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प्रधानमंत्री मोदी ऐसा कर ही नहीं सकते!

जिस मुल्क में भी उसे दौलत बनती नजर आती है वह उसी का दोस्त हो जाता है उसके लिए उसके आर्थिक हित सर्वोपरि रहते हैं।

भारतीय जनता पार्टी के नेतागण कान खोल कर सुने कि 2019 के चुनावों में उनके नेता प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी को भारत के लोगों का अपार जनसमर्थन केवल प्रखर राष्ट्रवाद के मुद्दे पर मिला है जिसमें पाकिस्तान के प्रति भारत की कठोर नीति और कश्मीर के बारे में इसकी कड़क साफगोई केन्द्र में थी। अतः इस मुद्दे पर रंजमात्र भी लचीलापन यह देश किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं कर सकता है। यह कोई साधारण घटना नहीं है कि अमेरिका का राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प सार्वजनिक रूप से पाकिस्तान के वजीरेआजम इमरान खान की मौजूदगी में पूरी दुनिया के सामने यह बताये कि भारत के वजीरेआजम नरेन्द्र मोदी ने हालिया मुलाकात में उनसे इल्तजा की थी कि कश्मीर के मुद्दे पर वह बिचौलिये की भूमिका निभायें और इमरान खान हामी भरते रहें? ट्रम्प का ऐसा कहना ही भारत को अपनी जेब में होने का इशारा करता है। 
मगर सवाल अमेरिका का नहीं है बल्कि भारत का है और नामुराद पाकिस्तान के शातिराना इरादों का है और कश्मीर को फिर से अंतर्राष्ट्रीय विवाद का मुद्दा बनाने से है। सवाल यह भी नहीं है कि डोनाल्ड ट्रम्प की मंशा क्या है ? बल्कि असली सवाल यह है कि भारत किस अन्दाज से ट्रम्प को मुहंतोड़ जवाब देता है और पूरी दुनिया को बताता है कि दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क का राष्ट्रपति सफेद झूठ बोलकर पूरी दुनिया को और भारत की जनता को भी गुमराह कर रहा है और बड़ी चालाकी के साथ फिर से पाकिस्तान की पीठ थपथपा रहा है। मैं लगातार लिखता रहा हूं कि अमेरिका किसी भी मुल्क का दोस्त नहीं हो सकता, उसकी दोस्ती सिर्फ दौलत से रहती है। 
जिस मुल्क में भी उसे दौलत बनती नजर आती है वह उसी का दोस्त हो जाता है उसके लिए उसके आर्थिक हित सर्वोपरि रहते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब 1972 में पाकिस्तान को बीच से चीर कर स्व. इदिरा गांधी ने दो टुकड़ों में बांटकर बांग्लादेश का निर्माण कराया था तो इसी अमेरिका ने बचे- खुचे पाकिस्तान को भी दुनिया के नक्शे से नेस्तनाबूद होने से बचाने के लिए ही बंगाल की खाड़ी में अपना एटमी जंगी जहाजी बेड़ा ‘Fleet-Seven’ फ्लीट-7 उतार दिया था। इसके बावजूद पाकिस्तान की नामुराद फौज के एक लाख सिपाहियों का आत्मसमर्पण कराने के बाद शिमला में भारत ने जो समझौता पाकिस्तान के साथ किया था उसमें कश्मीर मुद्दे को हमेशा-हमेशा के लिए दोनों मुल्कों के बीच का मसला बनाकर राष्ट्रसंघ में इस बारे में उठे हर विषय को बे-वजूद कर दिया था। 
