क्या पाकिस्तान अलग मुल्क बन पाया? क्यों ईस्ट पाकिस्तान बंगलादेश में तबदील हो गया? वह भी तो इसी इस्लाम को मानने वाले थे। उन्हें भी सरकार बनाने का हक था। शेख मुजीब जीतकर आए थे लेकिन उन्हें मिला क्या? उन्हें मिली पंजाबी मुसलमानों की दहशत। उन्हें मिला भुट्टो का वह तोहफा जिसने जुल्म की सारी हदें पार कर दीं। ऐसा क्यों हुआ? सिर्फ इसलिए कि वह भले हमवतन थे, इस्लाम को मानने वाले थे, पर हम जुबान न थे। वह उस जुबान को बोलते थे जो जुबान वहां हिन्दुस्तान में उस सूबे में बोली जाती थी, जो वैस्ट बंगाल कहलाता है। उनमें पंजाब की मिट्टी की तासीर न थी। वह पंजाबियों की तरह ऊंचे, लम्बे, तगड़े नहीं दिखते थे। वहां 1971 में हमला करके औरतों के साथ जो सलूक किया गया, वह बड़ा खौफनाक था। ऐसा सलूक कोई इंसान नहीं कर सकता। हमारा वास्ता हैवानों से पड़ गया है।"ये हैं, आज उस पाक अधिकृत कश्मीर के रहने वालों के पाकिस्तान के प्रति उद्गार। यह बात सच है कि भाषा और संस्कृति के हिसाब से ईस्ट पाकिस्तान और वैस्ट पाकिस्तान में कुछ भी मिलता न था। असलीयत यह है कि बंगलादेश बनने के पीछे की पृष्ठभूमि में धर्म हार गया और संस्कृति जीत गई।
आज भी भारत में कई ऐसे इलाके हैं जहां मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग सदियों से रहते आ रहे हैं और वह हर हिन्दू पर्व और त्यौहार को उतनी ही श्रद्धा से मनाते हैं, जितनी श्रद्धा से हिन्दू मनाते हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, बंगाल, झारखंड शायद ही कोई ऐसा मुस्लिम परिवार हो जो गांवों में होली न खेलता हो। छठ पर्व न मनाता हो और ठीक इसी के अनुरूप हिन्दू परिवार भी मजारों पर चादरें चढ़ाते अवश्य देखे जा सकते हैं। मजहबी उन्माद सियासत के द्वारा फैलाया जाता है। पाकिस्तान की बुनियाद ही उन्माद पर रखी गई है, वह इस उन्माद का सारे विश्व में निर्यातक है। अब भाषा की बात लें। उर्दू भाषा मुस्लिम लोगों की भाषा मानी जाती है, परन्तु दूर न जाएं तो देखेंगे कि हिन्दुस्तान में उर्दू के लेखक और शायर हिन्दू इतनी बड़ी संख्या में हुए, जिनका कोई सानी नहीं। जैसे मुंशी प्रेम चन्द, राजेन्द्र सिंह बेदी, उपेन्द्र नाथ, अश्क, कृष्ण चन्दर, फिराक गोरखपुरी और जगन्नाथ आजाद । उर्दू अदब को इनका जो योगदान है, उसे सारा मुल्क बड़ी अच्छी तरह से जानता है। बात हम कर रहे थे पाक अधिकृत कश्मीर यानी पी.ओ.के. की। आज पी.ओ.के. का नागरिक महसूस करता है कि उन पर उर्दू लाद दी गई है और कश्मीरी जुबान से धीरे-धीरे उन्हें महरूम किया जा रहा है।
जैसा कि 'आल पार्टी नैशनल एलायंस' के सरदार इश्तियाक अहमद फरमाते हैं हमारे खिलाफ एक साजिश हो रही है। यह ऐसी साजिश है जिसे बड़ी चालाकी से रचा गया है। अगर हमने इस साजिश का पर्दाफाश करके अपने कश्मीरियों को न बचाया तो हम फना हो जाएंगे। यह साजिश है हमारा वजूद मिटाने की। पाकिस्तानी हुक्म चाहता है कि हम पर उर्दू लाद दी जाए और तीसरी क्लास के बाद कश्मीरी जुबान का कहीं भी जिक्र न हो। हम इस्लाम पर यकीन तो रखते हैं, हम भी अल्ला-रसूल को मानने वाले लोग हैं, परन्तु हमारी तहजीब और हमारी रिवायतें किसी भी मायने में इन पाकिस्तानियों से नहीं मिलती। हमारा अलग अदबी 'लिटरेचर' है और हमारी अलग पहचान है। हम 'सूफी कल्ट' पर भी विश्वास करते हैं, और हमारे दिलों में त्रिशूल वाले शिव बाबा का भी बड़ा एहतराम है। हमारे स्कूलों में हाल के वर्षों में जो किताबें भेजी गई हैं, वे उर्दू में हैं, उनमें ऐसा बहुत कुछ है, जो हमारे 'कल्चर' से नहीं मिलता। इन पाकिस्तानियों के हमारे सिर पर रहते हमारी कश्मीरियत कभी महफूज नहीं रह सकती। आप जब उपरोक्त उद्गारों को देखेंगे, तो आपको यह अहसास होगा कि आम कश्मीरी आज वहां क्या महसूस कर रहा है। (क्रमशः)
आदित्य नारायण चोपड़ा
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