प्रवासी भारतीय दिवस के मौके पर दुनियाभर से भारतीय मूल के लोग मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में उमड़े हुए हैं। कोविड महामारी के कारण दो वर्ष बाद प्रवासी भारतीय सम्मेलन हो रहा है। भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 9 जनवरी 1915 को दक्षिण अफ्रीका से भारत वापिस आ कर स्वतंत्रता संग्राम की शुरूआत की थी तो उनकी याद में इस दिन को प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रवासी भारतीय दिवस मनाने की घोषणा की थी और 2003 में पहली बार प्रवासी भारतीय दिवस मनाया गया था। हालांकि इसकी संकल्पना लक्ष्मीमल सिंघवी समिति ने बहुत पहले ही की थी। दुनिया में करीब 1.80 करोड़ प्रवासी भारतीय रहते हैं। इन में से करीब 70 प्रतिशत अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, ब्रिटेन, कनाडा, मलेशिया और श्रीलंका में हैं। प्रवासी भारतीय अब देश की एक आर्थिक ताकत बन चुके हैं तो दूसरी तरफ यह एक साफ्ट पॉवर बन चुके हैं। प्रवासी भारतीयों ने अपने साफ्ट पावर को ही अपनी ताकत बनाया है। भारतीय जिन-जिन देशों में गए उन्होंने वहां के संविधान और संस्कृति को आत्मसात कर वहां के विकास में अमूल्य योगदान दिया। प्रवासी भारतीय अब अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और कई देशों में राजनीतिक ताकत भी बन चुके हैं। इसी के चलते ही व्हाइट हाउस में दीवाली मनाई जाती है। ब्रिटेन में हिन्दू त्यौहारों की धूम रहती है और संयुक्त अरब अमीरात में करोड़ों डालर की लागत से हिन्दू मंदिर बनकर तैयार है और हजारों लोग दुबई के गुरुद्वारे में माथा टेकने जाते है। यह भारतीयों के लिए गर्व की बात है कि ब्रिटेन, पुर्तगाल, और आयरलैंड में भारतीय मूल के प्रधानमंत्री हैं। ब्रिटेन में ऋषि सुनक, आयरलैंड में लिली वराडकर और पुर्तगाल में एंटीनियो कोस्टा प्रधानमंत्री हैं। अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस भी भारतीय मूल की हैं। गुयाना के राष्ट्रपति मोहम्मद इरफान अली और सूरीनाम के राष्ट्रपति, चंद्रिका प्रसाद संतोखी भी भारतीय मूल के हैं। दोनों ही प्रवासी भारतीय सम्मेलन के मुख्य अतिथि भी हैं। दुनियाभर की टॉप 500 कम्पनियों में 12 प्रतिशत सीईओ भारतीय मूल के हैं। इनमें गूगल से लेकर माइक्रोसाफ्ट जैसी कम्पनियां शामिल हैं। प्रवासी भारतीय सम्मेलन का उद्देश्य इन्हें भारत के साथ जोड़ना रहा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस सम्मेलन के दौरान प्रवासी भारतीयों को आश्वास्त करते हुए कहा है कि प्रवासी भारतीय विदेशों में भारत के राजदूत हैं और देश की बढ़ती ताकत में इनके योगदान को कमतर नहीं आंका जा सकता। मोदी ने कहा कि आगामी वर्षों में भारत की जिम्मेदारी और बढ़ने वाली है और विश्व समुदाय को देश की ताकत का अहसास कराना प्रवासी भारतीयों का दायित्व है। प्रवासी भारतीय देश की प्रगति को लेकर उठाए जा रहे कदमों की जानकारी से हमेशा अपडेट रहें और दुनिया के अन्य देशों से भी इसे सांझा किया जाना चाहिए।
प्रवासी भारतीय हर साल 87 अरब डॉलर से भी अधिक राशि भारत भेजते हैं। प्रवासी भारतीय भारत में लगातार निवेश कर रहे हैं। मोदी सरकार ने ब्रेन ड्रेन को अब ब्रेन गेम में बदल दिया है। भारतीय मूल के विदेशी नागरिकों के लिए पहली बार 2002 में पीआईओ कार्ड लांच किया गया था। इसका उद्देश्य विदेशों में रह रहे भारतीयों को उनकी थर्ड जेनरेशन से जोड़ना था। 2005 में ओसीआई कार्ड लागू किया गया था। इसमें पीआईओ कार्ड की तुलना में ज्यादा फायदे दिए गए थे। 2015 में पीआईओ कार्ड स्कीम को भारत सरकार ने वापिस ले लिया था और उसे ओसीआई कार्ड में मर्ज कर दिया था। इसमें कोई संदेह नहीं कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद भारतीय पासपोर्ट की प्रतिष्ठा काफी बढ़ चुकी है। भारत दुनिया की पांचवीं अर्थव्यवस्था है। देश की ग्लोबल इमेज बहुत बेहतर हुई है। विदेशों में रहने के बावजूद प्रवासी भारतीय अपनी संस्कृति और जड़ों से जुड़े हुए हैं। अनेक प्रवासी भारतीय जब अपने गांव में आते हैं तो वहां के विकास में अपना योगदान देते हैं। अनेक प्रवासी भारतीयों ने गांव में स्कूल, कालेज और कम्प्यूटर सैंटर तक उदार दिल से दान कर स्थापित किए हैं। अनेक प्रवासी भारतीयों ने गांव के विकास के लिए अपनी पुश्तैनी जमीन तक दान में दे दी है। अपने बच्चों की शादियां भी वह भारत में ही करना पसंद करते हैं। इस बार प्रवासी सम्मेलन की थीम ‘‘प्रवासीः अमृतकाल में भारत की प्रगति के लिए भरोसेमंद भागीदार’’ है। प्रवासी भारतीय सम्मेलन के सफल आयोजन के लिए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार बधाई की पात्र है। उम्मीद है कि प्रवासी भारतीय अमृतकाल में भारत के विकास में भागीदार बनकर महत्वपूर्ण योगदान देंगे और अपने देश की प्रतिष्ठा को और चमकदार बनाएंगे।