देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सिख समुदाय को लोकसभा चुनाव से पूर्व एक और तोहफा देते हुए तख्त श्री हजूर साहिब नांदेड़ के लिए आदमपुर से दिल्ली होते हुए सीधी हवाई सेवा की शुरुआत कर दी है। जिसका लाभ पंजाब, दिल्ली सहित देश के अन्य हिस्सों में रहने वाले सिखों को ही नहीं बल्कि विदेश से आने वाले सिखों को भी होगा क्योंकि विदेश से जो सिख भारत आते हैं उनकी इच्छा होती है कि जहां वह श्री दरबार साहिब अमृतसर नतमस्तक हों वहीं तख्त श्री हजूर साहिब और तख्त पटना साहिब भी जाएं। मगर श्री हजूर साहिब के लिए सीधी उड़ान सेवा ना होने के कारण वह दर्शनों से वंचित रह जाते थे।
बीते रविवार को स्टार एयरलाईन के द्वारा इस सेवा को शुरू करते हुए पंजाब के आदमपुर हवाई अड्डे से सुबह पहली उड़ान भरी गई जो कि दिल्ली के समीप लगते हिन्डन (गाजियाबाद) हवाई अड्डे पहुंची और दोपहर को नांदेड़ के लिए उड़ान भरी गई। नांदेड़ हवाई अड्डे पर तख्त श्री हजूर साहिब के प्रबन्धकों और संगत ने पहली उड़ान से पहुंचने वाले श्रद्धालुओं का भव्य स्वागत किया। दिल्ली के प्रसिद्ध ट्रांसपोर्टर एम.एम. पाल सिंह गोल्डी स्वयं को सौभाग्यशाली समझते हैं जिन्हें इस उड़ान में सफर करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और उन्होंने अपनी पत्नी संग श्री हजूर साहिब के दर्शन किये। एम.एम. पाल सिंह गोल्डी ने इस कार्य के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिन्दे, उड्डयनमंत्री ज्योतिरादित्या सिंधिया, हजूर साहिब बोर्ड के प्रशासक विजय सतबीर सिंह के साथ-साथ एयरपोर्ट अथार्टी के चेयरमैन संजीव कुमार जो कि महाराष्ट्र कैडर के आईएएस हैं, का आभार प्रकट किया जिनके सहयोग के बिना यह संभव नहीं था। अब संगत मात्र 3 घण्टे में तख्त श्री हजूर साहिब पहुंच सकेगी। एम.एम. पाल सिंह गोल्डी जो कि गुरुघरों में अक्सर सेवाएं देते आ रहे हैं।
दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी में भी उन्होंने काफी सेवा की है और अब हजूर साहिब में चल रहे वृद्ध आश्रम में सेवा करने के साथ-साथ हजूर साहिब कमेटी द्वारा बनाये जाने वाले अस्पताल एवं स्कूल में भी अहम योगदान देने की बात की जा रही है जो कि प्रशंसनीय है।
दिल्ली से पहली उड़ान में केवल कुछ चुनिन्दा धनवान व्यक्तियों को ही शामिल किये जाने से आम सिखों में हजूर साहिब कमेटी के प्रति रोष भी देखने को मिला, यहां तक दिल्ली के सिखों की रहनुमाई करने वाली संस्था दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका, महासचिव जगदीप सिंह काहलो को भी इसमें शामिल नहीं किया गया। इसके पीछे क्या सोच रही इसका बेहतर जवाब तो विजय सतबीर सिंह ही दे सकते हैं। गुरु नानक देव जी ने धनवान मलिक भागौ के बजाए गरीब सिख भाई लालो को तव्वजो दी थी मगर ना जाने क्यों आज सिखों के द्वारा आम सिखों को नजरंदाज करके धनवान सिखों को पहल दी जाती है जो कि गुरु नानक की सोच के पूरी तरह से विपरीत है।
सिख धर्म में दसवंद की परंपरा
सिख धर्म में दसवंद की परंपरा गुरु साहिबान के समय से चलती आ रही है। गुरु अमरदास जी के द्वारा मसंदों को संगत के घरों में जाकर धन, राशन आदि एकत्र करने की प्रथा की शुरुआत की थी। उसके बाद गुरु अर्जुन देव जी ने श्री दरबार साहिब का निर्माण सहित अनेक प्रोजैक्ट शुरू किये जिसके लिए धन की भी आवश्यकता अधिक पड़ने लगी। इसी के चलते गुरु साहिब ने हर सिख को अपनी नेक कमाई में से दसवंद भाव दसवां हिस्सा निकालकर गुरुघरों में देने की अपील की। सिख अपनी दसवंद को जरूरतमंदों में भी खर्च कर सकते हैं। मगर आज भी बहुत कम सिख ऐसे हैं जो अपनी कमाई में से दसवंद निकालते होंगे। यहां तक कि गुरुघरों के ग्रन्थी, प्रचारक, कीर्तनी जत्थे जो दसवंद निकालने की संगत से अपील तो करते हैं, पर शायद उनमें से भी बहुत कम ऐसे होंगे जो स्वयं इस पर अमल करते हुए दसवंद निकालते हों।
