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पंजाब में गेहूं की खरीद

पंजाब से फसल खरीद को लेकर बने सिस्टम में बदलाव की शुरूआत हो गई है। यह बदलाव 60 वर्ष बाद हुआ है। पिछले कुछ वर्षों से किसानाें ने उनकी फसल का सीधा भुगतान करने को लेकर कई बार मांग उठाई, प्रदर्शन भी किए और अदालतों ने दरवाजे पर भी दस्तक दी लेकिन जिस तरह का बदलाव पंजाब में हुआ, वैसा पहले नहीं देखा गया।

पंजाब से फसल खरीद को लेकर बने सिस्टम में बदलाव की शुरूआत हो गई है। यह बदलाव 60 वर्ष बाद हुआ है। पिछले कुछ वर्षों से किसानाें ने उनकी फसल का सीधा भुगतान करने को लेकर कई बार मांग उठाई, प्रदर्शन भी किए और अदालतों ने दरवाजे पर भी दस्तक दी लेकिन जिस तरह का बदलाव पंजाब में हुआ, वैसा पहले नहीं देखा गया। खुशी की बात है कि पंजाब में गेहूं की खरीद शुरू हो गई है। अब एमएसपी का सीधा लाभ किसानों को मिलेगा। आढ़तियों के एक समूह ने इस पर सहमति देते हुए अपनी हड़ताल खत्म कर दी है। कुछ आढ़ती अब भी इसका विरोध कर रहे हैं, उम्मीद है कि वे भी मान जाएंगे क्योंकि उन्हें केन्द्र का साथ नहीं मिलेगा। 
पंजाब सरकार फसल की रकम की सीधा अदायगी करेगी और आढ़तियों की कमीशन उनके खाते में डालेगी। किस किसान की पेमेंट हुई है, इसके लिए आनलाइन विंडो शुरू की जाएगी। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्द्र सिंह ने आढ़तियों की 131 करोड़ की लम्बित राशि भी जल्द से जल्द जारी करने का आश्वासन दिया। केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल से बात करने गए पंजाब के मंत्री A सिंह बादल के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल ने यह स्पष्ट कर दिया था कि पंजाब के पास अब सीधी अदायगी के सिस्टम को अपनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। पंजाब के आढ़तियों ने पहले चेतावनी दी थी कि वे मंडियों में न तो गेहूं की सफाई करवाएंगे और न ही भंडारण के लिए गाड़ियों में ढुलाई करेंगे, सरकार चाहे तो अपनी एजैंसियों के जरिए अनाज उठवा ले। बाद में मुख्यमंत्री से बातचीत के बाद आढ़ती मान गए। कृषि राज्यों का विषय है और पंजाब सरकार ने एक नई व्यवस्था बना डाली। किसान को उसकी उपज का सीधा लाभ पहुंचाने की केन्द्र सरकार की डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर यानी डीबीटी योजना कृषि क्षेत्र में एक अभिनव पहल है। डीबीटी प्रणाली ने कई लोक कल्याण की योजननों में सार्थक परिणाम दिए हैं और बिचौलियों की लूट पर लगाम लगी है। पंजाब में कृषि उत्पाद खरीद में आढ़तियों,कमीशन एजैंटों की बहुत बड़ी भूमिका है। पूरे पंजाब में लगभग 48 हजार आढ़ती रजिस्ट्रड हैं जो किसानों को फसल की बिक्री पर अपनी सेवाओं के बदले में अपनी कमीशन लेते हैं। दशकों से आढ़ती या कमीशन एजैंट किसानों को सरकारी या निजी एजैंसियों द्वारा खरीद के लिए मंडी में फसल की आवक से लेकर बिक्री तक कई चरणों में मदद करते हैं। बिचौलिये कृषि से जुड़े सामान की खरीद के ​लिए उन्हें धन भी उपलब्ध कराते हैं। निःसंदेह किसानों को यह आर्थिक मदद ऊंची बयाज दरों में मिलती है। आढ़ती फसल की खरीद करते समय अपना हिसाब चुकता कर लेते हैं। किसानों को दूसरा सामान लेने के लिए खास दुकानों से ही खरीदने को मजबूर किया जाता है। इसके लिए उन्हें पर्चियां दी जाती हैं, जिन्हें वह सम्बन्धित दुकानदार को देकर सामान ले लेते हैं।
20 वर्ष पहले जब पंजाब में कर्ज के बोझ तले दबे किसानों की आत्महत्याएं बढ़ीं तो तत्कालीन शिरोमणि अकाली दल और भाजपा सरकार ने इसके कारणों की जांच करवाने के लिए तीन विश्वविद्यालयों से सर्वे करवाया था। सर्वे में कई कारण सामने आए, जिसमें एक कारण था कि किसानों काे उनकी फसल की अदायगी पूरी नहीं मिलती। भारतीय किसान यूनियन के एक ग्रुप ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में एक या​चिका दायर की थी और मांग की थी। इस पर तब सरकार ने कहा था की यह मामला किसानों पर ही छोड़ दिया जाए कि उन्हें भुगतान आढ़तियों से लेना है या खरीद एजैंसी से। सरकार ने नोटिफिकेशन जारी करके कहा था कि उनकी अदायगी चैक के जरिये होगी लेकिन चैक आढ़ती काटेंगे न कि खरीद एजैंसी। 2015 में हुए इस फैसले के बाद केन्द्र ने किसानों के पक्ष में फैसला लेते हुए डीबीटी योजना लागू की है। इसका मकसद लाभार्थियों के खाते में बिना ​रिश्वत दिए रकम पहुंचाना था। इसका मकसद धोखाधड़ी रोकना भी है। इसका उद्देश्य व्यवस्था में सुधार करना है ताकि खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके। यह भी सच्चाई है कि मंडियों में आढ़तियों की व्यवस्था को एक झटके से खत्म नहीं किया जा सकता। फसल के मामले में जो मदद आढ़ती कर सकते हैं, वह सरकारी खरीद एजैंसियां नहीं कर सकतीं। आढ़तियों की हड़ताल के चलते किसानों ने मंडियों में गेहूं लाना रोक दिया था, क्योंकि उन्हें यह आशंका थी कि वे अपना गेहूं कहां पर रखेंगे, ढेरी कहां लगवाएंगे और गेहूं की सफाई कौन करेगा। अब आढ़ती हड़ताल खत्म होते ही किसानों ने मंडियों की ओर रुख कर लिया है। गेहूं की खरीद ने जोर पकड़ लिया है। अब तीन-चार दिन में ही मंडियों में गेहूं के अम्बार लग जाएंगे। पहले हरियाणा के आढ़ती भी हड़ताल पर थे, बाद में हरियाणा के आढ़ती भी मान गए। वहां भी गेहूं की खरीद जोर पकड़ेगी। पंजाब और हरियाणा हरित क्रांति का नेतृत्व करने वाले राज्य हैं। गेहूं की खरीद का एक मजबूत और ​विश्वसनीय ढांचा वर्षों के प्रयासों से स्थापित हुआ है। ऐसा मजबूत ढांचा कई अन्य राज्यों में स्थापित नहीं हो पाया। इसीलिए उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर फसल बेचने को मजबूर होना पड़ता है। पंजाब सरकार ने किसी के हितों को नुक्सान पहुंचाए बिना व्यवस्था में परिवर्तन किया है जो एक अच्छी पहल है।

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पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।