बाद में 2004 में भाजपा के प्रधानमन्त्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तानी हुक्मरान परवेज मुशर्रफ ने इसी समझौते की शर्तों को दोहराते हुए लाहौर घोषणापत्र जारी किया था। इसलिए गफलत कहीं नहीं है जिसके भरोसे अमेरिका और पाकिस्तान मिलकर फिर से कश्मीर को अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाना चाहते हैं। ट्रम्प को झूठा साबित करने की जिम्मेदारी भारत की है और इस तरह करने की है कि भविष्य में फिर से कोई दूसरी ताकत कभी यह कहने की हिम्मत न जुटा सके कि भारत कश्मीर पर किसी तीसरे मुल्क की मध्यस्थता चाहता है। अमेरिका की यह फितरत रही है कि वह जिस मुल्क से भी दोस्ती बढ़ाता है उसके अन्दरूनी मामलों में दखल देने की पर्दे के पीछे से कोशिशें करता है।  
पूरी दुनिया का इतिहास इसका गवाह है भारत का महान और पारदर्शी लोकतन्त्र उसके निशाने पर है क्योंकि इस व्यवस्था के चलते ही भारत ने तरक्की के नये से नये रिकार्ड कायम किये हैं। इसलिए इस मुल्क के साथ हमें बहुत सावधानी और एहतियात के साथ अपने सम्बन्धों को कायम रखते हुए राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा करनी है। भारत यह कह कर जान नहीं छुड़ा सकता कि डोनाल्ड ट्रम्प के बयानों का यकीन नहीं किया जा सकता क्योंकि वह अपने बयान बदलते रहते हैं मगर हमें ध्यान रखना होगा कि इसी ट्रम्प ने उत्तरी कोरिया जैसे देश के साथ अपने देश के सम्बन्धों को नया मोड़ भी दिया है। 
अतः ट्रम्प की मंशा को हमें गहराई से समझना होगा और उसका माकूल जवाब देना होगा। भारत के विदेश विभाग के प्रवक्ता से लेकर विदेश मन्त्री एस. जयशंकर तक ने यह कह दिया है कि श्री नरेन्द्र मोदी ने ट्रम्प से कश्मीर के बारे में कोई बात नहीं की मगर ट्रम्प ने श्री नरेन्द्र मोदी का नाम लेकर कश्मीर पर मध्यस्थता करने की बात कही है। यह भारत के प्रधानमन्त्री की साख को विवादों में लाने का कुत्सित प्रयास है जिसका करारा जवाब श्री मोदी ही स्वयं दे सकते हैं और भारतवासियों को आश्वस्त कर सकते हैं कि देश की आन,बान और शान के आगे उनकी हस्ती केवल एक सेवक की है।  चाहे चीन हो या अमेरिका भारत के गौरव और सम्मान से खेलने की जुर्रत कोई नहीं कर सकता। 
संसद का सत्र जारी होने की वजह से इस मुद्दे पर भारी हंगामा और शोर-शराबा स्वाभाविक है क्योंकि भारत के प्रधानमन्त्री का नाम लेकर उन्हें अपने ही देश में बदनाम करने की अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ मिल कर शतरंजी बाजी बिछाई है। सवाल ट्रम्प पर यकीन करने का बिल्कुल नहीं है क्योंकि अमेरिका की फितरत से हर भारतवासी अच्छी तरह वाकिफ है मगर सवाल उस भाजपा का है जिसके लिए कश्मीर जनसंघ की स्थापना काल से ही जान से भी ज्यादा प्यारा विषय रहा है। ट्रम्प यदि यह हिमाकत करता है कि विगत 27 जून को जापान के ओसाका शहर में हुए जी-20 देशों के सम्मेलन में श्री नरेन्द्र मोदी ने उनसे कश्मीर पर बात की थी तो वह सीधे भारत के प्रधानमन्त्री की विश्वसनीयता को ही निशाने पर रखना चाहता है और भारतीय राजनीति में कोहराम मचवाना चाहता है। 
