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महाराष्ट्र में पुलसिया राजनीति

महाराष्ट्र में गजब का राजनैतिक ‘खेला’ चल रहा है। कल तक मुम्बई के पुलिस कमिश्नर रहे जनाब परमबीर सिंह राज्य के गृहमन्त्री श्री अनिल देशमुख पर मुख्यमन्त्री उद्धव ठकरे को आठ पृष्ठ का लम्बा खत लिख कर आरोप लगा रहे हैं ।

महाराष्ट्र में गजब का राजनैतिक ‘खेला’ चल रहा है। कल तक मुम्बई के पुलिस कमिश्नर रहे जनाब परमबीर सिंह राज्य के गृहमन्त्री श्री अनिल देशमुख पर मुख्यमन्त्री उद्धव ठकरे को आठ पृष्ठ का लम्बा खत लिख कर आरोप लगा रहे हैं कि पुलिस के ही एक सहायक सब इंस्पेक्टर सचिन वझे को श्री देशमुख ने कहा था कि वह हर महीने मुम्बई से उनके लिए 100 करोड़ रुपये की उगाही करें जिसमें बार व रेस्टोरेंटों से 40 से 50 करोड़ रु. की उगाही भी शामिल है। मुम्बई में कुल 1750 बार हैं जहां शराब परोसी जाती है। सबसे बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि जब मुम्बई पुलिस के मुखिया रहने की हैसियत से श्री परमबीर सिंह को इसकी जानकारी थी तो वह मुंह पर ताला लगाये क्यों बैठे थे? श्री सिंह का तीन दिन पहले ही होमगार्ड्स के महानिदेशक पद पर तबादला किया गया है। उन्होंने मुख्यमन्त्री को अपना तबादला होने के बाद खत तब लिखा जब इंस्पेक्टर सचिन वझे को अम्बानी निवास बम षड्यन्त्र कांड में राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी एनआईए ने गिरफ्तार कर लिया।
दुनिया जानती है कि सचिन वझे परमबीर सिंह का सबसे प्रिय पुलिस कर्मचारी था और श्री सिंह मुम्बई के हर महत्वपूर्ण आपराधिक मामले को उसे सौंप देते थे। यहां तक कि टीवी चैनलों के कथित टीआरपी मामले की जांच के सम्बन्ध में सचिन वझे को ही परमबीर सिंह रिपबल्किन चैनल के प्रबन्ध निदेशक व प्रधान सम्पादक अर्नब गोस्वामी को गिरफ्तार करने के लिए भेजा था। मुम्बई पुलिस श्री परमबीर सिंह के मुखिया रहते जिस प्रकार के विवादों में पड़ रही थी उससे देश की इस प्रतिष्ठित पुलिस का सम्मान घटा क्योंकि इस शहर की पुलिस पूर्व में अपने वीरतापूर्ण कारनामों के लिए ही ज्यादा प्रसिद्ध रही है परन्तु पुलिस सेवा में रहते हुए राज्य के गृहमन्त्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा कर कहीं न कहीं परमबीर सिंह जबर्दस्त राजनीति भी खेल गये हैं और उन्होंने सत्ता पर काबिज ‘कांग्रेस-शिवसेना- राष्ट्रवादी कांग्रेस गठबन्धन में फूट डालने के बीज बो दिये हैं। सचिन वझे की जांच उस व्यक्ति की हत्या के मामले में भी हो रही है जो अम्बानी निवास के बाहर गाड़ी में बारूदी सलाखें लेकर आया था। उसकी वह गाड़ी रहस्य बनी हुई है जिसमें वह अम्बानी निवास तक आया था। जाहिर है कि परमबीर सिंह पूरे मामले की दिशा बदल देना चाहते हैं और मुख्यमन्त्री विरुद्ध गृहमन्त्री का विमर्श खड़ा कर देना चाहते हैं। उनकी चिट्ठी को लेकर जिस तरह की राजनैतिक प्रतिक्रियाएं आ रही हैं उनसे स्पष्ट है कि मुख्यमन्त्री पर अपने ही गृहमन्त्री को बाहर का रास्ता दिखाने का दबाव बढ़ रहा है मगर गृहमन्त्री की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस यह स्वीकार नहीं कर सकती क्योंकि परमबीर सिंह की विश्वसनीयता शून्य हो चुकी है जिसकी वजह से उनका तबादला किया जा चुका है।
मुख्यमन्त्री यदि विपक्ष की मांग पर कोई कार्रवाई करते हैं तो उनकी सरकार का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है क्योंकि वह त्रिगुटीय साझा सरकार चला रहे हैं। इसके साथ एक पेंच यह भी है कि सचिन वझे 16 साल तक निलम्बित रहने के बाद राज्य पुलिस सेवा में परमबीर सिंह द्वारा ही बहाल किया गया और इन 16 सालों के दौरान वह कुछ समय के लिए शिवसेना पार्टी का सदस्य भी रहा। यहां तक कि इस पार्टी का एक संभागीय प्रवक्ता भी रहा। सवाल उठना वाजिब है कि ऐसे व्यक्ति को 16 साल बाद बहाल करने के लिए क्या कोई राजनैतिक दबाव भी था? अतः शिवसेना प्रमुख रहते मुख्यमन्त्री श्री उद्धव ठाकरे की संलग्नता भी कहीं न कहीं जाकर जरूर जोड़ी जायेगी जिससे महाराष्ट्र सरकार की विश्वसनीयता ही खतरे में पड़ सकती है।
परमबीर सिंह को भी जवाब देना होगा कि अम्बानी निवास षड्यन्त्र मामले की जांच प्रारम्भ में जब सचिन वझे को ही सौंपी गई तो उसकी क्या वजह थी? इस मामले में परमबीर सिंह भी एनआईए की जांच के घेरे में कभी भी आ सकते हैं, इस निष्कर्ष पर कोई भी जागरूक नागरिक जा सकता है। क्योंकि मामला बिल्कुल साफ है कि सचिन वझे की संदिग्ध कार्रवाइयों की जांच ही एनआईए कर रही है। अतः परमबीर सिंह ने पूरे मामले को राजनैतिक मोड़ देने में ही भलाई समझी होगी। वरना क्या वजह है कि मुम्बई पुलिस कमिश्नर की हैसियत से परमबीर सिंह ने सचिन वझे को कथित उगाही की पूरी छूट दे रखी थी। यदि पुलिस के काम में सीधे गृहमन्त्री अनिल देशमुख हस्तक्षेप कर रहे थे तो महाराष्ट्र की पूरी सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी और कानून का शासन कायम करने की शपथ समाप्त हो चुकी थी और इसके लिए सबसे पहले मुख्यमन्त्री को ही जिम्मेदारी लेनी होगी। इसी वजह से केन्द्रीय मन्त्री श्री रामदास अठावले ने सीधे मुख्यमन्त्री का इस्तीफा ही मांगा है और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है परन्तु यह कार्य इतना आसान नहीं है क्योंकि इसके लिए सबसे पहले परमबीर सिंह की चिट्ठी में दिये गये तथ्यों की जांच ही करनी पड़ेगी। सचिन वझे पुनः मुअत्तिल हो चुका है और एक आरोपी है, ऐसे में उसके बयानों को प्रथम दृष्ट्या ‘जस का तस’ स्वीकार नहीं किया जा सकता। मगर महाराष्ट्र में संविधान का शासन काबिज रहने के लिए जरूरी है कि राज्य की आम जनता का विश्वास अर्जित करने के लिए नये पुलिस कमिश्नर को मुम्बई पुलिस का कायाकल्प करना चाहिए।

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