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राहुल गांधी से मेघवाल तक !

भारत की संसदीय प्रणाली की यह अन्तर्निहित क्षमता इसकी बुनावट में ही इस प्रकार गुंथी हुई है कि यह दूध का दूध और पानी का पानी करने में हिचक नहीं दिखाती।

भारत की संसदीय प्रणाली की यह अन्तर्निहित क्षमता इसकी बुनावट में ही इस प्रकार गुंथी हुई है कि यह दूध का दूध और पानी का पानी करने में हिचक नहीं दिखाती। बिना शक कांग्रेस अध्यक्ष श्री राहुल गांधी ने केन्द्र सरकार की जवाब-तलबी करने में एक विपक्षी नेता की तरह मजबूती दिखाई और पूरी सरकार को कठघरे में खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी मगर वह यह भूल गये कि संसदीय प्रणाली में सरकार को कठघरे में खड़ा करते वक्त भी केवल वाजिब तरीकों से ही हमला किया जा सकता है। इसमें शक नहीं है कि वह पहली बार फ्रांस के साथ हुए लड़ाकू विमानों के सौदे के मामले को संसद की कार्यवाही मंे लाने में कामयाब हुए और एक विपक्ष के नेता के रूप में उन्होंने इस बारे में जनता के मन में उठने वाले सवालों को भी बेलौस तरीके से पूछा मगर वह भूल गये कि एेसे मामलों को केवल दस्तावेजों के सबूतों के आधार पर ही उठा कर अपना पक्ष पुख्ता किया जा सकता है। इस मामले में फ्रांस के राष्ट्रपति के साथ हुई उनकी निजी बातचीत के आधार पर संसद में उसे सबूत के तौर पर रखना जायज इसलिए नहीं था क्योंकि व्यक्तिगत बातचीत को कभी भी दस्तावेज के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता।

राहुल गांधी इस वास्तविकता को न जानते हैं इस पर यकीन नहीं किया जा सकता क्योंकि न जाने कितने पत्रकारों से मिलते समय वह स्वयं निजी बातचीत में ‘आफ द रिकार्ड’ बात करते हैं। एेसी बातचीत को आधार बनाकर जब कोई भी पत्रकार कोई समाचार बना देता है तो उसे उसकी नासमझी या बचपना कहा जाता है अथवा यह समझा जाता है कि वह अपने पेशे में अपरिपक्व है मगर दो देशों के बीच गोपनीयता का जो समझौता 2008 में उनकी ही पार्टी की सरकार के रहते विमान खरीद के मामले में हुआ था उसकी तफ्सील में जाये बिना ही जिस प्रकार उन्होंने फ्रांस के राष्ट्रपति के साथ हुई अपनी बातचीत का हवाला संसद में दे डाला उससे उल्टे सरकार को उन पर ही आक्रमण करने का अवसर मिल गया और वह इसका हवाला देकर साफ बचकर निकल गई जबकि राहुल गांधी का असली मकसद मनमोहन सरकार और वर्तमान सरकार के दौरान एक जैसे विमानों के मूल्य में हुई तीन गुना वृद्धि को सतह पर लाते हुए इसके निजी लाभार्थियों को निशाने पर लाने का था क्योंकि मनमोहन सरकार इन विमानों को भारत में बनाने के लिए सरकारी कम्पनी हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लि. का चयन करना चाहती थी। इसी वजह से राहुल गांधी ने प्रधानमन्त्री को चौकीदार से भागीदार तक कह डाला था मगर उन्होंने कांग्रेस पार्टी में एक से बढ़कर एक दिग्गजों के रहने के बावजूद आधारगत गलती कर डाली।

इसका मतलब यही निकलता है कि कांग्रेस अध्यक्ष एेसे नौसिखिये और अनुभवहीन साथियों के घेरे में हैं जिन्हें राजनीति क्रिकेट का 20 ओवरों का मैच लगता है। क्षमा कीजिये राजनीति अत्यन्त गंभीर और दूरदर्शी सोच रखने वालों का क्षेत्र होता है। इस मामले में उन्हें अपनी पार्टी की विरासत का इतिहास फिर से पढ़ना चाहिए। पूर्व राजा-महाराजाओं को कांग्रेस ने हमेशा नीति निर्धारण प्रक्रिया से इस प्रकार बाहर रखा कि वे लोकतन्त्र की असली ताकत जनता के महत्व को समझ सकें। इसकी वजह यही थी कि इनका पुराना इतिहास जनता के शोषण और अंग्रेजों की गुलामी करने का था मगर चुनावी प्रक्रिया में इनके जीतकर आने के बावजूद कांग्रेस पार्टी में इनकी हैसियत इन्दिरा काल के समय तक जनता के नौकरों की तरह ही रखी थी। भूल से जिस एक छोटे से रजवाड़े के राजा रहे स्व. विश्वनाथ प्रताप सिंह को इन्दिरा जी ने उत्तर प्रदेश का मुख्यमन्त्री बना दिया था उसने मौका मिलते ही इन्दिरा जी की मृत्यु के बाद उनके पुत्र स्व. राजीव गांधी की पीठ में इस तरह खंजर घोंपा कि इसके बाद कांग्रेस पार्टी अपने बूते पर कभी भी लोकसभा में बहुमत लाने के काबिल नहीं रही। बोफोर्स कांड के रच​ियता व कर्ताधर्ता वीपी सिंह ही थे। जिन्होंने एक बार यह तक कह डाला था कि वह राजा जयचन्द की वंशावली के ही हैं। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वह भाजपा को गालियां देकर चुनाव लड़े और भाजपा की मदद से ही 11 महीने तक प्रधानमन्त्री की कुर्सी पर बैठे रहे।

