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ननों का सार्वजनिक अपमान

दिल्ली से राउरकेला जा रही दो ननों और दो किशोरियों को कुछ लोगों की शिकायत के बाद झांसी रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से उतार लिया गया। मानव तस्करी के संदेह में उतारी गईं ननों काे रेलवे पुलिस के सामने पेश किया गया।

दिल्ली से राउरकेला जा रही दो ननों और दो किशोरियों को कुछ लोगों की शिकायत के बाद झांसी रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से उतार लिया गया। मानव तस्करी के संदेह में उतारी गईं ननों काे रेलवे पुलिस के सामने पेश किया गया। लगभग एक घंटे की पूछताछ के बाद शिकायत को झूठा पाया गया और उन्हें छोड़ दिया गया। दोनों नन केरल की रहने वाली थीं, इसलिए केरल विधानसभा चुनावों में यह घटना एक चुनावी मुद्दा बन गई। केरल विधानसभा चुनावों में भाजपा का प्रचार करते हुए गृहमंत्री ने उन लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का आश्वासन दिया, जिन्होंने उत्तर प्रदेश में केरल की ननों को परेशान किया। अफवाह तो यहां तक फैली थी कि दोनों नन दो किशोरियों को धर्म परिवर्तन के लिए ले जा रही हैं। केरल के मुख्यमंत्री ने भी गृहमंत्री अमित शाह को चिट्ठी लिखकर कार्रवाई की मांग की थी। अनेक राजनीतिक दलों ने भी बयानबाजी शुरू कर दी।
हमारा देश भारत विश्व में सर्वश्रेष्ठ है, अनेकता में एकता ही इसकी अखंड पहचान है जो विश्व के अन्य देशों से अलग बनाती है। क्यों​कि अन्य देशों में भारत की तरह अलग-अलग मजहब और धर्म को मानने वाले लोग एकजुट होकर इस तरह प्रेम, भाईचारे और सद्भाव से नहीं रहते।
भारतीय संस्कृति की मिसाल दुनिया भर में दी जाती है। यहां अलग-अलग धर्मों के रहने वाले लोगों के त्यौहार, रीति-रिवाज पहनावा, बोली आदि में काफी विविधता होने के बावजूद सभी मजहब के लोग अपने-अपने तरीके से रहते हैं। भले ही सभी धर्मों के अपने-अपने सिद्धांत हों लेकिन यहां रहने वाले सभी धर्मों के लोगों का सिर्फ एक ही लक्ष्य है, मानवता के कल्याण के लिए काम करना तथा भगवान की प्राप्ति। भारत में ‘अनेकता में एकता’ इसकी मूल पहचान है और यह भारतीय संस्कृति और परम्परा को सबसे अलग एवं समृद्ध बनाने में मदद करती है। भारत ही एक ऐसा देश है जो इस अवधारणा को बेहतरीन तरीके से साबित करता है लेकिन कुछ लोग इस अवधारणा को नष्ट करने में लगे हुए हैं। केरल की ननों के साथ बदसलूकी ऐसे ही तत्वों के दिमाग की उपज है।
भारत काे सहिष्णुता की वजह से कई बार संकटों का सामना करना पड़ा लेकिन इसने सर्वधर्म समभाव का अपना युग कभी नहीं छोड़ा। समस्या यह है कि आज देश में धर्म के नाम पर जहर फैलाने का काम किया जा रहा है। राजनीति में धा​र्मिक प्रतीकों का खुल कर इस्तेमाल किया जा रहा है। लव जिहाद के नाम पर संभ्रांत लोगों से दुर्व्यवहार किया जा रहा है। यह सही है कि भारतीयों को अपनी संस्कृति और संस्कारों की रक्षा करनी चाहिए लेकिन पूरे समाज को एक रंग में रंगना उचित नहीं होगा। यह सही है कि ईसाई मिशनरियों पर धर्म परिवर्तन कराने के आरोप लगते रहे हैं, इसके ​पीछे बड़ा कारण यह भी है जहां सरकारें नहीं पहुंचीं वहां ईसाई मिशनरियां पहले पहुंच गई थीं। जहां-जहां मिशनरियों ने असहाय लोगों की सहायता की, वही के लोग ईसाई धर्म को मानने लग गए। अपवाद स्वरूप प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन की कुछ घटनाएं हुई थीं लेकिन ईसाई धर्म की ननों के सार्वजनिक अपमान का अधिकार न तो लोगों को है और न ही रेलवे पुलिस को। कभी गाै हत्या के नाम पर लोगों को मौत के घाट उतारा जा रहा है, कभी धर्म के नाम पर लोगों को पीटा जाता है। धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून तो उचित माना जा सकता है लेकिन इस कानून को लागू करने से पहले यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कोई मामला बनता है या नहीं। किसी भी कानून का बेजा इस्तेमाल विभिन्न धर्मों के लोगों के जीवन को विषाक्त कर सकता है। धर्म परिवर्तन कानून की आड़ में किसी की शादियां रुकवाना भी उचित नहीं है। शादी के दिन जोड़ों को गिरफ्तार कर थाने ले जाना भी उनका सार्वजनिक अपमान ही है। रेलवे पुलिस को महज एक शिकायत पर चार महिलाओं को ट्रेन से उतार कर पूछताछ करना भी उनके साथ ज्यादती है। कोई भी धर्म किसी का अपमान करने, मारपीट करने या फिर हत्याएं करने की सीख नहीं देता। अगर भारत में ऐसी घटनाएं होती रही तो अनेकता में एकता का बगीचा ही ​बिखर जाएगा। विभिन्न धार्मिक समूहों के लोग एक-दूसरे के सामने तलवारें लेकर खड़े हो जाएंगे।
राजनीतिक दलों को भी चाहिए कि वे धर्म के प्रतीकों का इस्तेमाल राजनीति में नहीं करें। यह भी देखना जरूरी है कि किसी निर्दोष को पीड़ा नहीं पहुंचे। एक समुदाय को दूसरे समुदायों के खिलाफ खड़ा करने की कोई भी कोशिश स्वीकार नहीं की जा सकती। ऐसी विभाजनकारी ताकतों को हराने के लिए कदम उठाने की भी जरूरी है। अब इस मामले की जांच चल रही है कि आखिर ऐसी गलत सूचना के आधार पर महिलाओं को बीच रास्ते में उतारा गया और उन ननों को मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। जाति, धर्म और सम्प्रदाय काे लेकर हो रही सियासत भारतीय एकता की शक्ति को कमजोर कर रही है। इस तरह के विकारों को दूर करने की जरूरत है। जिस तरह बाग में अलग-अलग तरह के सुन्दर और आकर्षक फूल होते हैं लेकिन सभी का काम वातावरण को सुगंधित करना होता है, उसी तरह भारत के रहने वाले लोग अलग-अलग हैं लेकिन सभी की भावना और आत्मा एक है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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