वैश्विक अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र की अहम भूमिका है। राजनीतिक, सामाजिक क्षेत्र के विकास में निजी क्षेत्र निरंतर अपनी भूमिका निभा रहा है। अब तो अंतरिक्ष मिशन में भी निजी क्षेत्र अपनी धमक दिखा रहा है। इन्हीं के बदौलत चांद पर भारत का पड़ोसी बन गया है अमेरिका। दरअसल अमेरिका की एक प्राइवेट कम्पनी इंटूइटिव मशीन्स का लैंडर ओडिसियस चन्द्रमा के साउथ पोल पर लैंड िकया है। निजी क्षेत्र की कम्पनी ने चन्द्रमा पर वापस पहुंचाने में 51 साल बाद अमेरिका की मदद की है।
इंटूइटिव मशीन्स नाम की ह्यूस्टन की ये कंपनी पहली निजी कंपनी बन गई है जिसने सफलतापूर्वक चांद पर अपना लैंडर उतारा है।
कंपनी ने ओडेसियस नाम का अपना मून लैंडर चांद के दक्षिणी ध्रुव की तरफ़ उतारा है। लैंडर को उतारते वक्त कंट्रोलर्स का उसके साथ संपर्क कुछ पलों के लिए टूट गया था लेकिन फिर जल्द इसे सिग्नल मिलने लगा। 1972 में अपोलो मिशन के बाद से अमेरिका ने चांद पर अपना मिशन नहीं भेजा था। क़रीब पांच दशक बाद पहली बार इंटूइटिव मशीन्स ने ये रिकॉर्ड तोड़कर अपना ओडेसियस लैंडर चांद पर उतार दिया है। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने ओडेसियस लैंडर के ज़रिए छह वैज्ञानिक उपकरण चांद पर भेजे हैं। नासा के एडमिनिस्ट्रेटर बिल नेल्सन ने कंपनी को मुबारकबाद दी है और इसे एक बड़ी जीत कहा है।
इससे यह भी पता चला है कि नासा की कमर्शियल पार्टनरशिप कितनी दमदार और महत्वाकांक्षी है। इंटूइटिव मशीन्स और एस्ट्रोबोटिक दोनों ने अंतरिक्ष एजेंसी के सीएलपीएस कार्यक्रम के साथ भागीदारी की, जिसे आर्टेमिस के लिए कमर्शियल लैंडर्स के विकास को बढ़ावा देने में मदद करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
अब तो प्राइवेट कम्पनियां स्पेस टूरिज्म के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा करने लगी हैं। चंद पलों के मनोरंजन के लिए रहीस लोग करोड़ों रुपए खर्च करने को तैयार हैं। स्पेस टूरिज्म में अरबपति बिजनेसमैन अब खुद स्पेस टूरिज्म में उतर चुके हैं।
वर्जिन गैलेक्टिक के अलावा 50 अन्य कंपनियां भी इस ओर काम कर रही हैं। अमेजन ग्रुप की ब्लू ओरिजिन, स्पेस एडवेंचर्स , स्पेसएक्स, कोस्मोकर्स , रोस्कोमोस और एक्सिओम स्पेस इनमें प्रमुख हैं। करोड़ों में टिकट बेचकर अमीरों को अंतरिक्ष की सैर कराई जा रही है।
ऐतिहासिक रूप से इसरो के तत्वावधान में अब तक किए गए प्रयास केवल सरकारी क्षेत्र के लिए थे। हालांकि अब एक आदर्श बदलाव सामने आया है जिसमें 500 से अधिक कमर्शियल इंटरप्राइजेज रॉकेट और सैटेलाइट निर्माण के लिए आवश्यक यांत्रिक और विद्युत घटकों के विकास में योगदान देने के लिए इसरो के साथ सहयोग कर रहे हैं।
प्राइवेट इंटरप्राइजेज प्रेरक शक्ति के रूप में उभरे हैं जो 90 प्रतिशत सैटेलाइट कैरियर और 55 प्रतिशत से अधिक सैटेलाइट के निर्माण के लिए जिम्मेदार हैं। इस बड़ी छलांग का श्रेय इसरो द्वारा 250 से अधिक निजी कंपनियों को 363 प्रौद्योगिकियों के रणनीतिक हस्तांतरण को दिया जा सकता है।
नतीजतन विभिन्न मोर्चों पर उल्लेखनीय प्रगति स्पष्ट है। रॉकेट निर्माण में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले स्काईरूट और अग्निकुल कॉसमॉस से लेकर सैटेलाइट निर्माण में आगे बढ़ने वाले अनंत टेक्नोलॉजीज, गैलेक्सआई स्पेस, ध्रुव स्पेस, पिक्सेल, स्पेस किड्ज़ इंडिया तक हैं। इसके अतिरिक्त, बेलाट्रिक्स एयरोस्पेस और दिगंतरा जैसी कंपनियां संबद्ध क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति कर रही हैं। हालांकि, चूंकि अंतरिक्ष अनुसंधान भी राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय है, इसलिए इसे विनियमित किया जाना चाहिए। हालांकि यह सहयोग वैश्विक अर्थव्यवस्था में हमारी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है लेकिन उपग्रह और रॉकेट प्रोडक्शन के पैमाने के लिए अकेले इसरो के दायरे से परे सहयोगात्मक प्रयासों की आवश्यकता है। अंतरिक्ष उद्योग में इच्छुक उद्यमियों के लिए वित्तीय बाधा को पहचानते हुए सरकार ने एक नई रणनीति तैयार की है।
एक वक्त था जब भारत में देसी निजी कंपनियों के रॉकेट अंतरिक्ष में भेजने की व्यवस्था ही नहीं थी। अब निजी कंपनियां तेजी से पांव पसार रही हैं। भारत में 190 स्टार्टअप कंपनियां हैं जो अंतरिक्ष उद्योग में काम कर रही हैं। एक साल में इनकी संख्या दोगुनी हो चुकी है। कंसल्टेंसी कंपनी डेलॉइट के मुताबिक 2021 और 2022 के बीच निजी अंतरिक्ष उद्योग में निवेश 77 फीसदी बढ़ा है। बहुत सारे निवेशक इस तरफ देखने को भी राजी नहीं थे क्योंकि अंतरिक्ष तकनीक में खतरा बहुत था। अब एक के बाद एक कंपनियां भारत में निवेश पा रही हैं। लगातार नई कंपनियां शुरू हो रही हैं । सीमित संसाधनों के बावजूद भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। अगस्त में ही उसने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर एक रोवर उतारा जो आज तक कोई नहीं कर पाया था। इसके अलावा इसरो ने पिछले महीने की शुरुआत में ही सूर्य अनुसंधान अभियान भेजा है जो सौर मंडल के केंद्र में जा रहा है। अगले साल उसकी यात्रियों को पृथ्वी की कक्षा में भेजने की योजना है। यह सब इसरो ने हासिल किया है।