इतिहास सबक सीखने के लिए होता है। बेशक आजकल राजनीति को किसी 20 ओवरों के मैच में तब्दील करने की कोशिशें जरूर की जा रही हैं और इसके लिए रोजाना नये-नये सर्कसी करतब भी किये जा रहे हैं मगर कांग्रेस एेसी पार्टी रही है जिसने एेसी करतबी रवायतों को कभी तवज्जो नहीं दी और यह स्थायी भाव से गांधी की लाठी पकड़ कर चलती रही और अपने सिद्धान्तों पर डटी रही जिसने इस देश में समानता और समरसता व सामाजिक न्याय की नींव डाली परन्तु 1984 में इससे जो अपराध हुआ उसका खामियाजा यह आज तक भर रही है और विडम्बना यह है कि मौजूदा दौर मंे जिस नफरत के कारोबार को कुछ लोग इस मुल्क की रवायत में बदलने पर आमादा दिखाई देते हैं वे अपने पापों को इसकी रोशनी में रखकर देखने की जुर्रत कर रहे हैं।

यह बेवजह नहीं है कि एक कन्द्रीय मन्त्री अर्जुन मेघवाल डंके की चोट पर कह रहा है कि अलवर जिले में कल ही जिस एक मुस्लिम नागरिक की हत्या गायों की तस्करी करने के आरोप में तथाकथित गोरक्षकों ने सरेआम दिन के उजाले में पीट-पीट कर की है, वह कोई अलग घटना नहीं है बल्कि एेसी घटनाएं चुनाव आने पर और होती रहेंगी और जैसे-जैसे प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता बढ़ती जायेगी वैसे-वैसे ही एेसी घटनाओं में बढ़ोत्तरी होती जायेगी। इसमें चौंकने की जरूरत नहीं है क्योंकि एक और एेसा ही विदेश में पढ़ा-लिखा मन्त्री जयन्त सिन्हा सरकार की शोभा बढ़ा रहा है जिसने झारखंड में एेसी ही घटना के अपराधियों को अपने घर बुलाकर मालाएं पहनाई थीं और उनका सत्कार किया था मगर माननीय मेघवाल ने तो सारी हदें पार कर डालीं और प्रधानमन्त्री की लोकप्रियता को एेसी जघन्य घटनाओं से जोड़कर हत्यारों को परोक्ष रूप से राजभक्ति का प्रमाणपत्र दे डाला। वह भी तब जब सर्वोच्च न्यायालय कह रहा है कि भीड़ को अपने हाथ में कानून को लेने से रोकने के लिए सरकार को नया कानून लाना चाहिए मगर मेघवाल तो ‘मेघनाद’ की तरह गर्जना करके कह रहे हैं कि राक्षसी प्रवृत्तियों को कोई नहीं रोक सकता! शायद राजस्थान में चुनाव आने वाले हैं इसीलिए यह सब हो रहा है मगर मेघवाल भूल रहे हैं राजस्थान का रण थम्भोर उस ‘राव हम्मीर’ की धरती भी है जिसने दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सिपहसालारों के खिलाफ बगावत करने वाले मुस्लिम सरदारों को शरण दी थी और उनकी सुरक्षा करने में अपनी हस्ती को दांव पर लगा दिया था।

एेसे वीरों की धरती पर हिन्दू-मुसलमानों को गौरक्षा के नाम पर बांटने की कोई भी साजिश तब तक कभी भी कामयाब नहीं हो सकती जब तक यह राज्य राजपूती विरासत के साये में सांस ले रहा है। मेघवाल जी को क्या बताना पड़ेगा कि इस राज्य के मुसलमान जोगी ‘मांगणहार’ ही आज तक इस राजपूती विरासत के वीरगाथा खंड के वाचक रहे हैं। यह राज्य तो वह है जहां एक मुसलमान मुख्यमन्त्री स्व. बरकतुल्ला खां ने अपने शासन के दौरान लोकतन्त्र के झंडे को इस कदर ऊंचा किया था कि पूरी दुनिया सोच में पड़ गई थी कि हिन्दोस्तान का मतलब हिन्दू-मुसलमान होना नहीं बल्कि केवल भारतीय होना होता है मगर क्या कयामत है कि मन्त्रियों तक को यह बताना पड़ रहा है कि वे हिन्दू-मुसलमान अपने घर में होंगे, सरकार में रहने पर उनका ईमान सिर्फ संविधान होता है।

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