संसद के दोनों सदनों में सांसद प्राइवेट बिल पेश करते रहे हैं। निजी सदस्य विधेयक वे होते हैं जिन्हें सांसद अपनी व्यक्तिगत क्षमता में पेश करते है। प्राइवेट बिल लाने का उद्देश्य नई बातों को उजागर करना होता है। जिन्हें वे सोचते हैं कि उन पर विचार किया जाना चाहिए और उसके बाद मौजूदा कानूनों में आवश्यक फेरबदल या संशोधन किया जाना चाहिए। अक्सर देखा जाता है कि सत्तारूढ़ दल प्राइवेट मेंबर बिल को ज्यादा महत्व नहीं देते और इन्हें विपक्षी नजरिये से पेश किया बिल करार दिया जाता है। यद्यपि ऐसा बिल कोई भी पेश कर सकता है। सदन में बहुमत न होने से प्राइवेट मेंबर बिल का पारित होना सम्भव नहीं होता।
देश के इतिहास में दोनों सदनों ने साल 1970 में एक प्राइवेट मेंबर्स बिल पारित किया था। यह सर्वोच्च न्यायालय के आपराधिक अपीलीय क्षेत्राधिकार का विस्तार बिल 1968 था। इसके बाद से अब तक संसद में कोई प्राइवेट मेंबर का बिल पास होकर कानून नहीं बन पाया है। आजादी के बाद अब तक संसद में कुल 14 प्राइवेट मेंबर्स बिल पास होकर कानून बने हैं। इनमें से छह बिल अकेले 1956 में पास हुए थे। कुछ प्राइवेट मेंबर्स बिल जो कानून बन गए हैं। इनमें लोकसभा में कार्यवाही (प्रकाशन संरक्षण) विधेयक, 1956, संसद सदस्यों के वेतन और भत्ते (संशोधन) विधेयक, 1964 और राज्यसभा में पेश किया गया भारतीय दंड संहिता (संशोधन) विधेयक, 1967 शामिल हैं। साल 2014-19 में 16वीं लोकसभा में सबसे अधिक 999 प्राइवेट मेंबर बिल पेश हुए थे। इस लोकसभा के 142 प्राइवेट मेंबर्स ने बिल पेश किए थे। इनमें 34 ऐसे थे जिन्होंने 10 से अधिक बिल पेश किए थे।
संसद के बजट सत्र के दौरान शुक्रवार को कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने तीन प्राइवेट बिल पेश किए। एक विधेयक में कहा गया है कि लोकसभा में कम से कम 10 प्रतिशत सीटें उन युवाओं के लिए आरक्षित होनी चाहिए जिनकी उम्र 35 साल से कम है। शशि थरूर ने कहा कि सांसदों की आयु में अंतर के मामले में हमारे देश का वर्ल्ड रिकार्ड है। जिस हिसाब से देश की जनसंख्या में युवाओं का योगदान है उस हिसाब से संसद में उनकी संख्या नहीं है। इसलिए संसद को फैसला लेना चाहिए कि युवाओं के लिए आरक्षण कैसे लागू किया जाए। उन्होंने सुझाव दिया कि ऐसा भी किया जा सकता है कि लोकसभा में सदस्यों की कुल संख्या के अतिरिक्त 10 सीटें युवाओं के लिए आरक्षित की जाएं। इन सीटों पर लोकसभा चुनाव हारने वाले 10 अच्छे युवाओं को शामिल किया जा सकता है। नगीना से सांसद चन्द्रशेखर आजाद ने भी प्राइवेट सैक्टर में आरक्षण के िलए बिल पेश किया। उन्होंने कहा कि सरकारी नौकरियों में लगातार कमी हो रही है और बहुत सारा काम प्राइवेट सैक्टर को सौंपा जा रहा है। ऐसे में प्राइवेट सैक्टर में भी आरक्षण जरूरी हो गया है। इसके अलावा जनता दल (यू) के सांसद आलोक कुमार सुमन ने बिहार के एससी, एसटी और ओबीसी को आरक्षण से स्पैशल पैकेज देने के संबंधी प्राइवेट बिल पेश किया। जबकि राज्यसभा में केरल के सांसद जॉन ब्रिटास ने अनुच्छेद 157 में संशोधन के िलए प्राइवेट बिल पेश किया जिस पर राज्यसभा में अफरातफरी मच गई। अनुच्छेद 157 राज्यपाल के कार्यालय की स्थितियों से संबंधित हैं। जॉन ब्रिटास ने विधेयक पेश करते हुए कहा कि राज्यपाल को मंत्रिपरिषद के परामर्श के अनुसार संविधान के प्रावधानों के अनुरूप अपना दायित्व निभाना चाहिए। ट्रेजरी बैंच ने विधेयक का कड़ा विरोध किया और कहा कि संविधान के अनुसार राज्यपाल राष्ट्रपति का प्रतिनिधि होता है। अगर राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुरूप चलने के लिए कहा जाता है तो फिर राष्ट्रपति का अधिकार कहां रह जाता है। मैं निजी विधेयकों के गुण, अवगुण का विश्लेषण नहीं करना चाहता। मैं केवल यह कहना चाहता हूं िक निजी विधेयकों पर गम्भीरता से चर्चा होनी चाहिए और अगर कोई अच्छी बात सामने आती है तो उसे अपनाए जाने की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए।
कांग्रेस सांसद शशि थरूर का युवाओं को लोकसभा में प्रतिनिधित्व देने का विचार अच्छा है लेिकन जहां तक सांसद चन्द्रशेखर आजाद का प्राइवेट सैक्टर में आरक्षण का विचार है, इस मुद्दे पर कर्नाटक में पहले ही काफी विवाद हो चुका है। प्राइवेट सैक्टर जबर्दस्त ढंग से आरक्षण का विराेध कर चुका है। जहां तक राज्यपालों की भूमिका का सवाल है केरल, पश्चिम बंगाल, पंजाब और अन्य कुछ राज्यों में राज्यपालों और राज्य सरकारों में टकराव साफ िदखाई देता है और राज्यपालों द्वारा राज्य सरकारों के विधेयकों को लटकाए जाने और राष्ट्रपति को रैफर करने का मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंच चुका है। राज्यपालों को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर काम करना चाहिए लेकिन ऐसा िदखाई नहीं दे रहा। किसान संगठन एमएसपी पर प्राइवेट बिल लाने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार एमएसपी पर कोई बात नहीं करना चाहती इसिलए विपक्ष के पास इस बिल को लाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। जन-जन की आवाज को संसद में पहुंचाने के लिए निजी विधेयकों पर विचार-विमर्श जरूरी है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com