लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

प्रधानमंत्री की राष्ट्रीय एकता बैठक

कोरोना वायरस के संकट से जूझ रहे देश को इसका मुकाबला एकजुट होकर करने की जरूरत है और भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में इस पर किसी प्रकार की राजनीति नहीं हो सकती।

कोरोना वायरस के संकट से जूझ रहे देश को इसका मुकाबला एकजुट होकर करने की जरूरत है और भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में इस पर किसी प्रकार की राजनीति नहीं हो सकती। इसका सीधा सम्बन्ध  लोकतन्त्र के मालिक आम लोगों का जीवन बचाने से है और यह काम उन्हें करना है जिनके हाथ में इन्हीं लोगों ने सत्ता सौंप कर शासन चलाने की जिम्मेदारी सौंपी है। यह कार्य विचाधारा या राजनीतिक दर्शन से ऊपर उठ कर मानव अस्तित्व का है, जिसके अस्तित्व पर ही विश्व के सभी मत, धर्म, समुदाय आदि निर्भर करते हैं। अतः आगामी 8 अप्रैल को प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक को ‘राष्ट्रीय एकता बैठक’ में परिवर्तित करने की जिम्मेदारी भाजपा व कांग्रेस समेत सभी अन्य राजनीतिक पार्टियों की है।
 इस बैठक का लक्ष्य कोरोना से लड़ने के जारी सरकारी प्रयासों में अतिरिक्त संपुष्ट प्रयासों का समावेश होना चाहिए और वर्तमान स्थिति की निष्पक्ष और तटस्थ समीक्षा होनी चाहिए जिससे उन खामियों को भरा जा सके जो जमीनी स्तर पर साफ दिखाई दे रही हैं। सबसे बड़ी खामी तबलीगी जमात के लोगों के व्यवहार से पैदा हो रही है जिसने कोरोना वायरस को ‘मजहबी चोला’ पहना दिया है। इस वायरस से लड़ने के लिए जो वैज्ञानिक चिकित्सीय उपाय विश्व स्तर पर दवा के तौर पर सुझाये गये हैं जमात के लोग न केवल उनका विरोध कर रहे हैं बल्कि अपनी ‘कबायली’ जहनियत को उन पर लादने की हिमाकत कर रहे हैं। ये जमाती भाईचारे की सारी सीमाएं तोड़ कर अपना मर्ज अपने ही बिरादराने वतन में बांटने पर तुले हुए हैं। कभी अस्पतालों में नमाज अदा करने के बहाने अलग-अलग रखे गये ये जमाती इकट्ठा हो जाते हैं तो कभी चिकित्सा कर्मचारियों के साथ बदतमीजी और बेशर्मी का व्यवहार करते हैं तो कभी हिंसक तक होकर तमाम इंतजामों की धज्जियां उड़ाने लगते हैं। 
यह पूरी तरह ‘राष्ट्र विरोधी’ कार्य है और इसका भुगतान इसी नजरिये से बने कानून के तहत होना चाहिए। इन्हें मालूम होना चाहिए कि मरीज होना कोई जुर्म नहीं है मगर अपना मर्ज दूसरे लोगों तक इरादतन पहुंचाना संजीदा जुर्म है। जमातियों को मर्ज या बीमारी से बचाने के लिए ही सरकारी अमला रात-दिन इंतजाम में लगा हुआ है औरा खुद अपने को खतरे में डाल कर वह मरीजों की सेवा कर रहा है। इन सेवादारों पर हमला खुदा की सान में गुस्ताखी के अलावा और कुछ नहीं माना जा सकता। इस्लाम इखलाक का मजहब है जिसमें अल्लाह के सामने हाजिरी अच्छे कामों से होती है। हकीकत बयान करूं तो यह दुनिया का अनोखा और पहला समाजवादी धर्म है जिसमें अल्लाह की बारगाह में न कोई बन्दा होता है न बन्दानवाज न कोई बादशाह होता है और न कोई फकीर, सब बराबर हो जाते हैं मगर कट्टरपंथियों ने इस धर्म की पाकीजा रवायतों को अपने अमल से विवादों में डालने में कोई कसर नहीं रखी। सलात अर्थात खुदा की इबादत नुमाइश का मंजर कैसे बन सकती है जबकि रसूले पाक हजरत मोहम्मद साहब (एसएएस) ने फरमाया कि अच्छे काम करने से अल्लाह महान खुश होता है। अतः जो भी जमाती अखालक की हदें पार करके बदतमीजी करता है तो जाहिराना तौर पर वह बद-अखलाकी करता है और अल्लाह उसे किसी सूरत मंे माफ नहीं कर सकता। ऐसा करके वह अपने वतन से बेवफाई का सबूत देता है जबकि कुरान-ए-मजीद में साफ कहा गया है कि अपने वतन से प्यार करो इसलिए शिया मुस्लिम रहबरों की यह मांग गलत नहीं है कि ऐसे सभी जमातियों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू किया जाये जो कोरोना से लड़ने के लिए मुफीद मशवरे को नहीं मानते और अपनी जिद पूरी करते हैं।  इसके अलावा विपक्षी दलों के नेताओं के साथ बैठक में प्रधानमन्त्री को भी अपनी सरकार द्वारा किये गये कार्यों का पूरा ब्यौरा देना चाहिए और बताना चाहिए कि आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की मदद के लिए कारगर उपाय किस तरह लागू किये जा रहे हैं, लेकिन महत्वपूर्ण यह भी कम नहीं होगा कि विपक्षी व अन्य दलों के नेता सरकार को अपने सुझाव किस स्तर पर देते हैं।
 जाहिर है कि अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के भाव 20 डालर प्रति बैरल तक गिर जाने का लाभ आम उपभोक्ताओं को देने की मांग इस बैठक में उठ सकती है जो किसी हद तक जायज भी है परन्तु यह भी सोचना होगा कि कोरोना से उपजे लाॅकडाऊन की वजह से देश की अर्थव्यवस्था को जो भारी नुकसान पहुंचा है उसकी भरपाई किस प्रकार होगी और लाॅकडाऊन समाप्त होने पर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कौन से उपाय जल्दी करने पड़ेंगे। इसमें कोई दो राय नहीं है कि संसद में बैठे भाजपा के अलावा अन्य राजनीतिक दलों के नेता भी आम जनता का ही प्रतिनिधित्व करते हैं और उसके दुखों से उनका भी उतना लेना-देना है जितना कि सत्ता पक्ष में बैठे हुकूमत की बागडोर संभाले नेताओं का। इसलिए दोनों को मिल-जुल कर समग्र समाधान ऐसा निकालना चाहिए जिससे कोरोना ‘पस्त’ हो हिन्दोस्तान की ‘जीत’ हो। 
यह बैठक राजनीतिक अंक बटोरने के लिए तो पक्के तौर पर नहीं हो रही है इसलिए सरकार को भी कांग्रेस नेता पी. चिदम्बरम के उस सुझाव पर ध्यान देना चाहिए जिसमें गरीबों को जनधन खातों में सीधे नकद रोकड़ा भेजने का उपाय बताया गया था। इसी प्रकार विपक्ष को पांच अप्रैल को रात्रि नौ बजे  अन्धेरा करके दीप जलाने पर भी कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। यह संकट का समय है जिसमें सभी देशवासियों में ऊर्जा बनाये रखने की सख्त जरूरत है। लाॅकडाऊन वर्तमान पीढ़ी के लिए ही नहीं बल्कि जीवन के अन्तिम प्रहर में जी रही पुरानी कई पीढि़यों के लोगों के लिए भी यह अजूबा है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

three + 6 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।