भाजपा के लिए पूर्वोत्तर के 8 राज्यों की 25 सीटें बहुत महत्वपूर्ण हैं। कांग्रेस पार्टी भी इस क्षेत्र में अपनी खोई हुई जमीन फिर से पाने के प्रयास में जुट गई है। पूर्वोत्तर में 2014 से पहले भाजपा का जनाधार न के बराबर था। असम को छोड़कर शेष राज्यों में तो भाजपा के गिने-चुने ही विधायक रहे हैं लेकिन नरेन्द्र मोदी की आंधी ने हालात ही बदल दिए। पूर्वोत्तर में 8 राज्यों में या तो भाजपा का शासन है या फिर उसके सहयोगियों की सरकार है। ऐसे में भाजपा को फायदा मिलना तय है। पूरे पूर्वोत्तर में विवादास्पद नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 को लेकर कड़ा रुख भाजपा की विक्षत सीट संख्या जीतने की राह में मुश्किलें पैदा कर रहा था।
राजग के सहयोगियों में नगा पीपुल्स फ्रंट, मेघालय पीपुल्स पार्टी और सिक्किम डैमोक्रेटिक फ्रंट शामिल हैं। भाजपा ने 2014 में असम में 7 सीटें और अरुणाचल की एक सीट जीती थी। पूर्वोत्तर 1952 से कांग्रेस का गढ़ रहा है। वहां वह 8 सीटें जीतने में सफल रही थी। कांग्रेस ने असम में तीन, मणिपुर में दो और अरुणाचल, मेघालय और मिजोरम में एक-एक सीट जीती थी, यह सही है कि नागरिकता संशोधन विधेयक ने राजनीतिक परिदृश्य बदला है। देश के दूसरे राज्यों के विपरीत पूर्वोत्तर में चुनावी राजनीति में मूल पहचान का मुद्दा हमेशा महत्वपूर्ण रहा है। राजग के पक्ष में जो बात दिखाई दे रही है, वह है कि जो सम्मान पूर्वोत्तर को अब मिला है, वह पहले किसी सरकार ने उसे नहीं दिया।
नरेन्द्र मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर पर खास ध्यान दिया है। पूर्वोत्तर के राज्यों की विकास परियोजनाओं पर तेजी से काम किया गया है। इन राज्यों में सम्पर्क बढ़ा है। हाल ही में देश के सबसे बड़े पुल बोगिबिन का उद्घाटन किया गया। सिक्किम में एयरपोर्ट का उद्घाटन हो चुका है। सरकार ने ऐसी व्यवस्था की है ताकि पूर्वोत्तर के लोगों को काम करवाने के लिए दिल्ली न आना पड़े बल्कि दिल्ली स्वयं उनके पास पहुंचे। पूर्वोत्तर की सरकारों के अच्छे कामों का फायदा भाजपा को मिलेगा। असम में मतों का ध्रुवीकरण भाजपा के पक्ष में हो सकता है। नागरिक रजिस्टर के मामले में कांग्रेस का रुख काफी ढीला-ढाला है वहां के लोग अवैध घुसपैठियों से परेशान हैं।
पूर्वोत्तर बदलाव महसूस कर रहा है लेकिन नगा शांति वार्ता समझौते की सामग्री का आप्रकाशन व 7वें वेतन आयोग और कुछ अन्य स्थानीय मुद्दों की सिफारिशों के अनुसार सरकारी कर्मचारियों के वेतन और भत्तों में बढ़ौतरी के लिए आंदोलन से भाजपा की चुनावी संभावनाओं पर असर पड़ सकता है। अरुणाचल में लोकसभा चुनावों के साथ-साथ विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं। अरुणाचल के दो भाजपा मंत्रियों और 11 विधायकों के मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा की पार्टी एनपीपी में शामिल हो जाने से पार्टी को कुछ नुक्सान हो सकता है। चुनावों में आया राम गया राम तो चलता ही रहता है। भाजपा राज्य विधानसभा में नए चेहरे उतार रही है। पूर्वोत्तर की 25 संसदीय सीटों पर मुकाबला दिलचस्प रहेगा लेकिन पलड़ा राजग का ही भारी रहेगा।
नए चेहरे उतारने का भाजपा को हमेशा फायदा ही रहा है क्याेंकि मौजूदा सांसदों और विधायकों के प्रति जनता में कहीं न कहीं नाराजगी होती ही है। इसमें कोई संदेह नहीं कि पूर्वोत्तर के राज्यों में कभी भाजपा का जनाधार कुछ भी नहीं होता था लेकिन पिछले 5 वर्षों में निरंतर विकास परियोजनाओं के चलते पार्टी का जनाधार बढ़ा है। भाजपा ने पूर्वोत्तर में गठबंधन की प्रक्रिया पूरी कर ली है। नागरिकता संशोधन विधेयक के मुद्दे पर दो माह पहले भाजपा से संबंध समाप्त करने वाली असम गण परिषद पुनः भाजपा के साथ आ गई है।
भाजपा ने बोडोलैंड क्रांतिकारी मोर्चा, इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट आफ त्रिपुरा, नेशनल पीपुल्स पार्टी, नेशनलिस्ट डैमोक्रेटिक प्राेग्रेसिव पार्टी, सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा से गठबंधन कर लिया है। क्योंकि नागरिकता संशोधन विधेयक अब एक तरह से ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है क्योंकि भाजपा के मुख्यमंत्री ही इसका विरोध कर रहे थे। इसलिए अब यह मुद्दा ही शांत हो गया है। पुराने सहयोगी दलों को साथ लेने के लिए जिस तरह से उन्हें मनाया गया है वह भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के रणनीतिक कौशल का ही परिणाम है जबकि कांग्रेस अभी तक अपना घर व्यवस्थित नहीं कर पाई है। बाकी चर्चा मैं कल के लेख में करूंगा।