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इनर लाइन परमिट सिस्टम पर सवाल

असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में अवैध घुसपैठिये करार दिए जाने के बाद अन्य राज्यों को इस बात की आशंका तो थी कि ये लोग अन्य राज्यों में घुसपैठ कर सकते हैं।

असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में अवैध घुसपैठिये करार दिए जाने के बाद अन्य राज्यों को इस बात की आशंका तो थी कि ये लोग अन्य राज्यों में घुसपैठ कर सकते हैं। पूर्वोत्तर के राज्य नागरिक संशोधन विधेयक को लेकर भी बंटे हुए हैं। केन्द्र सरकार के नागरिकता कानून के जरिये पलायन करके आए लोगों को वैध नागरिक बनाने की कोशिश का विरोध करते हुए मेघालय सरकार ने एक अध्यादेश लाकर राज्य से बाहर से आने वाले लोगों को 24 घंटे से ज्यादा रुकने पर रजिस्ट्रेशन अनिवार्य बना दिया है। हालांकि केन्द्र और राज्य सरकार के कर्मचारियों को इस नियम से बाहर रखा गया है। 
मेघालय डेमोक्रेटिक अलायंस मंत्रिमंडल ने मेघालय रेजिडेंट्स सेफ्टी एंड सिक्योरिटी एक्ट 2016 में संशोधन को मंजूरी दे दी है। राज्य में अवैध पलायनकर्ताओं को आने से रोकने के लिए इनर लाइन परमिट सिस्टम की मांग काफी अर्से से की जा रही थी। पहले यह कानून सिर्फ यहां रहने वाले लोगों पर लागू था। यह परमिट एक डाक्यूमेंट होता है जो केन्द्र सरकार भारतीयों को जारी करती है। यह एक प्रोटैक्टेड एरिया में सीमित समय तक रहने के लिए जरूरी होता है और फिलहाल नगालैंड, अरुणाचल और मिजोरम में लागू है। हालांकि मेघालय में यह परमिट केन्द्र सरकार नहीं राज्य सरकार देगी। 
मेघालय सरकार का कहना है कि यह अध्यादेश आदिवासी हितों की रक्षा के ​लिए लाया गया है। कोई भी व्यक्ति जो मेघालय का निवासी नहीं है और राज्य में 24 घंटे से अधिक रहता है तो उसे सरकार को दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे।मेघालय निवासी, सुरक्षा और सुरक्षा अधिनियम 2016 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा इनर लाइन परमिट की एवज में अवैध आव्रजन की जांच के लिए एक व्यापक तंत्र के हिस्से के रूप में पारित किया गया था। जब अधिनियम 2016 में पहली बार पारित किया गया था तो केन्द्र बि​न्दू किरायेदारों पर था। 
आदिवासियों या अन्य समुदाय की सांस्कृतिक पहचान को अक्षुण्ण बनाए रखने, अवैध घुसपैठ को रोकने और राज्य के नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए सुरक्षात्मक उपाय करने जरूरी होते हैं लेकिन एक राज्य से दूसरे राज्य में प्रवेश करने के लिए इनर लाइन परमिट व्यवस्था पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। कई विधि विशेषज्ञ राज्यों के भीतर ही नागरिकों के आवागमन को सीमित करने के अधिकार देने वाले कानून को मनमाना और अनुचित करार देते हैं क्योंकि इससे संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 का उल्लंघन होता है। पूर्वोत्तर के राज्यों में इनर लाइन परमिट व्यवस्था लागू करने की मांग को लेकर आंदोलन भी हुए हैं और हिंसा भी होती रही है। मणिपुर में 2016 में हुए आंदोलन में एक दर्जन से अधिक लोगों की जान भी चली गई थी। 
कभी जम्मू-कश्मीर में भी इनर लाइन परमिट व्यवस्था लागू थी। किसी भी भारतीय को जम्मू-कश्मीर जाने से पहले परमिट लेना पड़ता था लेकिन श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा परमिट के खिलाफ आंदोलन करने और बिना परमिट जम्मू-कश्मीर में दाखिल होने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। इसी दौरान श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु हो गई थी। उनकी मृत्यु के बाद कश्मीर में परमिट सिस्टम खत्म किया गया लेकिन पूर्वोत्तर के राज्यों में यह आज तक लागू है और यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी बहस का विषय बना हुआ है। 
आजादी से पहले ​ब्रिटिश सरकार ने इनर लाइन सिस्टम इसलिए लागू ​किया था कि नगालैंड और अन्य क्षेत्रों में प्राकृतिक औषधि और जड़ी-बूटियों का प्रचुर भंडार था जिसे ब्रिटिश सरकार इंग्लैंड भेजा करती थी। इन पर किसी और की नजरें नहीं पड़ें तो उन्हें सबसे पहले नगालैंड में इसकी शुरूआत की थी। आजादी के बाद भी ऐसी व्यवस्था लागू है। अब इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि इन राज्यों के मूल निवासियों की कला, संस्कृति रहन-सहन, बोलचाल औरों से काफी अलग है, ऐसी स्थिति में इनके संरक्षण के लिए इनर लाइन परमिट व्यवस्था को लागू करना बहुत जरूरी है ताकि बाहरी लोग इधर की संस्कृति को प्रभावित न कर सकें। 
अब जबकि मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35-ए को खत्म कर ​दिया है, लद्दाख को उससे अलग कर इन दोनों राज्यों को केन्द्र शासित राज्य बना दिया गया है तब नई स्थिति को देखते हुए देश के किसी राज्य में इनर लाइन परमिट व्यवस्था को बनाए रखने का क्या औचित्य है? राज्यों के लोगों की संस्कृति को जीवित रखने के लिए और भी ठोस उपाय हो सकते हैं। सरकारों को इस पर ​विचार करना चाहिए। पूर्वोत्तर के लोग अब तक राष्ट्र की मुख्यधारा से क्यों नहीं जुड़ पाए, इस सवाल पर भी मंथन जरूरी है।

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