पंजाब पुलिस ने 72 घण्टे से भी कम समय में अमृतसर स्थित निरंकारी सत्संग भवन पर हुए हैंड ग्रेनेड हमले के एक आरोपी को गिरफ्तार करने में सफलता प्राप्त कर ली है। हमलावर की गिरफ्तारी से यह बात साबित भी हो गई है कि इस हमले के पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजैंसी आईएसआई का हाथ है। इस हमले के तार पाक में रहने वाले खालिस्तान लिबरेशन फोर्स के मुखिया हरमीत सिंह हैप्पी उर्फ पीएचडी से भी जुड़ रहे हैं जो कि पंजाब में 2016-17 के दौरान हुई टारगेटेड किलिंग का मास्टरमाइंड था जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, शिवसेना आैर हिन्दू नेताओं आैर पादरी पर हमले हुए थे। पंजाब के खालिस्तान समर्थक आतंकवादियों और कश्मीर के कट्टरपंथियों के बीच आईएसआई ने जो गठजोड़ करवाया है वह पंजाब के लिए चिन्ता का विषय है। निरंकारी सत्संग भवन पर हुए हमले ने खालिस्तान को लेकर कट्टरपंथी सिख संगठनों द्वारा चलाई जा रही मुहिम रेफरेंडम-2020 को फिर से सुर्खियों में ला दिया है।
रेफरेंडम-2020 यानी पंजाब जनमत संग्रह 2020 कनाडा आैर यूरोप में फैले खालिस्तानी समूहों द्वारा शुरू की गई मुहिम का मकसद पंजाब को भारत से अलग कर उसको एक स्वतंत्र देश के रूप में स्थापित करना है। इस मुहिम के तहत विश्व भर में रह रहे पंजाबियों को इस बात के लिए राजी कराना है कि उन्हें एक अलग देश की जरूरत है, जिसमें उन्हें अपने राजनीतिक फैसले खुद लेने का अधिकार होगा। रेफरेंडम-2020 की वेबसाइट कहती है कि एक बार आजादी के सवाल पर सभी की सहमति लेने के बाद यह मामला संयुक्त राष्ट्र आैर अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के सामने उठाया जाए ताकि भारत पर दबाव बनाया जा सके। इस वेबसाइट का पंजाब में प्रचार-प्रसार करने और युवाओं को खालिस्तान की विचारधारा से प्रभावित करने वाले कुछ लोगों को पिछले वर्ष गिरफ्तार किया गया था आैर पंजाब के कई बड़े शहरों में रेफरेंडम-2020 के पोस्टर भी देखे गए थे। पंजाब में खालिस्तान की अवधारणा तो कब की खत्म हो चुकी है। पंजाब में आतंकवाद के खात्मे का श्रेय सुरक्षा बलों को तो जाता ही है लेकिन इसका असली श्रेय पंजाब के लोगों को भी जाता है क्योंकि वहां के लोगों में आपसी सद्भाव, भाईचारा बहुत मजबूत है और उन्होंने हमेशा एकजुट होकर कट्टरपंथी ताकतों को मात दी है लेकिन स्थानीय स्तर पर खालिस्तान को वैचारिक रूप से जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है।
पंजाब के धार्मिक स्थानों पर आयोजित कार्यक्रमों में खालिस्तान समर्थक पत्रिकाएं बांटी आैर बेची जाती हैं। भिंडरावाले और अन्य खालिस्तानी आतंकियों से जुड़ी किताबें, बिल्ले, स्टिकर भी बेचे जाते हैं। कारों के पीछे खालिस्तानी स्लोगन लिखवाए जाते हैं। खुफिया विभाग के पास ऐसी रिपोर्टें पहले से ही हैं कि पंजाब में आतंकवाद को फिर से जीवित करने के लिए खालिस्तान समर्थक समूह स्थानीय युवाओं की भर्ती कर रहे हैं और इनका सम्पर्क पश्चिमी