लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

बंदूक संस्कृति के खिलाफ जनमत

NULL

अमेरिका के समाज में बंदूक संस्कृति की जड़ें काफी गहरे स्तर पर जमी हुई हैं। इसका उपचार करने की काफी को​ शिशें की गईं लेकिन अब तक के प्रयास सफल नहीं हो सके। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा कई मौकों पर हथियार कानूनों को सख्त बनाने की बात करते रहे लेकिन सर्वशक्तिमान नेता होने के बावजूद वह कुछ नहीं कर पाए। हर बार बंदूकें आग उगलती हैं, लोग प्रार्थनाएं करते हैं। मृतकों को श्रद्धांजलि देने के लिए मोमबत्तियां जलाते हैं, फूल अर्पित करते हैं, लेकिन क्या श्रद्धांजलि देने और प्रार्थना करने मात्र से ही इस संस्कृति को खत्म किया जा सकता है। स्पष्ट है कि आंसू बहाने से कुछ नहीं होने वाला।

अब फलोरिडा की हृदयविदारक घटना के बाद बंदूकों पर नियंत्रण रखने के लिए बहस फिर तेज हुई। अमेरिका में गोलीबारी की घटनाएं लगातार सु​र्खियों को विषय बनती रहती हैं। पिछले वर्ष अक्तूबर में लासवेगास में हुई गोलीबारी में 58 लोगों की मौत हो गई थी। पिछले वर्ष ही जुलाई में भी गोलीबारी की घटना में कम से कम 17 लोग घायल हुए थे। वर्ष 2016 में डलास शहर में हो रहे विरोध-प्रदर्शन के दौरान एक स्नाइपर की गोलियों से 5 पुलिस कर्मियों की मौत हो गई थी। ऑरलैंडो के एक गे-नाईट क्लब में हुई गोलीबारी में 50 लोग मारे गए थे।

हैरानी की बात तो यह रही कि जघन्य कांडों के बाद भी अमेरिकी संसद में शस्त्र नियंत्रण के लिए लाए गए प्रस्ताव बुरी तरह से गिर गए थे। सीनेट में इस संबंध में चार प्रस्ताव पेश किए गए थे लेकिन चारों ही प्रस्ताव सीनेट में आगे बढ़ाए जाने के लिए जरूरी न्यूनतम 60 वोट भी हासिल नहीं कर पाए थे। इनमें से एक प्रस्ताव यह भी था कि किसी व्यक्ति को बंदूक बेचे जाने से पहले उसकी पृष्ठभूमि की गहराई से जांच की जाए।

अमेरिका में बंदूक रखना उतना ही आसान है, जिस तरह भारत के लोग घर में लाठी-डंडे रखते हैं। अमेरिका में 88.8 फीसदी लोगों के पास बंदूकें हैं जो दुनिया में प्रति व्यक्ति बंदूकों की संख्या के लिहाज से सबसे बड़ा आंकड़ा है। अमेरिका में घृणा अपराध की घटनाएं होती रही हैं जिनका शिकार अमेरिका में रह रहे अन्य देशों के लोग यहां तक कि भारतीय मूल के सिख अमेरिकी भी हो चुके हैं। ओक क्रीक स्थित गुरुद्वारे में हुआ हत्याकांड तो सबको याद होगा।

सवाल यह है कि आखिर बंदूक अमेरिका के लोगों के गौरव का प्रतीक कैसे बन गई। दरअसल अमेरिका में गन कल्चर की जड़ें इसके आैपनिवेशिक इतिहास, संवैधानिक प्रावधानों और यहां की सियासत में देखी जा सकती हैं। कभी ब्रिटेन का उपनिवेश रहे अमेरिका का इतिहास आजादी के लिए लड़ने वाले सशस्त्र वीर योद्धाओं की कहानी है। बंदूक अमेरिका को आजादी के लिए सेनानियों के बड़े आंदोलन का जबरदस्त औजार रही है। इसलिए बंदूक रखना आत्मसम्मान और नायकत्व का प्रतीक बन गई है।

जब 15 दिसम्बर, 1971 को अमेरिका के संविधान में नागरिक अधिकारों को परिभाषित किया गया तो उसमें कहा गया था कि ‘‘राष्ट्र की स्वाधीनता सुनिश्चित बनाने के लिए हमेशा संगठित लड़ाकों की जरूरत है। हथियार रखना और उसे लेकर चलना नागरिकों का अधिकार है। जब भी वहां बंदूकों पर लगाम लगाने का मुद्दा उठता है तो उसे एक तरह से संविधान पर मंडरा रहे खतरे के रूप में पेश किया जाता रहा। शस्त्र लाॅबी इतनी ताकतवर है कि वह हमेशा एक ही बात कहती रही ‘‘बंदूकें किसी को नहीं मारती बल्कि लोग एक-दूसरे को मारते हैं।’’ अब अमेरिका घिनौनी बंदूक संस्कृति का गुलाम बन गया।

बंदूकों के प्रति बड़े तो बड़े बच्चों के अंध रुझान का आलम यह है कि छोटे स्कूली बच्चे भी गोलियों से भरी बंदूक लेकर स्कूल आते हैं। विश्वभर में हथियारों की दौड़ को रोकने की अंतर्राष्ट्रीय बहस में बढ़-चढ़ कर ​हिंसा की खिलाफत करने वाला अमेरिका खुद अपने देश में बंदूक के आतंक से परेशान है। अब समय आ गया है कि कड़े कानून बनाकर आतंक का खात्मा करना चाहिए ताकि कोई विक्षिप्त अथवा विद्वेषी व्यक्ति निर्दोर्षों की जान नहीं ले सके। अब अमेरिकी जनता खुलकर बंदूक कल्चर के खिलाफ सड़कों पर उतर आई है। छात्रों के नेतृत्व में विरोध-​प्रदर्शन हो रहे हैं।

सबसे बड़ा मार्च वा​शिंगटन में हुआ, जिसमें लगभग पांच लाख लोग शामिल हुए। जगह केवल खड़े होने के लिए बची। अमेरिका में ही नहीं, लंदन, जेनेवा, सिडनी और टोक्यो में भी बंदूकों पर नियंत्रण पाने के लिए प्रदर्शन हुए। किसी भी लोकतंत्र में सत्ता को झुकाने की शक्ति केवल जनमत में होती है। जनांदोलन ही सत्ता को हिलाने की ताकत रखता है। इन प्रदर्शनों के चलते ही व्हाइट हाऊस को बंदूकों से होने वाली ​हिंसा को रोकने के लिए सरकारी प्रयासों से जनता को अवगत कराने की मुहिम छेड़ने के लिए विवश होना पड़ा है।

मसलन सामान्य हथियारों को असाल्ट हथियारों में बदल देने वाले बम्पर स्टाक पर रोक लगाने का फैसला और स्कूलों में सुरक्षा व्यवस्था सुधारना और छात्रों-स्टाफ और स्थानीय पुलिस कर्मियों को बेहतर ट्रे​निंग देने की बात की गई है। प्रदर्शनकारियों का नारा है-बच्चों को बचाओ, बन्दूकों को नहीं। दुनिया में बंदूकों से नरसंहार की घटनाओं में से 64 फीसदी अकेले अमेरिका में हुई हैं। बेहतर होगा डोनाल्ड ट्रंप जनभावनाओं को समझें और ठोस कार्रवाई करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

three × one =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।