पूरे भारत में आज से 18 से ऊपर के आयु के लोगों के कोरोना वैक्सीन लगनी शुरू हो जायेगी। सवाल यह है कि क्या हमारे पास इतनी मात्रा में वैक्सीन उपलब्ध है कि सभी को वैक्सीन लग सके? केन्द्र सरकार पहले से ही 45 वर्ष से ऊपर के लोगों के निःशुल्क वैक्सीन लगा रही है। इनकी कुल संख्या 27 करोड़ के लगभग है जिनमें से अभी तक केवल 15 लाख के लगभग को ही वैक्सीन लग पाई है। 18 और 45 वर्ष के बीच के लोगों की संख्या 60 करोड़ के करीब है। वैक्सीन उपलब्धता को देखे तो कोविडशील्ड बनाने वाली कम्पनी ‘सीरम इंस्टीट्यूट’ की मासिक क्षमता छह करोड़ वैक्सीन की है और ‘कोवैक्सीन’ बनाने वाली ‘भारत बायोटेक’ कम्पनी की मासिक क्षमता एक करोड़ है। इस प्रकार मांग व आपूर्ति के बीच बहुत बड़ा अंतर है। इस खाई को पाटने के लिए अभी से ऐसे पुख्ता इंतजाम करने होंगे जिससे वैक्सीन लगवाने वाले उत्साही युवा वर्ग को निराशा का सामना न करना पड़े। कुछ दिनों पहले ही मैंने लिखा था कि इस मोर्चे पर राष्ट्रीय स्तर पर ‘आकस्मिक योजना’ बनाने की सख्त जरूरत है जिससे 1 मई से अराजकता का माहौल न बन सके। बेशक 18 से 45 वर्ष के लोगों को वैक्सीन लगाने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर डाल दी गई है मगर वे तब तक वैक्सीन कार्यक्रम शुरू नहीं कर सकतीं जब तक कि उन्हें वैक्सीन कम्पनियां पर्याप्त मात्रा मे टीके उपलब्ध न करायें।
राज्य सरकारों के लिए वैक्सीन उत्पादक कम्पनियां जिस तरह इसका अलग बढ़ा हुआ मूल्य पेश कर रही हैं वह कोरोना की भयावहता में मुनाफा तलाशने की कोशिश के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि केन्द्र सरकार को वे वैक्सीन आधे दाम पर सुलभ करा रही हैं। एक ही वस्तु के अलग-अलग दाम एक ही भारत में किस प्रकार जायज ठहराये जा सकते हैं। यह मामला संवैधानिक भी है क्योंकि हर भारतीय कानून की नजर में बराबर है। इसके साथ हमें यह भी देखना है कि कोरोना संक्रमण से बचने का एकमात्र उपाय वैक्सीन ही बची है और इसे लोगों को लगवाना सरकारों का प्राथमिक कर्त्तव्य है। यह कर्त्तव्य वे लोगों से ही वसूल किये गये शुल्क रूप में धन को खर्च करके पूरा करेंगी। अतः सरकारें कोई खैरात नहीं बांटेगी क्योंकि सरकार में खजाने में जो कुछ भी होता है वह लोगों का ही होता है। इसलिए यह सवाल उठना वाजिब है कि 18 से 45 वर्ष के लोगों को भी यह वैक्सीन मुफ्त क्यों न लगाई जाये? जो लोग यह दलील देते हैं कि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है वे भ्रम में हैं क्योंकि महामारी को नियन्त्रत करने के लिए केन्दीय सूची का कानून ही लागू होता है। धन राज्य सरकार व केन्द्र सरकार के खजाने में लोग ही जमा करते हैं। और जब से जीएसटी लागू हुआ है तब से तो राज्य सरकारों के वित्तीय अधिकार लगभग खत्म जैसे हो गये हैं। वैसे भी कोरोना महामारी अन्तर्राष्ट्रीय समस्या बनी हुई है और इसका समाधान भी हमें सभी प्रकार की संकीर्णता और राजनीतिक आग्रह त्याग कर करना होगा। ऐसा नहीं है कि समाधान हमारे पास मौजूद नहीं है। समाधान है मगर उसे लागू