Prime Minister Modi’s faith in Sikh Gurus: प्रधानमंत्री मोदी की सिख गुरुओं के प्रति आस्था
देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सिख गुरु साहिबान के प्रति आस्था के चलते ही सिख समुदाय के लम्बे समय से लटकते हुए मसलों का समाधान निकलता दिख रहा है हालांकि अभी भी गुरुद्वारा ज्ञान गोदड़ी, गुरुद्वारा डोंगमार सिक्किम जैसे मसले हैं जिनके लिए उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले समय में उनका भी कोई समाधान निकल पाएगा। ऐसा शायद इसलिए भी है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश में आपातकाल के समय कई महीनों तक पंजाब में सिख समुदाय के बीच सिखी वेषभूषा धारण कर रहे थे। जिस दौरान उन्होंने गुरु साहिबान के जीवनकाल और सिख इतिहास की जानकारी हासिल की। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लालकिला के मंच से देशवासियों को दिये संदेश में साफ किया था कि अगर गुरु तेग बहादुर साहिब ना होते तो इस देश का नक्शा आज कुछ और ही होता, ना हिन्दू धर्म होता और ना ही हिन्दुस्तान। मगर अफसोस कि आज तक देशवासियों को उन जालिम लोगों का इतिहास पढ़ाया जाता रहा जिन्हांेने जुल्म की इन्तहा करते हुए इस देश में केवल एक ही धर्म रखने की बात की, मगर गुरु साहिबान और सिखों की शहादतों की दास्तान किसी ने बताने की सोची ही नहीं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साहिबजादों की शहादत को ''वीर बाल दिवस'' के रूप में मनाकर देशवासियों को बताया कि गुरु गोबिन्द सिंह जी के साहिबजादे कौन थे और उन्होंने शहादत क्यों और किसलिए दी थी।
गुरु गोबिन्द सिंह जी की जन्म स्थली पटना साहिब जहां सिखों का दूसरा तख्त मौजूद है मगर देश की आजादी से लेकर आज तक 77 सालों में किसी भी प्रधानमंत्री के द्वारा इस पवित्र स्थल के दर्शन तक करना मुनासिब नहीं समझा गया। 1979 में इन्दिरा गांधी यहां जरूर गई, मगर उस समय वह प्रधानमंत्री के पद पर नहीं थी। पद पर रहते हुए नरेन्द्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्हांेने स्वयं तख्त पटना साहिब के दर्शनों की इच्छा जाहिर की और इतना ही नहीं पूर्ण श्रद्धा भावना के साथ सिर पर दस्तार सजाकर, प्रशादि और रुमाला साहिब लेकर तख्त पटना साहिब नतमस्तक हुए, अरदास करते हुए ग्रन्थ साहिब के समक्ष चौर साहिब की, लंगरहाल मंे जाकर लंगर की सेवा निभाई और सिख संगत से मिले भी। मैं तो स्वयं को भी सौभाग्यशाली मानता हूं जो मुझे इन क्षणों का साक्षी बनकर सभी दृश्यांे को देखने को सौभाग्य प्राप्त हुआ। प्रधानमंत्री के आगमन को कुछ लोग राजनीतिक रंग देते हुए इसे सिखों की वोट हासिल करने के लिए की गई कार्यवाही बता रहे हैं मगर शायद उन्हें इस बात का अन्दाजा ही नहीं है कि पूरे पटना में मात्र कुछ हजार ही सिख वोट होंगे। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन इकबाल सिंह लालपुरा का मानना है कि इससे प्रधानमंत्री या उनकी पार्टी को नहीं बल्कि सिख समुदाय को समूचे राष्ट्र में लाभ मिलेगा और जो लोग अभी भी सिखों को नफरत भरी निगाहों से देखते हैं उनकी सोच में बदलाव निश्चित तौर पर आयेगा। आयोग के पूर्व चेयरमैन तरलोचन सिंह का कहना है कि ऐसे प्रधानमंत्री का समुचे सिख समुदाय को शुक्रगुजार होना चाहिए जहां सिख प्रधानमंत्री ने भी अपने 10 साल कार्यकाल के दौरान जाने की सोच नहीं रखी वहां मौजूदा प्रधानमंत्री ने जाकर समूचे सिख कौम को गौरवान्वित किया।
