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पदकों की बरसात लेकिन कसक बाकी

इंग्लैंड में सम्पन्न हुई कामनवैल्थ गेम्स में भारत इस बार पदक तालिका में चौथे स्थान पर आया है। भारत  को कुल 61 पदक मिले जिसमें 22 गोल्ड, 16 रजत और 23 कांस्य पदक रहे। भारत ने कुल 16 स्पर्धाओं में ये प्रदर्शन किया। यद्यपि पदक तालिका में आस्ट्रेलिया 178 पदकाें के साथ टॉप पर है, दूसरे नम्बर पर इंग्लैंड (176 पदक) हैं और कनाडा 92 पदकों के साथ तीसरे नम्बर पर है लेकिन भारत की उपलब्धियां कुछ कम नहीं है। पिछली बार आस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में जो खेल हुए थे, उसमें भारत पदक तालिका में तीसरे नम्बर पर था उसे 26 गोल्ड मिले थे जबकि कनाडा चौथे नम्बर पर था उसे 15 गोल्ड मिले थे। यद्यपि भारत पदक तालिका में एक पायदान नीचे रहा। इसका कारण यह भी है कि गोल्ड कोस्ट में भारत ने  निशानेबाजी में 16 पदक जीते थे, लेकिन इस बार यह स्पर्धा गेम्स में शामिल नहीं थी, इस तरह भारत को घाटा हुआ। अगर शूटिंग शामिल होती तो भारत के पदकों की संख्या काफी अधिक हो जाती। राष्ट्रमंडल खेलों में भारत का सबसे अच्छा प्रदर्शन 2010 में नई दिल्ली में हुए खेलों में था, उस समय भारत ने 38 गोल्ड, 27 रजत और 37 कांस्य पदक समेत 102 पदक जीते थे। कौन नहीं जानता कि भारत के लिए इन खेलों में पहला गोल्ड मेडल 1958 में कार्डिफ में हुए खेलों में स्वर्गीय मिल्खा सिंह ने जीता था।

इस बार भारत पर पदकों की बरसात हुई लेकिन एक कसक बाकी रह गई। अंतिम दिन पी.वी. सिंधू, लक्ष्य सेन ने सिंगल और सात्विक साइराज तथा चिराग शैट्टी की जोड़ी ने युगल में स्वर्ण जीता। टेनिस खिलाड़ी अचंता शरत कमल और साथियान ज्ञानशेखर ने भी स्वर्ण और कांस्य जीते लेकिन हाकी में हमें निराश होना पड़ा और रजत पदक मिला।  मोदी सरकार के शासनकाल में जिस तरह से एथलैटिक्स पर ध्यान दिया गया उसके परिणाम दिखाई देने लगे हैं। लम्बी कूद, ऊंची कूद और स्टीपल चेज आदि में कभी भारतीय एथलीट कम ही नजर आते थे लेकिन इस बार भारतीयों ने अच्छा खासा नाम कमाया है। मुक्केबाजी में भारत ने तीन गोल्ड हासिल किए तो ट्रिपल जम्प और जैवलिन थ्रो (महिला वर्ग) में पहली बार पदक जीते। इसमें कोई संदेह नहीं कि सरकार की नीतियां और योजनाएं बहुत अच्छी हैं, पहले किरण रिजिजू और अब खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन भारत की उपलब्धियों में खिलाड़ियों का अपना संघर्ष भी कुछ कम नहीं रहा। राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के पहलवानों की सफलता आश्चर्यजनक नहीं है। भविष्य में हमें इनसे बहुत उम्मीद है। 

कामनवेल्थ गेम्स में भारतीय बेटियां छाई रहीं। भारत की बेटियां लगातार स्वर्णिम इतिहास लिख रही हैं। इन सबके बीच महिला मुक्केबाज निकहत जरीन काफी चर्चा में है जिसने सोना जीत कर खुशबू फैला दी है। लोग निकहत जरीन के नाम के बारे में जिक्र कर रहे हैं और कह रहे हैं कि उन्होंने अपने नाम के अनुरूप उप​लब्धि हासिल की है। दरअसल निकहत एक सूफी शब्द है जिसका अर्थ होता है खुशबू या महक जबकि जरीन का अर्थ होता है स्वर्ण यानी की गोल्ड। आज हर भारतीय को उस पर नाज है। निकहत जरीन तेलंगाना के निजामाबाद की रहने वाली है। केवल 13 वर्ष की उम्र में बाक्सिंग करने वाली निकहत अपना आदर्श आइकॉन मैरीकॉम को मानती है। निकहत आज न केवल मुस्लिम युवतियों के लिए बल्कि सभी भारतीय युवतियों के लिए आदर्श बन चुकी है। जब उसे स्वर्ण पदक से नवाजा जा रहा था और राष्ट्रीय गीत जन-गण-मन की धुन बज रही थी तो निकहत की आंखों में आंसू आ गए थे। निकहत की सफलता इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह ​मुकाम हासिल करने के लिए उसने कट्टरवाद को पराजित किया है। उसने रूढ़िवादी और कट्टरवादी सोच के खिलाफ अपने सपनों की उड़ान भरी है। जीत के लिए उसे शारीरिक, मानसिक और सामाजिक तौर पर हर तरह से तैयार होना पड़ा। यहां तक पहुंचने के लिए न केवल कड़ा संघर्ष करना पड़ा बल्कि उसे समाज का सामना करना पड़ा।

बाक्सिंग में गोल्ड मेडल जीतने वाली नीतू घनघस का संघर्ष भी काफी रहा। उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में आज भी सोच यही है कि लड़कियों की जगह घर में है और इस सोच से नीतू का गांव धनाना भी अछूता नहीं था। लेकिन उनके पिता ने गांव वालों के उलहानों की परवाह न करते हुए बेटी को मुक्केबाज बनाया। उसकी मां को यह डर था कि बेटी के चेहरे पर मुक्का पड़ने से वह बिगड़ गया तो उससे शादी कौन करेगा। नीतू को गांव से भिवानी मुक्केबाजी क्लब जाने के लिए रोजाना 20 किलोमीटर सफर तय करना पड़ता था। कुछ कर दिखाने का जज्बा हो तो फिर हर चीज सम्भव है। कसक अब भी बाकी है कि भारत पदक तालिका में नम्बर वन पर कब आएगा और हाकी में हम पुराना ​मुकाम कब हासिल करेंगे। उम्मीद है कि हम भविष्य में और अच्छा करेंगे।

आदित्य नारायण चोपड़ा

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