करने के लिए आपसी सभी विवादों को छोड़ कर राष्ट्रहित व जनहित में पूरे भारत को एक समुच्य रूप में सक्रिय होना पड़ेगा। सबसे पहले वैक्सीन उत्पादन की नई इकाइयां स्थापित करने के लिए आवश्यक कार्रवाई करनी पड़ेगी। कोवैक्सीन का उत्पादन सरकारी सहयोग से हो रहा है अतः इसकी नई उत्पादन शृंखला स्थापित करने कहीं कोई दिक्कत नहीं है। सरकार नई फार्मा कम्पनियों को नियमानुसार लाइसेंस जारी करके यह काम कर सकती है।
जहां तक कोविडशील्ड का सवाल है तो इसकी निर्माता कम्पनी ‘सीरम इंस्टीट्यूट’ इसका उत्पादन ब्रिटेन की आक्सफोर्ड कम्पनी के उत्पाद ‘एस्ट्रोजेनिका’ का लाइसेंस लेकर इसे कोविड शील्ड के रूप में बना रही है। इसकी भी नई उत्पादन इकाइयां स्थापित करने में भारतीय पेटेंट कानून सक्षम है। इसके साथ ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के सामने भारत ने दरख्वास्त लगाई हुई है कि दुनिया की जितनी और भी अन्य कोरोना वैक्सीन हैं उनका उत्पादन भारत में ही शुरू करने की इजाजत उसे मिलनी चाहिए। भारत की इस अर्जी का कुछ खास देशों को छोड़ कर लगभग सभी विकासशील देशों ने समर्थन किया है। सवाल मानव जाति को बचाने का है और भारत अब कोरोना मुख्य केन्द्र बन चुका है तो विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी इस मामले को मानवीय दृष्टि से ही देखना होगा। मगर असली मुद्दा यह है कि फिलहाल भारत में कोरोना के कहर को कम करने के लिए कौन से कारगर कदम उठाये जायें जिससे इससे पैदा होने वाले मातम को पैर पसारने से रोका जा सके। इसके लिए समय रहते वैक्सीन की नई उत्पादन इकाइयां लगा कर इसकी उपलब्ता बढ़ाई जाए। यह कार्य प्रथम वरीयता के आधार पर होना चाहिए। दूसरा मुख्य मसला वैक्सीन लगाने की सुविधाएं बढ़ाने का भी है।
इंडियन मेडिकल एसोसियेशन ने पेशकश की है कि वह इस काम में सहयोग करने को तैयार है। इसके साढे़ तीन लाख से अधिक योग्यताप्राप्त चिकित्सक सदस्य हैं। इन सभी को टीका लगाने के लिए अधिकृत किया जाये और इन्हें निजी क्षेत्र को दिये जाने वाले वैक्सीन कोटे के घेरे में लिया जाये। परन्तु इससे भी पहले मौजूदा कोरोना विकरालता को सीमित करने के लिए पूरे देश में आक्सीजन गैस की सप्लाई आवश्यकतानुरूप सुलभ करायी जाये जिससे लोगों के मरने की संख्या को कम किया जा सके। उत्तर प्रदेश राज्य के हर बड़े शहर से लेकर राजधानी दिल्ली तक में आक्सीजन के लिए जिस तरह त्राहि-त्राहि मची हुई है उसने मौत को खुल कर तांडव मचाने का अवसर प्रदान किया है जिसकी वजह से लोगों के अंतिम संस्कार का सिलसिला रात-दिन रुक ही नहीं रहा है। इसलिए जरूरी है कि आने वाले कल को मृत्यु की विभीषिका से बचाने के लिए हम अभी से एहतियाती कदम उठाना शुरू कर दें। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि कोरोना से हर जो शख्स मर रहा है वह हमारे पूरे तन्त्र का ‘महाविलाप’ है। इसे हमें ठीक करना ही होगा। देश का युवा बहुत गहरी नजरों से सब माजरा देख रहा है। क्योंकि राज्यों के पास वैक्सीन के नाम पर कहीं एक दिन कहीं दो दिन का कोटा बचा है।