प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सत्ता में वापसी (1) राजनीतिज्ञ की बजाय स्टेटसमैन के रूप में
फ्रांस के भविष्यवक्ता नास्त्रदेमस ने लगभग 450 वर्ष पहले बहुत सी भविष्यवाणियां की थीं, जो समय के साथ सच साबित हुईं। उन्होंने भारत के बारे में भी कई भविष्यवाणियां कीं, उसमें से एक भविष्यवाणी ऐसी है जिसके बारे में दुनियाभर में चर्चा होती है। नास्त्रदेमस ने लिखा थाः-
‘‘तीन ओर से घिरे समुद्र क्षेत्र में वह जन्म लेगा। उसकी प्रशंसा और प्रसिद्धि, सत्ता और शक्ति बढ़ती जाएगी और भूमि व समुद्र में उस जैसा कोई शक्तिशाली नहीं होगा। हालांकि तीनों ओर समुद्र से अन्य देश भी घिरे हुए हैं, जैसे म्यांमार, नार्वे, स्वीडन, फिनलैंड, स्पेन, ईरान लेकिन इन देशों के महाशक्ति बनने की कल्पना नहीं की जा सकती। दूसरी बात यह है कि नास्त्रदेमस ने यह भी स्पष्ट किया था कि वह देश एशिया में है और जिसका नाम सागर के नाम पर आधारित है अर्थात् हिन्द महासागर के नाम पर हिन्दुस्तान।
नास्त्रदेमस की जो भविष्यवाणियां सच साबित हुई थीं उसमें 9/11 वर्ल्ड ट्रेड सैंटर पर आतंकी हमले की भविष्यवाणी सबसे महत्वपूर्ण थी जिसमें कहा गया था कि दो लोहे के पक्षी नई भूूमि की दो बड़ी सी चट्टान से टकराएंगे जिसके बाद युद्ध होगा। उसके बाद दुनियाभर में परिवर्तन होंगे, सांस्कृतिक और धार्मिक संघर्ष बढ़ेगा। फ्रैंच भाषा में लिखी अपनी एक किताब ‘द प्रोफेसीज’ में उन्होंने लिखा है कि एक महान व्यक्ति भारत में जन्म लेगा, जो पूर्व के सभी राष्ट्राध्यक्षों पर हावी होगा। उससे भयभीत होकर उसे सत्ता में आने से रोकने के लिए एक महाशक्ति आैर पड़ोसी देश षड्यंत्र करेंगे परन्तु वह सभी षड्यंत्रों को विफल करता हुआ प्रचंड बहुमत से सत्तासीन हो जाएगा।
नास्त्रदेमस की भविष्यवाणी के अनुसार वह व्यक्ति कौन होगा? इस पर अधिकांश लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम लेते हैं। इस संदर्भ में मैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बतौर मुख्यमंत्री गुजरात में शासन और केन्द्र में देश का नेतृत्व करते हुए पांच वर्ष के शासन और 2019 के लोकसभा चुनावों से पूर्व की परिस्थितियों का आकलन करूं तो मुझे लगता है कि नरेन्द्र मोदी ही 2019 के चुनावों में सत्ता में शानदार वापसी करेंगे और सत्ता में वापसी राजनीतिज्ञ की बजाय स्टेटसमैन के रूप में होगी।
स्टेटसमैन उस व्यक्ति को कहते हैं जो मूलतः राजनीतिक दर्शन के आधार पर राजनीति के क्षेत्र में कभी भी नीतिगत सिद्धांतों से समझौता नहीं करते। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री (कांग्रेस), वल्लभ भाई पटेल (कांग्रेस), राम मनोहर लोहिया (प्रजा सोशलिस्ट पार्टी) और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (भाजपा) को भारतीय राजनीति में स्टेटसमैन के तौर पर माना गया है। स्टेटसमैन को दूरदृष्टा भी कहा जाता है और वह कोई भी निर्णय दूर की सोच के साथ लेते हैं। वर्तमान में अगर उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम की ओर नजर दौड़ाऊं तो नरेन्द्र मोदी के सियासी कद जैसा कोई दूसरा नेता मुझे नजर नहीं आ रहा, जिसकी राष्ट्रीय स्तर पर कोई स्वीकार्यता हो।
2004 के लोकसभा चुनाव राजग सरकार द्वारा अति उत्साह में समय से पूर्व करा लिए गए थे जिसके कारण राजग सरकार अपना 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई थी और सरकार सत्ता से बाहर हो गई थी। सरकार के पराजित होने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि ‘‘हम जनमत का सम्मान करते हैं, हमें जनता से सरकार बनाने का जनादेश नहीं मिला है, अतः हम विपक्ष में बैठेंगे, मेरी पार्टी भले ही हार गई है लेकिन भारत विजयी हुआ है।’’ इसके बाद अटल जी उदासीन हो गए और एक तरह से अज्ञातवास से चले गए क्योंकि उम्र के कारण वे सक्रिय भूमिका नहीं निभा पा रहे थे। उसके बाद पार्टी की कमान लालकृष्ण अडवानी के हाथ में आई।
2009 के लोकसभा चुनावों में भी भाजपा को करारी हार मिली। भाजपा को 116 सीटों पर ही जीत मिल सकी। यह संख्या 2004 की 138 सीटों से भी काफी कम थी। हार पर चिंतन-मंथन करने के बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बदले गए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भाजपा की स्थिति को लेकर काफी चिन्तित था। एक बार फिर पार्टी की कमान राजनाथ सिंह को सौंपी गई तो उन्होंने भाजपा की नीति निर्धारण एवं निर्णय लेने वाली सबसे सशक्त संस्था संसदीय बोर्ड का पुनर्गठन किया और इस बोर्ड में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को शामिल किया। इस उच्चस्तरीय संस्था में शामिल नरेन्द्र मोदी अकेले मुख्यमंत्री थे।
नरेन्द्र मोदी 2012 के गुजरात विधानसभा चुनावों में पूर्ण बहुमत से सत्ता में आए तो यह नरेन्द्र मोदी की लगातार तीसरी जीत थी आैर वे चौथी बार गुजरात के मुख्यमंत्री हुए। तभी पार्टी स्तर पर महसूस किया जाने लगा था कि मोदी के नेतृत्व की पकड़ भाजपा पर मजबूत होती जा रही है आैर साथ ही उनका विकास का एजेंडा लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगा था। तब तक किसी को अहसास ही नहीं हो रहा था कि वे एक दिन राष्ट्र के नायक के रूप में उभरेंगे। पार्टी में सियासी उबाल के बीच नरेन्द्र मोदी को भाजपा संसदीय बोर्ड ने 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया। पार्टी के भीतर दिग्गजों ने विरोध भी किया, परंतु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नरेन्द्र मोदी के नाम पर सहमत था। तब से नरेन्द्र मोदी अनथक यात्रा पर निकल पड़े और इसी यात्रा ने उन्हें राष्ट्र का नायक बना डाला। 2019 की चुनावी परिस्थितियों का आकलन मैं अगले अंक में करूंगा। (क्रमशः)