तख्त पटना साहिब कमेटी के द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सफलता और लम्बी आयु के लिए श्री गुरु ग्रन्थ साहिब का अखण्ड पाठ भी रखवाया गया था जिसमंे स्वयं प्रधानमंत्री शामिल हुए और अरदार की। कमेटी के प्रधान जगजोत सिंह सोही, महासचिव इन्द्रजीत सिंह सहित समूची कमेटी के कार्यकाल में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अलावा 3 राष्ट्रपति, 18 कैबिनेट मंत्रियों सहित अनेक राज्यों के मुख्यमंत्री भी नतमस्तक हुए। वैसे तो इस तख्त की इतनी महानता है कि जो भी राजनेता यां प्रशासनिक अधिकारी पटना पहुंचता है वह तख्त साहिब के दर्शनों के लिए स्वयं खिचा चला आता है।
खालसा पंथ की माता साहिब कौर जी
गुरु गोबिंद सिंह जी ने माता साहिब कौर जी को खालसा पंथ की माता होने का गौरव बख्शिश किया था। समूचा पंथ गुरु गोबिन्द सिंह जी को पिता और साहिब कौर जी को माता के रूप में मानता आ रहा है। इतिहास बताता है कि माता जी गुरु जी से मिलने के पश्चात उन्हंे अपना पति मान चुकी थी मगर गुरु गोबिन्द सिंह जी पहले से ही शादीशुदा थे जिसके चलते उन्होंने इस प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया था। माता जी के परिवार वालों की अपील पर गुरुजी उनके आनंदपुर में रहने के लिए सहमत हो गए, लेकिन उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किए बिना, इस शर्त पर स्वीकार किया था कि माता साहिब देवा के साथ संबंध आध्यात्मिक होगा, शारीरिक नहीं। आज लोग साल में एक दिन मदर्स डे मनाकर महिलाओं को सम्मान देने की कोशिश करते हैं मगर सिख धर्म में महिलाओं को हमेशा ही उच्च स्थान दिया जाता रहा है। गुरु नानक देव जी से लेकर गुरु गोबिन्द सिंह जी ने महिलाओं को सम्मान दिया। आज भी सिख समाज उसी परंपरा को निभाता आ रहा है। इसलिए सभी लोगों को चाहिए कि साल मंे एक दिन नहीं बल्कि पूरा साल महिलाओं को माता, बहन, बेटी के रुप में सम्मान दें।
गुरु के सिख का जज्बा
गुरु के सिख में जजबा स्वयं ही आ जाता है जिसका ताजा उदारहण 10 वर्षीय जसप्रीत सिंह में देखने को मिला। पिता की मौत के बाद मां भी चली गई मगर बच्चे ने अपनी ही नहीं बड़ी बहन की पढ़ाई और परवरिश के लिए पिता द्वारा चलाई जा रही छोटी सी रेहड़ी को पुनः शुरू किया। सुबह स्कूल, दोपहर ट्यूशन करते हुए शाम को रेहड़ी पर खड़े होकर गुरु नानक के किरत करो के सन्देश पर पहरा देते हुए काम करने लगा। सोशल मीडिया पर वीिडयो वायरल होने के बाद बड़े-बड़े व्यवसाई, बालीवुड अभिनेता और नेतागण उसकी मदद के लिए आगे आए हैं मगर बच्चे का साफ कहना है कि वह ''गुरु गोबिन्द सिंह जी का पुत्र है'' इसलिए हिम्मत नहीं हारेगा, जब तक शरीर में जान है मेहनत करेगा। लालच में आकर किसी से बिना वजह मदद भी नहीं लेगा। स्थानीय विधायक जरनैल सिंह के द्वारा जसप्रीत के लिए रेहड़ी के स्थान पर एक सुन्दर सा कार्ट बनवा दिया जिसमें खड़े होकर जसप्रीत अब अपने काम को आगे बढ़ा रहा हैं। उसकी सभी से एक ही अपील है कि अगर आप मदद करना चाहते हैं उसके कार्ट पर आकर रोल खाईये। सलाम है गुरु साहिब के इस लाडले बच्चे को जसप्रीत जैसी खुद्दारी हर सिख में होनी चाहिए।