स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में अनेक भारतीय राजनेताओं ने नैतिकता, सादगी, ईमानदारी, निष्ठा और त्याग की मिसालें कायम की हैं। आज की राजनीति में इन्हीं चीजों का लोप हो चुका है। अब नेताओं की सोच अर्थ आधारित हो चुकी है। सियासत धन की गुलाम हो चुकी है। आज अधिकतर लोग भी नेताओं के आगे-पीछे आर्थिक लाभ के लिए ही लगे रहते हैं। यह स्थिति राजनीति के साथ-साथ देश और समाज के लिए चिन्ताजनक तथा घातक है। आज हाशिये पर बैठे लोगों की राजनीति में कोई जगह दिखाई नहीं पड़ती।
गरीब आदमी क्या महंगे हो चुके चुनाव में लड़ सकता है, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। जिन नेताओं ने राष्ट्र निर्माण के मद्देनजर अनेक सपनों और सुनहरी कल्पनाओं का खाका खींचा था, वे सब अब तक अपूर्ण हैै। भारतीय राजनीति में एक के बाद एक घोटाले हुए जिन पर पूरा महाग्रंथ लिखा जा सकता है। इस सबके बावजूद सियासत में ऐसे उदाहरण जरूर मिलते रहे हैं जिन्होंने आज भी नैतिकता, सादगी और ईमानदारी को अपना आदर्श माना है। गुरुवार को जब नरेन्द्र मोदी मंत्रिमंडल शपथ ले रहा था तो 56वें नम्बर पर ओडिशा के प्रताप चन्द्र सारंगी ने शपथ ली। उनका जोरदार तालियों से स्वागत हुआ और शायद सबसे ज्यादा तालियां उनके लिए ही बजीं।
अनेक लोगों ने खड़े होकर तालियां बजाईं। प्रताप चन्द्र सारंगी सोशल मीडिया पर चर्चा में आ चुके हैं। इससे पहले भी वह सोशल मीडिया पर चर्चा में आए थे जब वह दिल्ली आने के लिए अपना बैग पैक कर रहे थे। ओडिशा के बालासौर सीट से भाजपा उम्मीदवार के तौर पर विजयी हुए प्रताप चन्द्र सारंगी के सामने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष निरंजन पटनायक के बेटे नवज्योति पटनायक और बीजू जनता दल के कद्दावर नेता रविन्द्र जैना थे। नवज्योति पटनायक के पास 104 करोड़ की सम्पत्ति और रविन्द्र जैना के पास भी 72 करोड़ की सम्पत्ति है। धन-बल के आगे उनकी सादगी भारी पड़ी। सारंगी का राजनीतिक जीवन ओडिशा के तटीय इलाकों में बीता है और वह एक जाना-पहचाना चेहरा हैं।
उन्होंने चुनाव में साइकिल पर चुनाव प्रचार किया। सारंगी ने स्थानीय स्तर पर कई आंदोलनों का नेतृत्व किया, जिनमें शराब के खिलाफ आंदोलन, शिक्षा को लेकर जागरूकता आदि प्रमुख हैं। उन्होंने ओडिशा के आदिवासी गांवों में स्कूल भी खोले हैं। बालासौर लोकसभा सीट पर अहम चुनावी मुद्दा खेती और चिटफंड घोटाला रहे हैं। सारंगी दो बार विधानसभा के लिए चुने गए। वर्ष 2004 में वह भाजपा की टिकट पर और 2009 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर ओडिशा विधानसभा के लिए चुने गए थे। उन्होंने आज के दौर में भी यह साबित कर दिखाया कि एक नेता अपनी ईमानदारी और प्रभावी जमीनी राजनीति से लोगों का दिल जीत सकता है।
उसके मुकाबले धन-बल की राजनीति बौनी साबित हो गई। आज भी लोग देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की सादगी और नैतिकता को याद करते हैं। उनका बैंक बैलेंस शून्य था। उनके नाम पर कोई भी जमीन नहीं थी। उन्होंने अपने पुश्तैनी घर को गोवर्धन के लिए दान कर दिया था। उनकी माली हालत इतनी खराब थी कि धन की कमी के चलते 1940 में उनकी बेटी की मृत्यु हो गई थी। विनम्र, सहनशील, महान आंतरिक शक्ति और दृढ़ता के साथ वह उन लोगों में ऐसे एक आदमी थे जो अपनी भाषा को समझते थे। ईमानदार और कर्त्तव्यनिष्ठ लोगों में डा. राजेन्द्र प्रसाद, पुरुषोत्तम दास टंडन, राम मनोहर लोहिया, के. कामराज, हुक्मदेव नारायण सिंह, लाल मुनि चौबे आदि अनेक व्यक्तित्व ऐसे रहे जिन्होंने सियासत को ईमानदारी का मार्ग दिखलाया।
के. कामराज तो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहते हुए भी चेन्नई के टी. नगर में एक किराये के घर में रहते थे। के. कामराज कई वर्षों तक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे लेकिन 1975 में उनके बैंक में मात्र एक रुपया 25 पैसे ही थे। माणिक सरकार चार बार त्रिपुरा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए वह अपना वेतन दान कर देते थे और केवल 5 हजार रुपए भत्ते के तौर पर लेते थे। घर का खर्च उनकी पत्नी की पैंशन से चलता था। पंजाब के गढ़शंकर शहर में रहने वाले शिंगारा राम को तो मैंने सड़कों पर रहते देखा है। वह बहुजन समाज पार्टी के दो बार विधायक रहे। उन्होंने कभी अपने लिए घर बनाने पर विचार ही नहीं किया। उनका गुजारा पैंशन से ही चलता रहा। पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम का सादगी भरा जीवन तो हमने स्वयं देखा है।
आज भाजपा, कांग्रेस और अन्य दलों में ऐसे लोग मिल जाएंगे जिनके लिए नैतिकता, ईमानदारी और कर्त्तव्यनिष्ठा ही सर्वोच्च है लेकिन ऐसे लोगों को तरजीह नहीं दी जाती इसलिए ऐसे लोग सियासत में नेपथ्य में चले जाते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रताप चन्द्र सारंगी को तरजीह दी है तो यह सियासत में ईमानदारी की मशाल के समान है। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी है कि संसद में केवल करोड़पति सांसद ही नहीं आए बल्कि जमीनी राजनीति कर जनता से सीधे जुड़ने वाले लोगों को भी लाया जाए।