अन्ततः ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने अपने पद से इस्तीफा देने का ऐलान कर ही दिया। ब्रेग्जिट विवाद के चलते पिछले काफी समय से यह आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं कि थेरेसा मे की सरकार गिर सकती है लेकिन उसे कई बार जीवनदान मिला। थेरेसा मे ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के समझौते पर अपनी ही पार्टी को नहीं मना पाईं। संसद में भी उनके ब्रेग्जिट प्लान को कई बार नकारा गया। थेरेसा मे काफी दबाव में थीं लेकिन अब उन्होंने रूंधे गले से इस्तीफा देने की घोषणा कर ही दी। ब्रिटेन ने जून 2016 में यूरोपीय संघ से अलग होने का फैसला किया था। इस फैसले के लिए ऐतिहासिक रेफरेंडम कराया गया।
रेफरेंडम में बुजुर्गों की एकतरफा वोटिंग के चलते ब्रिटेन को 28 देशों की यूरोपीय यूनियन से अलग होने का फैसला करना पड़ा। ब्रिटेन की कुल आबादी में बुजुर्ग 18 फीसदी यानी 1.12 करोड़ के लगभग हैं। देश के बुजुर्ग युवा पीढ़ी पर भारी पड़े हालांकि रेफरेंडम में हिस्सा लेने वाले ब्रिटेन के 18 से 29 साल के युवा यूरोपीय संघ के साथ ही रहना चाहते थे। बाद में ब्रेग्जिट को लेकर राजनीतिक उथल-पुथल मच गई। प्रधानमंत्री थेरेसा मे की ब्रेग्जिट राजनीति का विरोध उनकी अपनी कंजरवेटिव पार्टी के भीतर से ही शुरू हुआ। थेरेसा मे के तीन मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफा देने वाले मंत्री ब्रेग्जिट के पक्ष में थे। इनका मानना था कि यूरोपीय संघ अपने सिद्धांतों से भटक चुका है। तर्क दिए जा रहे थे कि यूरोपीय यूनियन में शामिल होने की वजह से ब्रिटेन अपनी अर्थव्यवस्था या विदेश नीति को लेकर आजादी से फैसला नहीं कर पा रहा। इससे उसकी डेमोक्रेसी पर असर पड़ रहा है। ब्रेग्जिट समर्थकों का कहना है कि यूरोपीय यूनियन से अलग होने के बाद भले ही देश को शुरूआती झटके लगें लेकिन फिर वह मजबूती के साथ अपने पांवों पर खड़ा हो जाएगा।
ब्रेग्जिट के बाद भी ब्रिटेन अगर यूरोपीय संघ से जुड़कर रहना चाहता है तो अपनी शर्तों पर रहेगा न कि यूरोपीय संघ की शर्तों पर। थेरेसा मे ने ब्रेग्जिट को लेकर लचीला रवैया अपनाया और उनका कहना था कि ब्रिटेन यूरोपीय यूनियन से अलग होने के बाद भी उसकी शर्तें मानता रहेगा। बाहर रहकर भी ब्रिटेन यूरोपीय संघ के साथ रहेगा, जिसमें आर्थिक हितों, रोजगार आैर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को ब्रिटेन से बाहर जाने से बचाया जाएगा। ब्रिटेन में यह तय ही नहीं हो पाया कि ब्रेग्जिट के बाद ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के व्यापारिक सम्बन्ध किस तरह के होंगे। इससे ब्रिटेन में असमंजस का माहौल बन गया। ब्रिटेन के लोग दो हिस्सों में बंट गए। एक हिस्से का मानना था कि ब्रिटेन को यूरोपीय संघ के मुक्त व्यापार संघ से पूरी तरह अलग होना चाहिए। इससे ब्रिटेन को दुनियाभर के देशों के साथ व्यापारिक समझौते करने की अधिक आजादी मिलेगी। दूसरी तरफ आधे लोग इस बात के पक्ष में थे कि ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से करीबी सम्बन्ध बनाए रखने चाहिएं।
राजनीतिक दलों का मानना है कि 1975 में यूरोपीय संघ से जुड़ने के बाद ब्रिटेन की कभी नहीं चली। यूरोपीय संघ ब्रिटेन के लोगों की जिन्दगियों पर ज्यादा नियंत्रण कर रहा है। वह व्यापार के लिए बहुत सारी शर्तें थोपता है और कई बिलियन सालाना मैम्बरशिप शुल्क वसूलता है लेकिन बदले में ब्रिटेन को कोई ज्यादा फायदा नहीं देता। ब्रिटेन के लोग अपनी सीमाओं पर पूरी तरह नियंत्रण चाहते हैं। यूरोपीय संघ अब कई क्षेत्रों में अपने नियम बनाता है, जिसमें पर्यावरण, परिवहन, उपभोक्ता अधिकार और मोबाइल फोन की कीमतें तक तय की जाती हैं। ब्रेग्जिट की सबसे बड़ी समस्या नार्दर्न आयरलैंड और रिपब्लिक ऑफ आयरलैंड के बीच बार्डर का मुद्दा है। थेरेसा मे की योजना में आयरिश बार्डर को खुला रखा गया यानी कोई चैक प्वाइंट नहीं, कोई कैमरा नहीं।
ऐसा नार्दन आयरलैंड में व्यापार और लोगों की आवाजाही आसान बनाए रखने के लिए किया गया लेकिन ब्रिटिश सांसद इसके विरोध में हैं। इनका कहना है कि इसमें ब्रिटेन का नार्दन आयरलैंड पर अधिकार कम होगा और वहां यूरोपीय संघ के नियम लागू होंगे। थेरेसा मे ब्रेग्जिट पर वार्ताओं को आगे बढ़ाती रहीं। थेरेसा मे ने ब्रेग्जिट का मसौदा 15 जनवरी को संसद में पेश किया था, जिसे 230 वोटों से खारिज कर दिया गया था। 12 मार्च को थेरेसा मे ने बदलाव के साथ दूसरा मसौदा पेश किया था लेकिन इसको 391 वोटों से खारिज कर दिया गया था। थेरेसा मे कंजरवेटिव पार्टी की आंतरिक लड़ाई का शिकार हो गईं। उन्हें भी मार्गरेट थैचर की तरह इस्तीफा देना पड़ा। यूरोपीय समुदाय को लेकर मार्गरेट थैचर के विचारों से उनके मंत्रिमंडल के साथी भी सहमत नहीं थे। पार्टी के भीतर से नेतृत्व को चुनौती मिलने के बाद थैचर ने 1990 में पार्टी के नेता और प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।
थेरेसा मे के लिए स्थितियां असहज बन चुकी थीं और उन्होंने स्वीकार कर लिया कि अब डाउनिंग स्ट्रीट में उनका समय पूरा हो चुका है। ब्रिटेन की उथल-पुथल भरी सियासत में अब उनका उत्तराधिकारी चुनने की प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगी। देखना होगा कि ब्रिटेन की सियासत क्या मोड़ लेती है।