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राजस्थान, मास्क और रेल पटरी

कोरोना नियन्त्रण के मामले में राजस्थान के मुख्यमन्त्री श्री अशोक गहलोत ने पहले भीलवाड़ा माडल प्रस्तुत करके इसकी रोकथाम का रास्ता देश के अन्य राज्यों को सुझाया था, उसी प्रकार उन्होंने इस बीमारी के दूसरे हमले के समय आवश्यक एहतियाती कदमों की शुरूआत भी की है।

कोरोना नियन्त्रण के मामले में राजस्थान के मुख्यमन्त्री श्री अशोक गहलोत ने पहले भीलवाड़ा माडल प्रस्तुत करके इसकी रोकथाम का रास्ता देश के अन्य राज्यों को सुझाया था, उसी प्रकार उन्होंने इस बीमारी के दूसरे हमले के समय आवश्यक एहतियाती कदमों की शुरूआत भी की है।
श्री गहलोत ने  सभी नागरिकों के लिए बाहर निकलने पर मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया है। इसके साथ ही दिवाली के समय वायु प्रदूषण के बढ़ने के खतरे से बचने के लिए सभी प्रकार की आतिशबाजी व पटाखेबाजी पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया है।
ऐसा करना इसलिए आवश्यक था क्योंकि सर्दियों का मौसम शुरू होते ही वायुमंडल में प्रदूषण बढ़ गया है जिसके आतिशबाजी के धुएं से और ज्यादा प्रदूषित होने की आशंका रहती है और प्रदूषित वातावरण से कोरोना के मरीजों के लिए और खतरा बढ़ जाता है।
जिसे देखते हुए राजस्थान सरकार का यह फैसला स्वागत योग्य है। हालांकि राज्य में कोरोना से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या देश के अन्य राज्यों के मुकाबले बहुत कम केवल दो लाख ही है मगर राजस्थान की मेल-जोल भरी और त्यौहार व उत्सव प्रमुख संस्कृति को देखते हुए संक्रमण को काबू में रखना किसी चुनौती से कम नहीं है।
अतः श्री गहलोत ने पूरी तरह वैज्ञानिक सोच का इस्तेमाल करते हुए आगे भी इसे न बढ़ने देने के लिए जरूरी उपाय किये हैं। दरअसल मुख्यमन्त्री ने विधानसभा का विशेष सत्र पंजाब की तरह राज्य के अपने कृषि कानून बनाने के लिए और केन्द्र द्वारा संसद के पिछले सत्र में ही बनाये गये तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए बुलाया था।
उन्होंने विधानसभा में अपने राज्य के किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने सम्बन्धी कानून पंजाब से भी ज्यादा सख्त बनाये हैं और किसानों के साथ धोखा करने वाले व्यापारियों या कारोबारियों के लिए ज्यादा सख्त सजा देने के प्रावधान किये हैं मगर इसके साथ ही गहलोत सरकार भरतपुर जिले में पुनः गुर्जर आन्दोलन का सामना भी कर रही है।
राजस्थान में गुर्जर आन्दोलन के पीछे जिस तरह की राजनीति होती रही है उसे लोकतन्त्र में इसलिए स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि आन्दोलनकारी सरकारी सम्पत्ति को ही सबसे पहले अपना निशाना बनाते हैं। अब यह भी स्पष्ट हो चुका है कि इस आन्दोलन के नेताओं की अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षाएं भी होती हैं जिनका इजहार वे चुनावी मौके पर कर देते हैं।
इसी वजह से इस आन्दोलन से जुड़े दो नेताओं के गुट भी अलग-अलग हो चुके हैं। 2007 से यह आंदोलन शुरू हुआ था और उसके बाद राज्य की तीन सरकारों ने गुर्जरों को पांच प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया मगर ऐसा करने पर कुल आरक्षित स्थानों की संख्या 50 प्रतिशत से ऊपर पहुंच जाने पर सर्वोच्च न्यायलय ने इसे निरस्त कर दिया।
फिलहाल राजस्थान में कुल आरक्षण 49 प्रतिशत के लगभग है जिसे देखते हुए गुर्जर समुदाय को अपने पिछड़े वर्ग के कोटे से सन्तोष करना पड़ेगा। गुर्जर आन्दोलन के राजस्थान में दो गुट इस बीच बने- हिम्मत सिंह व किरोड़ी सिंह बैसला गुट। फिलहाल जो आन्दोलन चल रहा है वह बैसला गुट चला रहा है।
श्री बैसला फौज में कर्नल रह चुके हैं और भली भांति जानते हैं कि गुर्जरों को अलग से आरक्षण तब तक नहीं दिया जा सकता जब तक कि संविधान में ही संशोधन न कर दिया जाये। अतः वह यह मांग कर रहे हैं कि पिछड़ी जातियों के कोटे में पीछे से जो अधूरापन चल रहा है उसे जल्दी भरा जाये।
जाहिर है यह मांग जायज है और राज्य सरकार इस पर सहानुभूति पूर्वक विचार करने के लिए बाध्य है। गहलोत सरकार ने ऐसी इच्छा भी जाहिर कर दी है मगर आन्दोलनकारी पिछले कई दिनों से भरतपुर क्षेत्र में रेलवे लाइन पर धरना दिये बेठे हैं जिसकी वजह से पूरा रेलवे यातायात बाधित हो रहा है। कुछ स्थानों पर रेल पटरियों को क्षति पहुंचाने की भी खबर है और राजमार्ग पर भी यातायात रोकने की खबरे हैं।
इस बारे में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला सर्वविदित है जो कि गुर्जर आन्दोलन के सन्दर्भ में ही दिया गया था कि आन्दोलकारी सरकारी सम्पत्ति को न तो नुकसान पहुंचा सकते हैं और न ही सामान्य जन जीवन को बाधित करने की कार्रवाई कर सकते हैं।
इसके साथ ही न्यायालय ने कुछ आर्थिक दंडों का भी प्रावधान किया था मगर राजनीति भी गजब की शै होती है। राजस्थान के राजनैतिक हल्कों में शोर है कि इस आन्दोलन के बहाने कर्नल बैसला अपने पुत्र विजय सिंह को सियासत के अखाड़े में उतारना चाहते हैं।
लोकतन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति को राजनीति में आने का अधिकार है, इसके लिए किसी आन्दोलन की जरूरत भी नहीं होती क्योंकि आन्दोलन लोकतन्त्र में आम जनता के हितों में प्रयोग किया जाने वाला सात्विक हथियार होता है जिसमें किसी प्रकार की तोड़-फोड़ या हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं होता।
किसी भी आन्दोलन की सार्थकता जनता के जायज सवालों से ही सिद्ध होती है जिसकी वजह से सत्ता को बातचीत की मेज पर आना पड़ता है क्योंकि उन मांगों को जनता का समर्थन प्राप्त होता है। यह फैसला अब श्री बैसला को करना है कि उन्हें किन लोगों का और कितनों का समर्थन प्राप्त है? रेल यातायात को रोक देने से किसी भी आन्दोलन की सार्थकता सिद्ध नहीं होती है क्योंकि ऐसे कार्यों से अन्ततः आम आदमी का ही नुकसान होता है जिससे आन्दोलन का स्वरूप जबरन अड़ंगा डालने का बन जाता है। लोकतन्त्र में लोक कल्याण के लिए किया जाने वाला कोई भी आन्दोलन लोकहितों के ही खिलाफ नहीं हो सकता, रेलवे इस देश के लोगों की ही सम्पत्ति है जिसका उपयोग उनके कल्याण के लिए ही किया जाता है।
-आदित्य नारायण चोपड़ा

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