दोस्तान ताल्लुकात का मतलब यह नहीं होता कि  दोस्त को ही गहरे पानी में खड़ा कर दिया जाये ? ट्रम्प झूठा है इसे हमें ही सिद्ध करना होगा क्योंकि किसी भी राष्ट्राध्यक्ष के मुंह से निकली किसी प्रेस कान्फेंस में निकली बात पूरी दुनिया की सम्पत्ति हो जाती है। दो संप्रभु देशों के बीच के सम्बन्ध व्यक्तिगत नहीं होते बल्कि सार्वभौमिक स्तर पर सम्मानित होते हैं। इसका प्रतिपादन स्वयं भाजपा अपने जनसंघ काल से करती रही है और कश्मीर तो ऐसा मुद्दा है जिस पर पूरे भारत के उत्तर से लेकर दक्षिण तक के भारतीय एक ही तरह से सोचते हैं कि इसका अन्तिम फैसला 26 अक्टूबर 1947 को हो चुका है और यह भारत का अभिन्न हिस्सा है। 
इसके बारे में किसी तीसरे देश का नाम बीच में आते ही सामान्य भारतीय का स्वभाव स्वयं उग्र हो जाता है और इसी वजह से वह भाजपा की इस नीति का समर्थन भी करता है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद समाप्त नहीं करता है तब तक उससे किसी प्रकार की बातचीत नहीं की जानी चाहिए। मगर देखिये पाकिस्तान की हिमाकत कि वहां का वजीरेआजम डोनाल्ड ट्रम्प से मुलाकात कराने के लिए अपने साथ पाक की फौज के जनरल बाजवा भी ले गया है और आईएसआई का सरपरस्त भी। हमें सावधान होकर अमेरिका के इरादों को समझना होगा। 
इसके साथ यह भी याद रखना होगा कि किस तरह चीन द्वारा मध्यस्थता करने के संकेत भर को भारत ने काफूर कर दिया था और किस तरह शर्म अल शेख में 2009 में डा. मनमोहन सिंह द्वारा बलूचिस्तान के मुद्दे पर भारत को शामिल करने के बयान पर संसद से लेकर सड़क तक प्रतिक्रिया हुई थी क्योंकि इन मसलों को राजनीति के चश्मे से नहीं देखा जाता है बल्कि हिन्दोस्तान की अजमत के नजरिये से देखा जाता है। यह कोरी भावुकता नहीं है बल्कि इसके पीछे देश प्रेम की भावना ही मुखर रहती है। 
जहां तक प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का प्रश्न है, तो मैं व्यक्तिगत तौर पर यह लिख सकता हूं कि श्री नरेन्द्र मोदी देशभक्ति के मामले में मेरे सबसे प्रिय ‘हीरो’ हैं। मैं श्री मोदी पर किंचित मात्र भी इस बात का संदेह नहीं कर सकता कि उन्होंने ट्रंप से भारत-पाक में कश्मीर के इस मुद्दे पर मध्यस्थता की बात भी कभी कही होगी। हां यह हो सकता है कि शायद श्री मोदी ने ट्रंप से भारत-पाक के कश्मीर मुद्दे पर सरसरी बात की हो लेकिन मध्यस्थता की बात तो ‘ट्रंप’ का एक सा​जिशी बयान है।
1947 में अगर पंडित नेहरू कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र न ले जाते तो कश्मीर का मुद्दा तो कब का निपट गया होता लेकिन आज हम नेहरू की गलतियों का खामियाजा भुगत रहे हैं। इसलिए कांग्रेस पार्टी द्वारा इस मुद्दे पर शोर-शराबा करना बेहद शर्मनाक लगता है। जब इसी पार्टी के नेता पंडित जी ने भारत-पाक के कश्मीर मुद्दे का 1947 में ही अंतर्राष्ट्रीयकरण कर दिया था। इसलिए कांग्रेस पार्टी द्वारा इसी मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी के घेरने की कोशिश अन्ततः नाकाम साबित होगी।
अन्त में मैं केवल यह कहूंगा कि दुनिया भर की बातें ट्रंप और मोदी के बीच हुई होंगी, लेकिन भारत-पाक के बीच मध्यस्थता की बात मोदी कर ही नहीं सकते। मैं दावे से लिखता हूं कि भारत के सच्चे सपूत मोदी ने कभी भी ऐसी बात ट्रंप से नहीं की होगी। मोदी ऐसी बात कर ही नहीं सकते।

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