लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

मौलिक अधिकारों की रक्षा हो

कोरोना काल में सब कुछ ठहर गया था और इस वायरस ने व्यापार, उद्योग, शिक्षा का क्षेत्र और मनोरंजन उद्योग सब प्रभावित हुए। इसका असर यह हुआ कि लोग भी बहुत प्रभावित हुए।

कोरोना काल में सब कुछ ठहर गया था और इस वायरस ने व्यापार, उद्योग, शिक्षा का क्षेत्र और मनोरंजन उद्योग सब प्रभावित हुए। इसका असर यह हुआ कि लोग भी बहुत प्रभावित हुए। अब जबकि स्थितियां सामान्य होने की ओर अग्रसर हैं तो हमें कोरोना यौद्धाओं को राहत देने की भी व्यवस्था करनी ही होगी। इसके लिए सत्ता और स्थानीय प्रशासन को कंधे से कंधा मिलाकर काम करना होगा तभी व्यवस्था को पटरी पर लाया जा सकता है।  संविधान में जीवन यापन का अधिकार सबसे महत्वपूर्ण है।  1949 में बने हमारे संविधान में मौलिक अधिकारों को स्थान दिया गया तथा सन् 1976 के 42वें संविधान संशोधन ने उसमें नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्य भी जोड़े हैं। हमारे संविधान में मौलिक अधिकारों को शामिल किया जाना अभूतपूर्व घटना नहीं है। अधिकारों के बिना मनुष्य सभ्य जीवन व्यतीत नहीं कर सकता। अधिकारहीन मनुष्य की स्थिति ​बंद पशु या पक्षी की तरह है। अंतः सभ्य जीवन का मापन अधिकारों की व्यवस्था से किया जा सकता है। राज्य में लोगों को जितने अधिक अधिकार प्राप्त होंगे वे उतना ही अधिक विकसित होते हैं तथा वे अपने अधिकारों की व्यवस्था को हर कीमत पर सुरक्षित रखते हैं।
यह भी जरूरी है कि इन महत्वपूर्ण अधिकारों को कानूनी संरक्षण प्राप्त हो इस नाते उन्हें संविधान में लिख दिया जाए लेकिन यदि लोग जागरूक हैं तो संविधान में न लिखे होने पर भी उनका महत्व कम नहीं होता। इंग्लैंड में कोई लिखित संविधान नहीं है फिर भी वहां के लोग अपने मौलिक अधिकारों का प्रयोग करते हैं। भारत में समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धर्म का अधिकार, संस्कृति और शिक्षा का अधिकार और संवैधानिक उपचारों का अधिकार को मौलिक अधिकार माना गया है। यह काफी दुखद है कि भारत की न्यायपालिका को बार-बार लोकतांत्रिक संस्थाओं और स्थानीय निकायों को मौलिक अधिकार याद दिलाने पड़ते हैं।
दिल्ली के तीनों नगर निगमों के कर्मचारी वेतन न मिलने के कारण हड़ताल पर हैं। वेतन ना दिए जाने की वजह निगमों में धन की कमी बताई जा रही है। कर्मचारियों को वेतन और पैंशन का भुगतान न करने पर दिल्ली हाईकोर्ट ने नगर निगमों की जमकर ​खिंचाई की। कोर्ट ने कहा कि धन की कमी को वजह नहीं बनाया जा सकता। कोर्ट ने वेतन और पैंशन को लोगों का मौलिक अधिकार बताते हुए कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत वेतन का भुगतान नहीं करने का सीधा असर लोगों के जीवन की गुणवत्ता पर पड़ेगा।
इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोना काल जब से शुरू हुआ है निगम अस्पतालों के डाक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने अपनी शानदार सेवाएं दी हैं। पहले निगम अस्पतालों के डाक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ अपने वेतन को लेकर आंदोलन करते रहे हैं। अब नगर निगम के कर्मचारी वेतन न मिलने को लेकर सात जनवरी से हड़ताल पर हैं। किसी ने अपने बच्चों की फीस चुकानी है तो किसी को अपने वृद्ध मां-बाप का इलाज कराना है, किसी को मकान का किराया देना है तो किसी ने बैंक की ईएमआई भरनी है। कोरोना महामारी के चलते उन्होंने 24 घंटे काम किया है, अगर उन्हें कुछ माह से वेतन नहीं मिल रहा तो वे जीवन यापन कैसे कर पाएंगे। उनकी पूरी बचत खत्म हो चुकी है और वे तंगहाली में जी रहे हैं।
इससे पहले हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रेखा पिल्लई की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कड़ी टिप्पणी की थी कि यदि वेतन में कटौती करनी है तो पहले पार्षदों और अधिकारियों से इसकी शुरूआत होनी चाहिए। शीर्ष पदों पर आसीन लोग राजाओं की तरह रह रहे है। एक बार उन्हें तकलीफ महसूस होगी तो चीजें अपने आप काम करने लगेंगी। तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी परेशान क्यों हों। फंड के न होने का तर्क स्वीकार नहीं किया जा सकता। खंडपीठ ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया कि दिल्ली सरकार द्वारा निगमों को दिए गए पैसे में ऋण की राशि काट ली है। निगमों में फंड की कमी को लेकर सियासत भी चल रही है। इसका ठीकरा दिल्ली सरकार पर फोड़ा जा रहा है। संकट काल में प्रबंधन का कौशल दिखाने से ही स्थितियों से निपटा जा सकता है। सफाई कर्मचारियों की हड़ताल से दिल्ली में जगह-जगह कूड़े के अम्बार लगे हुए हैं। बाजारों के दुकानदार स्वयं धन खर्च कर प्राइवेट लोगों से कूड़ा उठवा रहे हैं लेकिन निगम अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को कोई चिंता नहीं। नगर निगम केन्द्र सरकार से मदद ले सकते हैं। कोरोना काल में नगर निगमों का कामकाज प्रभावित होने से राजस्व संग्रह में कमी आई है लेकिन अब तो कामकाज सामान्य होने लगा है। सेवारत लोगों को वेतन और सेवानिवृत्त कर्मियों को पैंशन का भुगतान न होने से उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अदालत ने नगर निगमों से विभिन्न करों पर किए जाने वाले खर्च का ब्यौरा मांगा है। कर्मचारियों को काम के बदले वेतन तो मिलना ही चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

10 − 7 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।