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पुड्डुचेरी की राजनीतिक उथल-पुथल

जब दो हाथी आपस में लड़ते हैं तो फिर खेत का उजड़ना तय होता है। यही हाल पुड्डुचेरी में हुआ। सरकारें सिरों की संख्या के बल पर चलती है।

जब दो हाथी आपस में लड़ते हैं तो फिर खेत का उजड़ना तय होता है। यही हाल पुड्डुचेरी में हुआ। सरकारें सिरों की संख्या के बल पर चलती है। एक के बाद एक 4 कांग्रेसी विधायकों के इस्तीफे और एक विधायक को पार्टी से निलम्बित किए जाने के बाद विधानसभा में कांग्रेस अल्पमत में आ गई थी। मुख्यमंत्री वी. नारायण सामी को बहुमत सिद्ध करने में विफलता का अनुमान पहले से ही था, इसलिए उन्होंने इस्तीफा देना ही बेहतर समझा। इस्तीफा देने से पहले नारायण सामी ने आरोप लगाया कि उनकी सरकार को गिराने की कोशिश तो कई सालों से चल रही थी। उन्होंने इन कोशिशों के लिए हटाई गईं उपराज्यपाल किरण बेदी को भी जिम्मेदार ठहराया। 
मुख्यमंत्री बनाम उपराज्यपाल विवाद में नुक्सान दोनों को ही हुआ। जहां नारायण सामी की सरकार गिरी वहीं किरण बेदी भी राज्यपाल पद से हटा दी गईं। यह भी आश्चर्यजनक है कि पुड्डुचेरी विधानसभा में तीन मनोनीत विधायकों को मतदान का अधिकार ​दिया गया। यह परिपाटी चली आ रही है कि मनोनीत विधायकों को मतदान का अधिकार नहीं होता। इससे लोकतंत्र के स्थापित ​सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है। राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों में टकराव कोई नया नहीं है लेकिन जिस तरह का टकराव पुड्डचेरी में देखने को मिला उससे आम जनता भी उपराज्यपाल और केन्द्र सरकार से नाराज होने लगी थी। आम जनता के समर्थन में चलाई जा रही कई योजनाएं प्रभावित हो रही थीं। जंग इतनी तेज हो गई थी कि वर्ष 2019 में नारायण सामी को राजभवन के सामने 6 दिन तक धरना देना पड़ा। उस समय उपराज्यपाल सरकार द्वारा पारित 39 ​प्रस्तावों को मंजूरी नहीं दे रही थीं। इनमें कुछ खास वर्गों के लिए दीपावली और पोंगल पर मुफ्त अनाज आैर उपहार बांटने की योजनाएं शामिल थीं। पुड्डुचेरी में आगामी मई में विधानसभा चुनाव होने हैं। अभी देखना होगा कि विपक्ष अपने 14 सदस्यों और बहुमत के आंकड़े के साथ सरकार बनाने का दावा पेश करता है या फिर राज्य में राष्ट्रपति शासन का विकल्प इस्तेमाल किया जाता है। अब दक्षिण भारत कांग्रेस मुक्त हो चुका है। पिछले वर्ष कांग्रेस राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, पुड्डुचेरी आैर महाराष्ट्र में सत्ता में थी। उसके हाथ से पहले मध्य प्रदेश निकला, जब ज्योतिरादित्या ने समर्थक विधायकों के साथ बगावत कर दी। मार्च 2020 में कमलनाथ को इस्तीफा देना पड़ा। राजस्थान की बगावत को कांग्रेस हाईकमान ने किसी न किसी तरह शांत करने में सफलता पाई। इतिहास देखा जाए तो कभी ऐसा समय था जब समूचे भारत पर केवल कांग्रेस का ही शासन था। अब हालत यह है कि कांग्रेस का दक्षिण भारत का मजबूत किला पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है। पहले कर्नाटक में जेडीएस के साथ किसी तरह कांग्रेस गठबंधन की सरकार कुछ समय तक रही मगर वहां भी भाजपा ने सत्ता पर कब्जा कर ​लिया। 
कांग्रेस को इस बात का मंथन करना होगा कि उसकी ऐसी हालत क्यों हुई। दरअसल कांग्रेस नेतृत्व राज्य इकाइयों को प्रभावशाली नेतृत्व देने में विफल रहा है और पार्टी की एक के बाद एक पराजय के बाद कैडर पूरी तरह हताश हो चुका है। इसमें कोई संदेह नहीं कि कांग्रेस का नेतृत्व पार्टी को पुनर्जीवित करने की हरसम्भव कोशिश कर रहा है। 2014 में नरेन्द्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही कांग्रेस देश भर में सिमटती चली गई। राजनीति सत्ता पाने के लिए ही की जाती है। भाजपा ने कांग्रेस को कमजोर करने के लिए आक्रामक रुख अपनाया। भाजपा की कोशिश यह रही है कि अगर किसी राज्य में भाजपा स्वयं सरकार बनाने में सक्षम नहीं है तो वहां वैकल्पिक सरकारें दी जाएं। 
दूसरी बात यह भी है कि अब कांग्रेस और अन्य दलों में भी सैद्धांतिक और वैचारिक निष्ठा अब रही नहीं। संगठनात्मक रूप से कांग्रेस कमजोर हो रही है। अब विधायकों के लिए तत्कालिक परिस्थितियां ज्यादा महत्व रखती हैं। पुड्डुचेरी के घटनाक्रम से साबित हो गया है कि दल बदल विरोधी कानून पूरी तरह से नाकाम हो चुका है। सरकारें गिराने के ​लिए अब दल बदल विरोधी कानून का तोड़ ढूंढ लिया गया है। अब अगर विधायक दल बदल नहीं करते बल्कि पद से इस्तीफा दे देते हैं तो उन पर कोई कानून लागू नहीं होता। इससे सत्तारूढ़ दल की सदन में संख्या बल कम होते ही विपक्ष काे सरकार बनाने का मौका मिल जाता है। 
कांग्रेस का स्वयं का घर व्यवस्थित नहीं है इसलिए वह अपने नेताओं और विधायकों तक की प्रतिबद्धता को सुनिश्चित नहीं कर पा रही है। कांग्रेस अपना घर सम्भाल नहीं पा रही तो फिर दोष किसे दे। चुनावों से पहले दल बदल कर अपनी टिकट या अपना भविष्य तय करना एक फैशन बन चुका है। इससे सैद्धांतिक राजनीति की बु​नियाद कमजोर हो रही है। यह जरूरी है कि राजनीति में वैचारिक और सैद्धांतिक निष्ठाएं मजबूत बनाई जाएं। अब देखना होगा कि आगामी विधानसभा चुनावों में पुड्डुचेरी की जनता किसके पक्ष में जनादेश देती है। यदि सियासी शतरंज के सभी मोहरे सटीक बैठते हैं तो भाजपा को यहां भी बड़ा फायदा होने की उम्मीद नजर आ रही है।

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