भाजपा से जुड़े सिख नेता गुरमीत सिंह सूरा जैसे लोग भी हैं जो अपनी दसवंद समय से निकालकर उन्हें जरूरतमंद बच्चों की एजुकेशन, मरीजों को दवाई, लंगर आदि पर खर्च करते हैं। उनके द्वारा हर साल सिविल सर्विसिज की पढ़ाई करने वाले 2 बच्चों की फीस दी जाती है। अक्सर लोगों के द्वारा अपना जन्मदिन होटलों, क्लबों में जाकर मौज-मस्ती करते हुए मनाया जाता है वहीं गुरमीत सिंह सूरा ने अपने जन्मदिन को अनोखे अन्दाज में मनाते हुए जो बच्चे स्कूल नहीं जा पाते और सड़क किनारे बने सैन्टरों में आकर पढ़ाई करते हैं उन्हें किताबें, कापियां, स्टेशनरी आदि भेंट की गई। यमुनापार में इस तरह के कई सैन्टर चल रहे हैं जहां पर इन बच्चों को बिना किसी फीस के शिक्षा दी जा रही है। गुरमीत सिंह सूरा का मानना है कि उन्हें ऐसा करके बहुत खुशी होती है। वहीं बच्चों के चेहरों पर भी अलग तरह की खुशी देखने को मिली।
जत्थेदार रछपाल सिंह को सदा याद रखा जाएगा
दिल्ली की सिख राजनीति का एक ऐसा नाम जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता, उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा। वह नाम है जत्थेदार रछपाल सिंह का जिन्होंने दिल्ली के सिखों को उनका बनता हक दिलवाने, गुरुद्वारा शीशगंज साहिब की कोतवाली लेने सहित अन्य एेतिहासिक गुरुद्वारों की ज़मीन- जायदाद और शैक्षणिक संस्थानों के निर्माण में अहम भूमिका निभाई। जत्थेदार रछपाल सिंह का जन्म 1924 को मलसिंहा में हुआ। वह शुरू से ही पढ़ाई में काफी तेज थे, पर इसके साथ-साथ वह सिख कौम के बारे में भी सोच रखते थे। बचपन से ही उन्होंने मास्टर तारा सिंह को अपना आदर्श माना और 17 वर्ष की आयु में जब उन्हें पता चला कि मास्टर जी ने मोर्चा लगाया हुआ है तो वह मोर्चे का हिस्सा बनने के लिए दिल्ली आ गए। पहली ही मुलाकात में मास्टर जी उनसे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने जत्थेदार रछपाल सिंह को पंजाबी सूबा मोर्चा की कमान संभालने को दे दी। जत्थेदार जी ने 17 महीने गुरुद्वारा शीश गंज साहिब से मोर्चा चलाया।
पंडित नेहरू जब लालकिले के मंच पर 15 अगस्त को भाषण देने पहुंचे तो उस दौरान गुरुद्वारा शीशगंज साहिब के प्रांगण से काले गुब्बारे हवा में छोड़े गए। इसकी धूम यू.एन.ओ. में भी हुई। पंडित नेहरू ने उसके बाद दिल्ली से मोर्चे की अगुवाई करने वाले शख्स से मिलने की इच्छा ज़ाहिर की तो उन्हें ज्ञात हुआ कि यह वही युवक था जिसने तीन मूर्ति पर धरना लगाकर मास्टर तारा सिंह की रिहाई की मांग की थी। उसके बाद जत्थेदार रछपाल सिंह की लोकप्रियता निरंतर बढ़ती गई और सरकार की नीतियों को सहयोग देकर कौम के मसले हल करवाये। उनका 100वां जन्मदिन मनातेे हुए आज के सिख नेताओं को जत्थेदार रछपाल सिंह जैसे नेताओं से प्रेरणा लेते हुए पंथक मसलों को हल करवाने की पहल करनी चाहिए।
सिखी में क्यों आ रही है गिरावट
सिखी में दिन-प्रतिदिन गिरावट क्यों आ रही है इसकी वजह जानना बहुत ही जरूरी है। गुरु गोबिन्द सिंह जी ने जब सिख समाज की स्थापना की तो उन्होंने पहले पांच प्यारों से उनका शीश लेकर उन्हें अमृतपान करवाकर सिख बनाया गया। गुरु जी ने तो सिखी हासिल करने की खातिर अपने सरवंश को ही कुर्बान कर दिया। गुरु जी ने सिख बनाते समय साफ किया था कि ''रहत प्यारी मुझको, सिख प्यारा नाही'' भाव जो व्यक्ति भले ही देखने में सिख लगता हो मगर उसका किरदार अगर सिखी वाला नहीं तो वह सिख गुरु जी को कबूल नहीं है। सिख का पहला फर्ज बनता है अपने गुरु का सम्मान करना। मौजूदा समय में सिखों के गुरु ग्रन्थ साहिब जी हैं, पर क्या सिख उनका सम्मान पूर्ण रूप से करते हैं जो कि एक अहम सवाल है। बीते दिनों उत्तराखण्ड के काशीपुर में गुरु ग्रन्थ साहिब की मौजूदगी में सिखों में हुए टकराव को देखकर तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता कि वह गुरु साहिब का सम्मान करते हों।
– सुदीप सिंह