टोक्यो में ऐतिहासिक समारोह में अकिहितो ने सम्राट का पद छोड़ दिया। जापान के 200 साल के इतिहास में ऐसा करने वाले वह पहले राजा हैं। सम्राट अकिहितो के बेटे युवराज नारुहितो राजगद्दी पर बैठ गए हैं। आधुनिक युग में राजा-महाराजाओं के घरानों की परम्पराएं देखने पर आश्चर्य भी होता है। यह सही है कि जापान के राजा के पास कोई राजनीतिक शक्ति नहीं होती लेकिन उन्हें एक राष्ट्रीय प्रतीक के तौर पर देखा जाता है। अकिहितो ने बढ़ती उम्र के कारण स्वेच्छा से पद छोड़ा है, क्योंकि जापान में राजा की सेवानिवृत्ति सम्बन्धी कोई नियम नहीं था इसलिए जापान की संसद ने एक विशेष कानून बनाकर राजगद्दी छोड़ने की इजाजत दी। अकिहितो का राजघराना दुनिया का एक ऐसा राजघराना है जो पिछले 2600 साल से जापान पर शासन करता चला आ रहा है। जापान के सम्राट को भगवान समझा जाता था लेकिन अकिहितो के पिता सम्राट हिरोहितो ने दूसरे विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद यह स्वीकार किया था कि उनमें कोई दैवीय शक्ति नहीं है, वह एक साधारण इन्सान हैं। विश्व युद्ध में जापान के आत्मसमर्पण के बाद सम्राट के रुतबे को काफी आघात लगा था लेकिन 1989 में अकिहितो के सम्राट का पद सम्भालने के बाद जापान की शानो-शौकत को पुनः बहाल किया गया।
सम्राट होते हुए भी अकिहितो ने राजशाही की परम्पराओं को तोड़ा और उन्होंने स्वयं काे जनता का सम्राट साबित कर दिखाया। पहले जापान के राजा जनता से नहीं मिलते थे लेकिन अकिहितो ने इसे बदल डाला और आम जनता से अपना सम्पर्क बढ़ाया। अकिहितो परम्पराओं के उलट अपनी पत्नी महारानी मिचिको के साथ लोगों के बीच जाते थे आैर खासतौर से उन लोगों से मिलते थे जो विकलांग या भेदभाव का सामना करते थे। प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों की मदद के लिए वह आगे आए और उन्होंने इसके लिए बहुत काम भी किया। अकिहितो ने एक साधारण महिला से शादी की थी। वह टेलीविजन पर लाइव अपने विषयों पर बातचीत करते थे। उन्होंने अपने बच्चों की परवरिश में भी हाथ बंटाया। जापान का इतिहास युद्धों से भरा पड़ा है। जापानी सैनिकों ने पहले नानजिंग और फिर चीन गणराज्य की राजधानी पर हमला किया था और एक सप्ताह में 3 लाख चीनी नागरिकों को मार डाला था। बड़े पैमाने पर नरसंहार के बाद दुनिया में तूफान खड़ा हो गया था। 1940 में जापान आधिकारिक रूप से द्वितीय युद्ध में शामिल हुआ। इस युद्ध में वह इटली और जर्मनी के साथ खड़ा हुआ। जापान के इतिहास में युद्ध के यह वर्ष विवादास्पद अवधि बन गए।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी सैनिकों ने 2 लाख कोरियाई महिलाओं को सैक्स दास बनने को मजबूर किया। 1945 में अमेरिका द्वारा जापान पर परमाणु बम गिराने के साथ ही देश के हालात बिगड़ गए। पूरी दुनिया ने हिरोशिमा आैर नागासाकी का विनाश देखा। आत्मसमर्पण करने के बावजूद हिरोहितो 20 साल तक सत्ता में रहे। युद्ध के बाद अमेरिका ने जापान पर कब्जा कर लिया। नए संविधान में शाही परिवार को राजनीति में शामिल होने से प्रितबंधित कर दिया गया। 1989 में अकिहितो को सम्राट बनाया गया तो उन्होंने लोगों के घावों पर मरहम लगाना शुरू किया। उनके शासनकाल को ‘हेसी’ युग कहा जाता है जिसका अर्थ ‘शांति प्राप्त करना’ है। सम्राट अकिहितो ने दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति रोह ताए को भोज दिया और उन्होंने जापान के आक्रमण की जिम्मेदारी लेते हुए अफसोस भी व्यक्त किया। सम्राट अकिहितो ने चीन की यात्रा भी की आैर युद्धकाल के लिए गहरी उदासी व्यक्त की। उन्होंने उन सभी जगह यात्रा की जहां जापान के सैनिकों ने लोग प्रताड़ित किए थे। इसी के चलते लोगों में अकिहितो का सम्मान बढ़ गया और वह जनता के दिलों के राजा बन गए।
जापान दुनिया का सबसे मेहनती देश है। टैक्नोलॉजी इसकी पहचान बन चुकी है। अमेरिका द्वारा तहस-नहस कर दिए गए इस देश को मेहनती लोगों ने अपने दम पर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया है। जापान के पास किसी प्रकार के प्राकृतिक संसाधन नहीं हैं और वह हर साल सैकड़ों भूकम्प भी झेलता है परन्तु इसके बावजूद जापान दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति है। जापान के लोग अपनी देशभक्ति के लिए भी प्रसिद्ध हैं। यहां के लोग एक सप्ताह में 80-90 घण्टे काम करते हैं। जापान के नए राजा की ताजपोशी पर जश्न के लिए 10 दिन के अवकाश की घोषणा की गई है। इस पर खबर यह है कि जापान के लोग छुट्टियों से खुश नहीं हैं। भारत में तो काफी छुिट्टयां रहती हैं, लोग फिर भी खुश नहीं होते। जिन राज्यों में चौथे चरण का मतदान हुआ है वहां शनिवार, रविवार आैर सोमवार की छुट्टी रही। लोगों ने मतदान की परवाह ही नहीं की और टूरिस्ट स्थलों की ओर चले गए लेकिन जापान के लोगों का कहना है कि 10 दिन की छुट्टी उन्हें अगले 10 दिन ज्यादा काम करने को मजबूर कर देगी। कुछ का कहना है कि इससे सफर महंगा हो जाएगा। कुछ इसलिए परेशान हैं क्योंकि बैंक, चाइल्ड केयर सैण्टर बन्द रहेंगे। लेबर तबके पर अत्याचार बढ़ेगा आैर छुट्टी के दिनों में भी उनसे ओवरटाइम करवाया जाएगा। यही है जापान और भारत की सोच का फर्क। मेहनतकश लोग खाली बैठ ही नहीं सकते। जापान को 30 वर्ष बाद नया राजा मिला है। उम्मीद है कि नारोहितो अपने पिता के पदचिन्हों पर चलकर स्वयं को जनता का राजा साबित करेंगे।