अभी कुछ महीने पहले करनाल की मां के आंसू मुझे बहुत विचलित करते हैं, कभी-कभी सोने नहीं देते, उस मां का उदास चेहरा बयान करता है कि उसका सब कुछ लुट गया परन्तु फिर भी उसके मन में कुछ दूसरे बच्चों के लिए करने की लालसा है, जुनून है और अब मासूम प्रद्युम्न की मां का चेहरा, उसका दिल को चीरकर रखने वाला रोना, उसका सिसकना और बार-बार उसके सवाल, मुझे लगता है उसके साथ हर देश की मां रोयी होगी। सबने अपने आपको उसकी जगह रखा होगा। सोचकर भी रूह कांप गई होगी। क्यों नहीं इस दुर्घटना को अन्जाम देने वाले के हाथ कांपे या दिल ने आवाज दी कि इस मासूम के साथ ऐसा मत कर। उस मासूम का क्या हाल होगा जब उसने अपने सामने चाकू वाले शैतान को देखा होगा। उसकी चीख भी निकली या मां, मम्मी, पापा मुझे बचाओ निकला भी होगा या दम के साथ ही अन्दर दब गया होगा। यह सब सोचकर आज हर छोटे-बड़े स्कूल जाने वाले बच्चों की मां सहम गई होगी।
दुनिया में सबसे बड़ी चिंता अगर कोई है तो वह यह है कि नन्हे-मुन्ने बच्चे को किसी बड़े स्कूल में दाखिला मिल जाए और उससे भी बड़ी फिक्र यह है कि स्कूल जाने के बाद यही बच्चा सुरक्षित वापस लौट आएगा। आज के जमाने में हम कितनी शान से जी रहे हैं, हम अपने आपको बहुत मॉडर्न बता रहे हैं। ऊंचा स्टैंडर्ड रखकर जी रहे हैं लेकिन बच्चों की सुरक्षा के मामले में जो कुछ नामी-गिरामी स्कूलों में हो रहा है, उसे जंगलराज नहीं बल्कि शैतानराज कहा जाना चाहिए। 10 दिन पहले भारत के नामचीन स्कूलों में से एक रेयान इंटरनेशनल में दूसरी क्लास के एक मासूम प्रद्युम्न की गला रेत कर हत्या कर दी गई और अभी तक आए दिन नए से नए खुलासे हो रहे हैं। मैं अखबारी सुर्खियों और टीवी पर होने वाली बहस को लेकर चिंतित नहीं हूं। मेरी परेशानी यह है कि आखिरकार बच्चों की सुरक्षा का एनसीआर और अन्य नगरों में सिस्टम किस स्तर पर जा गिरा है। आखिरकार दोष किसे दें और सुरक्षा की उचित व्यवस्था कैसे हो? मेरी परेशानी यह है। यह इसलिए है कि हजारों लोग मुझसे फोन पर, मोबाइल पर और व्हाट्सप्प पर यही बातें शेयर कर रहे हैं।
कभी कोई बच्चा स्कूल की टंकी में गिरकर मर जाता है, कभी दिल्ली में सरकारी स्कूल में दसवीं की एक छात्रा को अपनी क्लास में ही बच्चा हो जाता है, वहीं दिल्ली के ही किसी स्कूल में एक बच्ची का रेप हो जाता है तो आखिरकार उचित सुरक्षा की व्यवस्था कब होगी? दु:ख इस बात का है कि दाखिले पर लाखों खर्चने वाले मां-बाप बेचारे कहां जाएं? सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटने की व्यवस्था हमारे यहां चल रही है। प्रद्युम्न के माता-पिता रोज दुखी हो रहे हैं, सरकारी और अन्य अधिकारी जांच कर रहे हैं, सरकार ने सीबीआई जांच का ऐलान भी कर दिया है, आप कुछ भी कर लो परंतु हमारा सवाल यह है कि क्या कभी प्रद्युम्न लौटकर आ पाएगा?
दिल्ली और अन्य राज्यों की सरकारों ने यहां तक कि सीबीएसई ने भी नए-नए दिशा-निर्देश जारी करते हुए स्टाफ कर्मियोंकी पुलिस तहकीकात अनिवार्य कर दी है परंतु हमारा मानना यह है कि लाखों फीस वसूलने वाले स्कूल प्रबंधन आखिरकार बच्चों की सुरक्षा की गारंटी क्यों नहीं देते? शिक्षा के नाम पर नई-नई तकनीक और जगह-जगह सीसीटीवी के माध्यम से सुरक्षा का दम भरने वाले नामी-गिरामी स्कूल आखिरकार बच्चों की सुरक्षा की गारंटी के लिए क्यों एफिडेविट नहीं भरते? माफ करना हम किसी स्कूल प्रबंधक के खिलाफ टिप्पणी नहीं करना चाहते लेकिन हकीकत यही है कि बच्चों की सुरक्षा के मामले में अब वक्त आ गया है कि सख्ती की जानी चाहिए।
रेयान में इससे पहले भी कई कांड हो चुके हैं परंतु हमारे कानून में कई सुराख हैं जो कि बड़े लोगों के लोकतांत्रिक अधिकार हैं और इसी के दम पर वे बच निकलते हैं। बाल यौन शोषण हो या फिर लड़कियों के प्रति यौन अत्याचार या फिर हो रेप, हमारे देश में इनके अब तक डेढ़ करोड़ से ज्यादा केस अदालतों में चल रहे हैं। कितने लोगों को सजा मिली इसका जवाब मुश्किल है। सबसे ज्यादा सुरक्षा का ध्यान मां-बाप को ही रखना चाहिए। उन्हें बराबर ध्यान रखना चाहिए कि जिस ऑटो, जिस वैन या जिस बस में वे अपने बच्चों को भेज रहे हैं उनके कर्मचारियों के पास अधिकृत शिनाख्ती कार्ड भी है या नहीं। सावधानी में ही सावधानी है। मां-बाप को अब जरूरत से ज्यादा अलर्ट रहना होगा। हम राजनीतिज्ञों की तरह आरोप-प्रत्यारोप नहीं चाहते परंतु स्कूल जाने वाले मासूमों की सुरक्षा चाहते हैं। इसे किसी भी सूरत में पूरा करना न केवल स्कूल प्रबंधकों का बल्कि सरकार का भी परम धर्म होना चाहिए। साथ ही मां-बाप अपने बच्चों के लिए जरूरत से ज्यादा लड़ रहे हैं, इससे ज्यादा हम कुछ नहीं कह सकते।