साबरमती के संत को अमृता द्वारा रचित इन पंक्तियों को सुना दें :-

''इक रोई सी धी पंजाब दी,
तूं लिख-लिख मारे वैंण
अज्ज लखां धीयां रोंदीयां,
तैनूं वारिस शाह नूं कैण।
उठ दरदमंदा दया दरदीया,
चल तक आपणा पंजाब,
अज्ज वेड़े लाशां विछियां,
ते लहू नाल भरी चनाब।''

अगर बापू ने उपरोक्त दृश्य देख लिए होते, तो इतनी सच्चाई उनमें अवश्य थी कि वे 'अहिंसा और कायरता' को फिर से परिभाषित करने को विवश हो जाते। बस यहीं से शुरू होती है वह दर्दनाक कहानी जो आज मैं सुनाना चाह रहा हूं।

उधर पाकिस्तान बना, हरा झंडा लहराया और वहां के नेताओं के हौंसले बुलंद हो गए। जिसे देखो वही स्वयं को तीसमारखां समझने लगा। 'ये आजादी हमने अपनी कुव्वते बाजू से हासिल की है' जिन्ना ने ऐलान कर दिया। नारा-ए-तकबीर-अल्ला हो अकबर। के नारों से पाकिस्तान गूंज उठा। (क्रमश:)
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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