इस समय विश्व के हालात अच्छे नहीं हैं। एक तरफ रूस-यूक्रेन युद्ध जारी है तो दूसरी तरफ इजरायल-हमास के बीच घमासान मचा हुआ है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के इजरायल पहुंचने से पहले ही रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने बीजिंग पहुंचकर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात कर ली है। पुतिन और जिनपिंग की मुलाकात एक हाई प्रोफाइल शो की तरह हुई जिस पर दुनिया की नजरें लगी हुई थीं। दोनों नेताओं की बातचीत में मिडिल ईस्ट का संकट केन्द्र बिन्दु में रहा। दोनों देशों ने ही इजरायल के एक्शन की आलोचना की। रूस और चीन युद्ध विराम चाहते हैं। यद्यपि कहा यही जा रहा है कि इस मुलाकात का मकसद अमेरिका के खिलाफ दोनों देशों की साझेदारी को मजबूत करना है। हाल ही के वर्षों में रूस-चीन संबंध लगातार गहरे होते जा रहे हैं। पुतिन और जिनपिंग ने व्यक्तिगत मित्रता भी स्थापित कर ली है। पुतिन वन बैल्ट,वन रोड पहल की दसवीं वर्षगांठ के मौके पर हिस्सा लेने चीन पहुंचे हैं। यह पहली बार है कि पुतिन ने इस साल पूर्व सोवियत संघ के बाहर किसी देश का दौरा किया है। चीन और रूस ने फरवरी 2022 में 'नो लिमिट' साझेदारी का ऐलान किया था। इसके कुछ दिन बाद ही पुतिन ने यूक्रेन पर हमले का ऐलान किया।
अमेरिका चीन को अपना सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी मानता है और साथ ही रूस काे वह अपना सबसे बड़ा खतरा मानता है। यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि पुतिन और जिनपिंग ने मिलकर दुनिया का सबसे ताकतवर अघोषित गठबंधन बना लिया है। दुनिया के सबसे ज्यादा परमाणु बमों के मालिक देशों का एक-दूसरे के करीब आने का अर्थ बहुत गहरा है। यद्यपि चीन-रूस की दोस्ती बड़ी जटिल रही है। दोनों देश कभी एक-दूसरे के मित्र तो कभी दुश्मन रहे हैं। रूस और चीन की लव रिलेशनशिप को भारत के लिए खतरा माना जा रहा है। पश्चिमी देश रूस के खिलाफ हैं और चीन रूस के गले में बांहें डालकर खड़ा है। रूस भारत का परखा हुआ मित्र है और रूस ने हमेशा संकट के दौर में भारत का साथ दिया है। रूस से दोस्ती के चलते ही भारत ने यूक्रेन-रूस युद्ध पर तटस्थ रुख अपनाया और एक बार भी रूस की निंदा नहीं की। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि पुतिन इस समय दुनिया के नक्शे में अपनी छवि सुधारने का प्रयास कर रहे हैं। बीजिंग में 140 देशों से आए प्रतिनिधियों के बीच पुतिन की मौजूदगी दुनिया में उनकी छवि को बेहतर कर सकती है जो यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में पूरी तरह से अलग-थलग पड़ी हुई है। पुतिन ने भारत में पिछले महीने हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में भी हिस्सा नहीं लिया।
भारत निश्चित तौर पर इस बात से असहज है कि रूस और चीन करीब आ रहे हैं। इन रिश्तों की वजह से भारत को आशंका है कि चीन एकपक्षीय कार्रवाई करके भारत के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य दबाव बढ़ा सकता है। भारत चीन से निबटने के लिए सेना को मजबूत करने में लगा है। मगर सैन्य आपूर्ति के लिए उसी रूस पर निर्भर है जो अब चीन के करीब हो रहा है। रूस अब चीन का जूनियर पार्टनर है और यह बात भारत को कहीं न कहीं खलती होगी। रूस पर हथियारों की निर्भरता ने इस पूरे मुद्दे को बहुत ही जटिल बना दिया है। यूक्रेन को लेकर भारत की स्थिति ने अमेरिका और यूरोप के साथ करीबी को मुश्किल में डाल दिया है।
भारत चीन की वन बैल्ट,वन रोड परियोजना से भी परेशान है। इस परियोजना के जरिये चीन भारत की घेराबंदी कर रहा है, इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत-मध्यपूर्व यूरोप गलियारे का प्रस्ताव दिया था जिसे वन बैल्ट,वन रोड परियोजना का तोड़ माना जा रहा है। रूस ने युद्ध काल में हमेशा भारत का साथ दिया। 1971 की लड़ाई में अमेरिका ने जब बंगाल की खाड़ी में अपना बेड़ा भेजा तो उसको रोकने के लिए रूस ने अपना जंगी बेड़ा भी भेज दिया था। भारत हथियारों के मामले में रूस पर निर्भर रहा। करीब तीन दशक पहले भारत ने रूस के साथ हाथ मिलाया था। दूसरी ओर चीन ने खुद को दुनिया में बहुक्षीय ताकत के तौर पर आगे बढ़ाना शुरू कर दिया था। यह नया चीन और रूस का गठबंधन यूक्रेन में पुतिन की आक्रामकता के बाद और जटिल हो गया है। जंग की वजह से कमजोर हुआ रूस चीन के लिए किसी दौलत की तरह होगा। यही बात भारत के लिए परेशानी का सबब बन सकती है।
रूस-चीन की दोस्ती भारत को अपने रिश्तों पर फिर से नजर डालने के लिए मजबूर कर सकती है। चीन और रूस के गठबंधन ने पुतिन को यह आत्मविश्वास दे दिया है कि वह यूरोप को चुनौती दे सकते हैं। यूक्रेन की जंग ने अमेरिका को भी दबाव में ला दिया है। उसे आशंका है कि चीन भविष्य में ताइवान पर हमला कर सकता है। इसी वजह से अमेरिका जापान, आस्ट्रेलिया और भारत से अपने संबंधों को मजबूत बनाने में जुट गया है। चीन की रूस से दोस्ती फायदे में दिखाई दे रही है। रूस और चीन के बढ़ते सामरिक संबंध भारत के हित में नहीं हैं। भारत को सतर्क होकर कूटनीति अपनानी होगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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