अमेरिका, भारत, आस्ट्रेलिया और जापान की यानि क्वाड देशों की महत्वपूर्ण बैठक मेलबर्न में हुई, जिसमें विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भाग लिया। क्वाड के विदेश मंत्रियों ने हिन्द प्रशांत क्षेत्र को भयमुक्त रखने के लिए सहयोग का विस्तार करने का संकल्प लिया गया और परोक्ष युद्ध के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सीमा पार आतंकवाद की निंदा की गई। इसके साथ ही उन्होंने यूक्रेन संकट पर भी चर्च की और स्पष्ट किया कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी भी देश को धमकाने या हमला करने के लिए नहीं होना चाहिए। इसमें भारत में 26/11 के मुम्बई और पठानकोट हमलों सहित अन्य आतंकवादी हमलों की निंदा भी की गई। इससे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को करारा झटका लगा है जो लगातार वैश्विक मंचों पर कश्मीर मुद्दे का राग अलापते रहे हैं।
बैठक के दौरान विदेश मंत्री जयशंकर ने चीन के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार किया। उन्होंने भारत का स्टैंड एक बार फिर दृढ़ता से रखा। उन्होंने नियम आधारित अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था पर जोर दिया जो कि क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के सम्मान पर आधारित हो। वहीं म्यांमार को लेकर जयशंकर ने भारत-म्यांमार सीमा पर उग्रवाद की चुनौती की ओर इशारा किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत ‘राष्ट्रीय प्रतिबंधों’ के खिलाफ है। अमेरिका ने म्यांमार सरकार के कई नेताओं पर प्रतिबंध लगाए हैं।
क्वाड बैठक से एक महत्वपूर्ण संदेश यह निकला है कि यह समूह ऐसी व्यवस्था का समर्थन करता है जो हमारे अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों के माध्यम से स्वतंत्रता का समर्थन करता है। हालांकि भारत यूक्रेन मुद्दे पर खामोश रहा। भय और धमकियों के संदर्भ काे चीन के लिए एक परोक्ष संदेश के रूप में देखा जा रहा है जो हिन्द प्रशांत क्षेत्र में अपनी सैन्य ताकत बढ़ा रहा है। क्वाड यानि क्वाड्री लेटरल स्क्यारिटी डायलॉग 2004 में हिन्द महासागर में आई सुनामी के बाद भारत, जापान, आस्ट्रेलिया और अमेरिका एक साथ आए थे तब इसे सुनामी कोर ग्रुप का नाम दिया गया था। उस समय इस गठबंधन ने राहत एवं बचाव कार्यों को गति देने में अहम भूमिका निभाई थी। हालांकि तत्कालीन उद्देश्य पूरा होने के बाद यह समूह बिखर गया था। 2007 में जापान के तत्कालिक प्रधानमंत्री एबी शिंजो ने क्वाड के गठन का विचार दिया था। हालांकि आस्ट्रेलिया ने तब इसका समर्थन नहीं किया था और यह गठजोड़ नहीं बन पाया था। 2017 में आसियान सम्मेलन से ठीक पहले आस्ट्रेलिया के विचार बदले और क्वाड अस्तित्व में आया। बात चाहे हिन्द प्रशांत क्षेत्र की हो या उससे अलग क्षेत्र की।
दुनिया के लोकतांत्रिक देश क्वाड काे चीन की बढ़ती महत्वकांक्षाओं पर नकेल की तरह देख रहे हैं। यद्यपि क्वाड देशों ने यह स्पष्ट किया है कि यह समूह किसी के खिलाफ नहीं है लेकिन वे अपने हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं लेकिन यह वास्तविकता है िक चीन के समानांतर क्वाड ही एक ऐसा आर्थिक गठजोड़ है जो चीन कोे चुनौती दे सकता है। भविष्य में यह समूह एक सामरिक गठजोड़ भी हो सकता है। फिलहाल आत्मनिर्भरता की नीति पर बढ़ते हुए भारत ने यह दिखा दिया है कि वह चीन का सामना करने के लिए तैयार है। भारत भी चीन से काफी परेशान है। भारत का स्टैंड हमेशा से ही यह रहा है कि हिन्द प्रशांत क्षेत्र एक स्वतंत्र खुले और समावेशी क्षेत्र हो और इसे सुनिश्चित करने के लिए साझा दृष्टिकोण हो। चीन बीते 2 दशकों से लगातार समुद्र में अपना सैन्य बेस से लेकर व्यापार भी तेजी से बढ़ा रहा है। चीन यह समझ चुका है कि आने वाले समय में समुद्र पर राज करने वाला देश ही दुनिया पर राज करेगा। यही कारण है कि साऊथ चाइना सी पर कब्जे की उसने मुहिम छेड़ रखी है। साथ ही साथ वो समुद्र में नकली द्वीप बनाकर वहां अपने सैनिक तैनात कर रहा है, यानि यह पूरी तैयारी है कि भविष्य में समुद्र पर उसका कब्जा हो जाए। इसी खतरे को भांपते हुए क्वाड ने अपनी रणनीति में क्वाड देशों को सामुद्रिक सहायता देने के अलावा समुद्र में शांति और शक्ति संतुलन बनाए रखने में प्राथमिकता दी। क्वाड की वजह से चीन पूरी तरह बौखलाया हुआ है। दरअसल चीन को लगता है कि क्वाड में शामिल भारत, अमेरिका और जापान जैसे शक्तिशाली देश उसके खिलाफ मिलकर सी रणनीतिक साजिश को रच रहे हैं। भारत और जापान के बीच समुद्र में सहायता को लेकर एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ था। इसके तहत वह एक-दूसरे को सैनिक सहायता देंगे और इसका साझा मकसद चीन के खतरे को कम करना है।
भारत के लिए क्वाड का महत्व बहुत ज्यादा है। भारत का मकसद यह है कि चीन हिन्द महासागर में किसी भी कीमत पर अपने पांव आगे न बढ़ा सके। वैश्विक व्यापार के हिसाब से हिन्द महासागर का समुद्री मार्ग चीन के लिए काफी महत्वपूर्ण है और भारत हिन्द महासागर में काफी मजबूत है। श्रीलंका के हबनटोटा बंदरगाह पर कब्जा, म्यांमार में उसकी घुसपैठ के बाद चीन की महत्वकांक्षा हिन्द महासागर में काफी बढ़ चुकी है। लिहाजा क्वाड की मदद से भारत चीन को हिन्द महासागर से दूर रख सकता है। पिछले कुछ वर्षों से िवश्व के कई देशों ने हिन्द प्रशांत क्षेत्र में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। फ्रांस और जर्मनी भी हिन्द प्रशांत क्षेत्र में काफी सक्रिय हैं। लिहाजा यह समूह चीन पर नकेल कस सकता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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