कोरोना वायरस ने अब सियासी इफैक्ट दिखाने शुरू कर दिए हैं। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के हाथों सत्ता खिसकने के पीछे एक बड़ी वजह कोरोना महामारी से निपटने में उनकी विफलता भी थी। अब यूरोप में एक हफ्ते में तीन-तीन सरकारों को हटना पड़ा है। इटली में कोरोना से बिगड़ रहे हालात न सम्भाल पाने की वजह से आलोचनाओं से घिरे प्रधानमंत्री गिउसेप कोंटे ने इस्तीफा दे दिया है। वे अब कार्यवाहक राष्ट्रपति के तौर पर अगली व्यवस्था होने तक काम करते रहेंगे। कोंटे 2018 से दो गठबंधन सरकारों का नेतृत्व कर चुके हैं। इटली में अब तक 24,75372 कोरोना केस हो चुके हैं, इनमें से 85 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। इटली पहला पश्चिमी देश था जिसने पिछले वर्ष मार्च में सबसे लम्बा लॉकडाउन लगाया था। पिछले सप्ताह ही पूर्व प्रधानमंत्री मेतियो रेजी की इटालिया वीवा पार्टी ने सरकार के अर्थव्यवस्था सम्भालने को लेकर नीतिगत योजना पर सहमति नहीं होने पर गठबंधन सरकार से अलग होने का फैसला किया था। इससे पहले नीदरलैंड के प्रधानमंत्री मार्क रुटे और उनकी पूरी कैबिनेट ने इस्तीफा दे दिया। डच कैबिनेट को बाल कल्याण भुगतानों की जांच से जुड़े एक घोटाले की राजनीतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देना पड़ा। इस घोटाले में हजारों माता-पिता को धोखेबाज के रूप में गलत तरीके से शामिल कर लिया गया था। प्रधानमंत्री मार्क रूटे ने इस्तीफा देते समय वादा किया कि उनकी सरकार प्रभावित माता-पिता को जल्द से जल्द मुआवजा दिलाने और कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ने को लेकर काम जारी रखेगी। नीदरलैंड में हालात बहुत खराब हैं। लगभग दस शहरों में दंगों के हालात बने हुए हैं। लोग सड़कों पर आकर पुलिस पर पत्थर बरसा रहे हैं और आगजनी कर रहे हैं। लोग कोरोना संक्रमण के कारण लागू कर्फ्यू का विरोध कर रहे हैं। नीदरलैंड में अब 17 मार्च को चुनाव होने हैं। कोरोना की मार का सामना कर रहे एस्टोनिया में भी जूरी रटास को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा इसलिए देना पड़ा क्योंकि उनकी पार्टी सैंटर पार्टी के वरिष्ठ अधिकारियों काे घोटाले की वजह से इस्तीफा देना पड़ा तो प्रधानमंत्री ने भी पद छोड़ने का ऐलान करना पड़ा।
दक्षिण अमेरिकी देश कोलिम्बया के रक्षा मंत्री कार्लोस होम्स की कोरोना के संक्रमण के चलते माैत हो गई। दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका में सवा चार लाख के करीब मौतें हो चुकी हैं और संक्रमित मरीजों की संख्या 2.54 करोड़ से ज्यादा पहुंच गई है। ब्रिटेन में भी हालात अच्छे नहीं हैं, वहां भी 17 जुलाई तक लाकडाउन बढ़ाया गया है। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और इटली जैसे देशों में मेडिकल सुविधाएं भारत से कहीं ज्यादा हैं। भारत की विशाल आबादी के मुकाबले इन देशों की आबादी बहुत कम है। यद्यपि इन सभी देशों में टीकाकरण की शुरूआत हो चुकी है। अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस वर्ष गर्मी के मौसम तक 30 करोड़ लोगों को कोरोना वैक्सीन लगाने का लक्ष्य रखा है जिसके लिए 60 करोड़ खुराक की आवश्यकता होगी। यूं तो कोरोना वायरस से पूरी दुनिया त्रस्त है लेकिन दुनिया के यूरोप के अमीर और सम्पन्न देशों पर कोरोना का ज्यादा कहर टूटा है। वहीं पश्चिमी यूरोप की तुलना में यूरोपीय यूनियन का पूर्वी हिस्सा कम प्रभावित हुआ है। सैंट्रल आैर ईस्टर्न यूरोप की तुलना में वैस्टर्न यूरोप कोरोना के ज्यादा भयावह असर मेंं हैै। कई देशों में आबादी के लिहाज से भी संक्रमण फैला है। संक्रमण फैलने में कई फैक्टर काम करते हैं जैसे हर्ड इम्युनिटी का कम होना, बुजुर्गों की संख्या का अधिक होना, चीन से आने वाली उड़ानों की संख्या का अधिक होना, टेस्टिंग रेट कम होना इत्यादि। पहले सरकारों ने कोरोना संक्रमण की ओर ध्यान नहीं दिया, बाद में यूरोप के ज्यादातर इलाकों में मास्क पहनना अनिवार्य किया गया है। यूरोपीय देशों के लिए मास्क पहनना नया चलन है, जबकि चैक रिपब्लिक और स्लोवाकिया जैसे देशों की सरकारों ने इसे जल्दी अपनाया। इसका सकारात्मक नतीजा रहा। इससे वायरस का संक्रमण फैलने से रुका। सबसे ज्यादा असर लाकडाउन का रहा, जिन देशों ने सबसे पहले लाकडाउन लगाया, वहां वायरस संक्रमण के उतने ही कम मामले सामने आए और उसकी वजह से मौतें भी कम हुईं।
भारत जैसे विशाल देश में कोरोना महामारी से निपटना आसान नहीं था लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार ने कोरोना की चुनौती को जिस ढंग से निपटा, वह पूरी दुनिया के लिए एक सबक भी है और संदेश भी। मोदी सरकार ने न केवल लोगों का आत्मबल बनाए रखा, बल्कि उन्हें प्राचीन जीवन शैली अपनाने और आयुर्वेद की औषधियां अपनाने के लिए भी तैयार किया। आज न केवल भारत दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीनेशन अभियान चला रहा है, बल्कि दूसरे देशों को भी वैक्सीन दे रहा है। भारत में स्थितियां सामान्य होने की ओर अग्रसर हैं लेकिन यूरोप के अन्य देशों में भी राजनीतिक उथल-पुथल की आशंकाएं बनी हुई हैं। आने वाले दिनों में कुछ और सरकारें गिर सकती हैं। महामारी के केवल आर्थिक इफैक्ट ही नहीं होते, बल्कि राजनीतिक इफैक्ट भी होते हैं जो सामने आ रहे हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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