देशों में फैले खालिस्तान समर्थक समूहों से है। पंजाब में आतंकवाद फैलाने के लिए इन युवाओं को हवाला के जिरये पैसा पहुंचाया जाता है। उधर पाकिस्तान में बैठे हरमीत सिंह हैप्पी पीएचडी, खालिस्तान जिन्दाबाद फोर्स के चीफ रणजीत सिंह नीटा लश्कर-ए-तोयबा के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। हरमीत सिंह हैैप्पी लम्बे समय से पाकिस्तान में है आैर पंजाब में हिन्दू नेताओं की हत्या के पीछे इसी का हाथ है। हैप्पी ने ही पाक में बैठे-बैठे पंजाब में स्लीपर सेल्स का नेटवर्क तैयार किया है। खालिस्तान गदर फोर्स से जुड़े शबनमदीप सिंह आैर गुरसेवक की गिरफ्तारी से बहुत सी बातों का खुलासा हो चुका है। सोशल मीडिया के माध्यम से पंजाब के युवाओं को गुमराह करने की मुहिम चलाई जा रही थी।
1980 के दशक के अन्त में आईएसआई ने आतंकी गतिविधियों को अन्जाम देने के लिए के-2 प्लान के तहत खालिस्तानी और कश्मीरी आतंकियों को साथ किया था। पंजाब के सीमांत गांवों में कश्मीरी आतंकियों की मौजूदगी और जालन्धर में एक शिक्षा संस्थान के होस्टल में एके-47 के साथ कश्मीरी छात्रों की गिरफ्तारी इस बात का प्रमाण है कि पाकिस्तान के-2 प्लान पर काम कर रहा है। वास्तव में पंजाब के राजनीतिक दल तात्कालिक लाभ के िलए कट्टरपंथी विचारधारा के आगे घुटने टेकते रहते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के दोषी रजोआना आैर दिल्ली बम धमाके के दोषी भुल्लर को फांसी नहीं देने के लिए पूर्ववर्ती अकाली सरकार ने जिस तरह से पंजाब विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराया उससे खालिस्तान समर्थकों को नई ताकत मिली।
अहम सवाल यही है कि क्या पंजाब फिर से उसी भयावह दौर के मुहाने पर तो आकर खड़ा नहीं हो जाएगा जिससे कुछ दशक पहले बड़ी मुश्किलों आैर कई नरसंहारों के बाद बाहर निकला था। आतंकवाद के चलते ही पूजनीय पितामह लाला जगत नारायण जी और पूज्य पिताश्री रोमेश चन्द्र सहित अनेक लोगों को अपनी शहादत देनी पड़ी थी। पंजाब में पिछले कुछ वर्षों में लगातार श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाएं सामने आती रही हैं। बलात्कार के आरोपों में जेल में सजा भुगत रहे राम रहीम को माफी देने के बाद आम सिख अकाली नेतृत्व से नाराज हैं।
सिखों का आरोप है कि वोट पाने के लिए ही अकाली दल ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के जरिये राम रहीम को माफी दिलवाई। इसका कड़ा विरोध भी हुआ। पंजाब विधानसभा चुनावों से एक वर्ष पहले ही सरबत खालसा ने खुद को अकाली नेतृत्व के समानांतर खड़ा करने की कोशिशें की थीं। इन बातों को बयानबाजी कर नजरंदाज नहीं किया जा सकता। पंजाब में बढ़ते तनाव के कई उदाहरण सामने आ रहे हैं। यद्यपि खालिस्तान की मांग खुले तौर पर नहीं हो रही है लेकिन पंजाब पुलिस, खुफिया एजैंसियों, कैप्टन अमरिन्द्र सरकार और पंजाब के तरक्की पसंद लोगों को कट्टरपंथियों के इरादों से सतर्क रहना होगा क्योंकि खतरा अभी टला नहीं है।