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अमेरिका में भारतीय छात्रों की गिरफ्तारी पर सवाल

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अमेरिका में ‘पे एंड स्टे’ विश्वविद्यालय वीजा घोटाले में 129 भारतीयों की गिरफ्तारी के बाद उन पर सजा की तलवार लटक रही है। भारत में उनके अभिभावकों की चिन्ताएं भी बढ़ चुकी हैं। भारतीय विदेश मंत्रालय ने उनकी मदद के लिए हैल्पलाइन नम्बर भी जारी कर दिए हैं। इस मामले में जहां भारत की प्रतिष्ठा पर आंच आई है दूसरी तरफ अमेरिका सरकार की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ खड़े हुए हैं। यह भी सही है कि भारतीयों में विदेशों में जाकर बसने और अपार धन कमाने की लालसा कुछ ज्यादा ही है। जीवन में तरक्की करना कौन नहीं चाहता, कौन नहीं चाहता कि उसके पास जीवन की हर सुविधा मौजूद हो, लेकिन इसके लिए किसी भी दूसरे देश के नियमों आैर कायदे-कानूनों का उल्लंघन कर ‘शार्टकट’ रास्ता अपनाना भी गलत है।

शार्टकट कभी-कभी जीवन को जोखिम में डाल देता है। अक्सर देखा गया है कि भारतीय खाड़ी देशों में जाने के लिए काफी धन एजैंटों को देते हैं। लाखों भारतीय खाड़ी और यूरोपीय देशों में बसे हुए हैं लेकिन अनेक ऐसे हैं जो एजैंटों के माध्यम से लुट-पिट जाते हैं। भारतीय अदालतों में विदेश भेजने के नाम पर धोखाधड़ी के हजारों मुकद्दमे लम्बित हैं लेकिन यह मामला अमेरिका में धांधली का है। अमेरिका इमिग्रेशन से जुड़े अधिकारियों ने हाल ही के वर्षों में अवैध प्रवासियों का पता लगाने के लिए कई रणनीतियों पर काम किया है। 2015 में ओबामा के शासनकाल में उत्तरी न्यूजर्सी में एक फर्जी विश्वविद्यालय यूनिवर्सिटी ऑफ फार्मिंग्टन बनाई गई थी। यह यूनिवर्सिटी इसलिए बनाई गई थी ताकि अवैध प्रवासियों का पता लगाया जाए। डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अवैध प्रवासियों पर सख्ती बढ़ गई। पिछले वर्ष भी बड़ी कार्रवाई में आईसीई के अधिकारियों ने लगभग 300 लोगों को गिरफ्तार किया था। इस यूनिवर्सिटी की वेबसाइट भी है। इस वेबसाइट पर क्लासरूम आैर लाइब्रेरी में स्टूडेंट्स की तस्वीरें भी हैं। कुछ और तस्वीरें छा​त्र कैम्पस की हैं।

वेबसाइट से पता चलता है कि अंडरग्रेजुएट के लिए एक साल की फीस 8,500 डॉलर (6 लाख 7 हजार रुपए) और ग्रेजुएशन के लिए 11 हजार डॉलर है। दरअसल इस यूनिवर्सिटी में काम करने वाले लोग अमेरिका के इमिग्रेशन और कस्टम्स एन्फोर्समेंट एजैंसी (आईसीआई) के अंडरकवर एजैंट थे। मिशिगन के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में जो आरोप पत्र भारतीय छात्रों के खिलाफ दाखिल किया गया है, उसमें कहा गया है कि छात्रों को पता था कि यह सब फर्जी हैं। छात्रों ने यूनिवर्सिटी का इस्तेमाल पैसे के बदले अमेरिका में रहने देने की स्कीम के तौर पर किया। यह स्कीम वैसे लोगों की पहचान के लिए थी जो अमेरिका में वैध तरीके से आते हैं लेकिन यहां रहने और काम करने के लिए गलत हथकंडों को अपनाते हैं। 8 लोगों को यूनिवर्सिटी में नामांकन दिलाने के आरोप में भी पकड़ा गया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने भारतीय छात्रों की गिरफ्तारी पर कड़ी आपत्ति की है और छात्रों को कानूनी मदद मुहैया कराने की मांग की है। दूसरी ओर भारतीय मूल के प्रतिष्ठित अमेरिकी नागरिकों आैर कुछ मीडिया संगठनों ने 129 भारतीय छात्रों की गिरफ्तारी पर अमेरिकी कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा है कि निर्दोष छात्रों को फंसाना अपराध, गैरकानूनी और अनैतिक है।

एक पीड़ित छात्र का कहना है कि वह तो भारत भी गया था और बिना किसी दिक्कत के लौट आया, तब भी उसे गिरफ्तार नहीं किया गया। यह तो वही बात हुई कि कोई सरकार युवाओं को प्रलोभन देकर अपने किसी संगठन में भर्ती करे फिर उन्हें बंदूकें थमाकर आतंकवादी करार देकर दंडित करना शुरू कर दे। अमेरिकी सरकार छात्रों को वीजा शर्तों के उल्लंघन में फंसाने में शामिल थी। अमेरिका सरकार ने झूठे दावे कर निर्दोष लोगों से पैसे ले लिए। पहले उसने छात्रों को अपराध के लिए उकसाया फिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। आखिर एक फर्जी विश्वविद्यालय स्थापित कने की वजह क्या रही? वे केवल दुनिया को दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि एक साल से अधिक समय में 600 लोग इस जाल में फंसे। अमेरिका सरकार का रवैया काफी गुमराह करने वाला है। कुछ छात्रों को लगा कि वे एक वैध विश्वविद्यालय में दाखिला ले रहे हैं। उनका अनुभव काफी कटु रहा। अमेरिका में भारतीयों ने काफी प्रतिष्ठा हासिल की है। भारतवंशी अमेरिकीयों ने वहां की संस्कृति से आत्मसात कर काफी प्रगति की है लेकिन छात्रों के अमेरिका में रहने के लिए गलत मार्ग अपनाने से भारत की छवि पर तो आंच आई ही है लेकिन जो तरीका अमेरिका ने अपनाया उसे भी सही नहीं ठहराया जा सकता।

दोनों ही पक्ष अनैतिकता के लिए जिम्मेदार हैं। इस मामले में भारतीय विदेश मंत्रालय का दायित्व है कि वह अमेरिका सरकार से 129 छात्रों के जल्द भारत निर्वासन की मांग करे। यह तो तय है कि अगर ऐसा होता है तो उनका दोबारा अमेरिका जा पाना मुश्किल होगा। अब भारतीय अमेरिकी समूह छात्रों की मदद के लिए आगे आए हैं और कानूनी कम्पनियों ने निःशुल्क कानूनी सेवाएं देने की पेशकश की है। एक न एक दिन भारतीय छात्र तो लौट आएंगे लेकिन इससे विदेश जाने के इच्छुक अन्य भारतीयों को सबक लेना होगा कि फर्जीवाड़ा जीवन के लिए कितना महंगा साबित हो सकता है। अगर मेहनत से अपने देश में ही काम किया जाए तो सफलता मिल ही जाती है, जीवन में संघर्ष तो करना ही पड़ता है। रात ही रात में अमीर बनने के सपने छोड़िये और संघर्षशील जीवन का रास्ता अपनाएं।

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