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जनसंख्या विस्फोट : समाज खुद सोचे

भारत की तेजी से बढ़ती आबादी लगातार तबाही के संकेत दे रही है क्योंकि मौजूदा संसाधनों से कहीं अधिक मानव संसाधन है।

भारत की तेजी से बढ़ती आबादी लगातार तबाही के संकेत दे रही है क्योंकि मौजूदा संसाधनों से कहीं अधिक मानव संसाधन है। जिसके चलते बेरोजगारी, बीमारी और भुखमरी तेजी से पांव पसार रही है। नव वर्ष पर पूरी दुनिया में पैदा हुए बच्चों का आंकड़ा चौंका देने वाला रहा। एक रिपोर्ट के मुताबिक एक जनवरी 2020 के दिन भारत में 69000 बच्चों ने जन्म लिया था। कहने का मतलब महज 24 घंटे में यानी एक दिन में भारत में 67 हजार बच्चे पैदा हुए। 
यह आंकड़ा इसलिए भी खौफ पैदा कर रहा है कि दुनिया की सर्वधिक आबादी वाले देश चीन में एक जनवरी 2020 में केवल 46 हजार बच्चों का जन्म हुआ। चीन के पास भारत से तीन गुना अधिक जमीन और उसकी अर्थव्यवस्था भी भारत की तुलना में 5 गुना बढ़ी है। जब भी देश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाने की आवाज उठी तो उसे धर्म और जाति के साथ जोड़ा गया। जनसंख्या नियंत्रण को विवादास्पद बना दिया गया। 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुरादाबाद में आयोजित कार्यक्रम में संघ के एजैंडे को दोहराया है कि देश में जनसंख्या नियंत्रण बहुत जरूरी है। संघ हमेशा दो बच्चों की नीति पर कानून के पक्ष में रहा है लेकिन यह काम सरकार को करना है। उनके इस बयान के बाद जनसंख्या नियंत्रण पर कानून को लेकर बहस शुरू हो चुकी है। जनसंख्या नियंत्रण एक बड़ा मुद्दा है, इसके बारे में सरकार ही क्यों देश के हर नागरिक को सोचना होगा लेकिन दुखद यह है कि इसके विरोध में फिर स्वर उठने शुरू हो गए हैं। 
अगर जनसंख्या वृद्धि का सिलसिला ऐसे ही बढ़ता रहा तो भारत आबादी के मामले में चीन जैसे देश को पीछे छोड़ देगा। 1960 में वियतनाम पहला ऐसा देश था, जो सबसे पहले दो बच्चों की नीति पर कानून लेकर आया था। इसके बाद वर्ष 1970 में ब्रिटिश शासन में हांगकांग में यह कानून लागू किया गया था, लेकिन तब इसे अनिवार्य नहीं बनाया गया था। वर्ष 2016 में चीन द्वारा दो बच्चों के कानून को प्रभावी रूप से लागू किया गया जबकि इससे पहले चीन में एक बच्चे की नीति लागू थी। 1970 में ही ​सिंगापुर में स्टॉप एट टू पॉलिसी लांच की गई थी। 
दो से अधिक बच्चे पैदा करने वाले परिवारों को सरकार द्वारा दिए गए लाभों से वंचित करने का आदेश सुना दिया गया था। 2012 में ब्रिटेन की कंजरवेटिव पार्टी दो बच्चों की नीति लेकर आई थी जिसके तहत सरकार ने परिवार के पहले दो बच्चों को ही लाभ देने का ऐलान किया था। इस्लामिक देश ईरान में भी 1990 से 2016 के दौरान दो बच्चों की नीति को प्रोत्साहित करने के लिए अभियान चलाया गया था। जनसंख्या नियंत्रण कानून के इतने उदाहरण सामने आने के बावजूद भारत अभी तक कानून बनाने का साहस नहीं कर सका है। 
इंदिरा गांधी शासन काल में संजय गांधी ने जनसंख्या नियंत्रण अभियान तो छेड़ा लेकिन लोगों की जबरन नसबंदी और महिलाओं की जबरन नलबंदी या प्रलोभन देकर किए गए आपरेशनों ने इतना आक्रोश फैला कि जनसंख्या नियंत्रण का मुद्दा आपातकाल के अत्याचारों के शोर में ही डूब गया। भारत में मुस्लिम वोटरों की नाराजगी मोल नहीं लेने के चक्कर में तो केन्द्र की कांग्रेस सरकारें हिम्मत ही नहीं जुटा पाई। 
सरकारों द्वारा जनसंख्या नियंत्रण के लिए जोरदार अभियान चलाए जाने के बावजूद जनसंख्या वृद्धि पर कोई खास असर नहीं पड़ा। देश में अब भी बिना तैयारी के शिशु के आगमन की जिम्मेदारी समाज और भगवान के भरोसे छोड़ी जा रही है। सरकार देश में 9 करोड़ से अधिक बच्चों को मुफ्त में दोपहर का खाना और 81 करोड़ लोगों को सस्ता अनाज दे रही है। यह सब टैक्सपेयर्स के पैसों से कर पा रही है। भारत में गरीबी और बेकारी की समस्या काफी अधिक है इसलिए माल्थस को याद किया जाता है। 
माल्थस ने प्रतिप्रादित किया था कि यदि मनुष्य बढ़ती जनसंख्या पर स्वतः रोक नहीं लगाता तो प्रकृति आगे बढ़कर रोक लगाती है। 31 मार्च 2011 में देश में 15वीं राष्ट्रीय जनगणना के आंकड़े जारी किए गए थे तो पता चला था कि जनसंख्या में बढ़ौतरी होने की बजाय 0.31 फीसदी की कमी आई थी मगर इसका कारण प्राकृतिक आपदाएं थीं। माल्थस कदाचार के द्वारा जनसंख्या नियंत्रण नहीं चाहते थे, वे व्यक्तियों को सदाचार की तरफ उन्मुख करना चाहते थे। इतिहास इसका प्रमाण है कि विश्व की 19 सभ्यताएं कदाचार के कारण ही विलुप्त हुई हैं। जनसंख्या बढ़ती गई तो कदाचार भी बढ़ेंगे, अपराध भी बढ़ेंगे और अपनी संस्कृति की रक्षा करना मुश्किल हो जाएगा। 
जनसंख्या किसी भी देश की राष्ट्रीय संपदा होती है, बशर्ते वह सुशिक्षित और प्रशिक्षित हो। गरीब, अनपढ़, कौशल रहित लोग अपने जैसी ही औलाद पैदा कर सकते हैं। हकीकत यह है कि हमारे देश में अभी भी जनसंख्या को लेकर गम्भीर तार्किक एवं वस्तुपरक सोच नहीं है। मोदी सरकार इस दिशा में कानून बनाती है तो यह एक बेहतर पहल होगी, लेकिन डर इस बात का है कि इस पर कोई नया बवाल न खड़ा हो जाए। बेहतर यही होगा कि समाज स्वयं जागरूक होकर काम करे और आबादी को कम करने के उपाय करे।
-आदित्य नारायण चोपड़ा

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