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राजनाथ, मनमोहन सिंह और कातिल चीन

स्वतन्त्र भारत का इतिहास हमारी वीर सेनाओं की गौरव गाथाओं से भरा पड़ा है परन्तु पड़ोसी चीन ने विगत 15 जून को जिस तरह की बर्बरता और पैशाचिकता हमारी ही गलवान घाटी में खिंची नियन्त्रण रेखा के पार आकर दिखाई और हमारे बीस जांबाज लड़ाकों को हलाक किया उसकी दूसरी मिसाल 72 वर्षों में नहीं मिलती।

स्वतन्त्र भारत का इतिहास हमारी  वीर सेनाओं की गौरव गाथाओं से भरा पड़ा है परन्तु पड़ोसी चीन ने विगत 15 जून को जिस तरह की बर्बरता और पैशाचिकता हमारी ही गलवान घाटी में खिंची नियन्त्रण रेखा के पार आकर दिखाई और हमारे बीस जांबाज लड़ाकों को हलाक किया उसकी दूसरी मिसाल 72 वर्षों में नहीं मिलती।
किसी देश की फौज का गुंडा-आवारा तत्वों की तरह व्यवहार करना अन्तर्राष्ट्रीय सैनिक नियमों के पूरी तरह विरुद्ध है और खतावार के लिए सजा भी तजवीज करता है। अतः रक्षा मन्त्री श्री राजनाथ सिंह का यह कहना कि अब चीनी मोर्चे पर तैनात सैनिकों को मौके की नजाकत को देखते हुए वाजिब कार्रवाई करने का हुक्म जारी कर दिया गया है न केवल पूरी तरह माकूल है बल्कि भारत-चीन के बीच हुए विभिन्न सीमा समझौतों की व्यावहारिक ‘अमली’ तस्वीर को भी पेश करता है लेकिन असल सवाल से भारतवासी इसलिए सकते में हैं कि चीन यह मानने को तैयार नहीं है कि उसने गलवान घाटी में नियन्त्रण रेखा के पार आकर जालिमाना हरकत को अंजाम दिया बल्कि यह दावा कर रहा है कि वह अपने इलाके में ही था और पूरी गलवान घाटी उसकी है।
इसका मतलब यह निकलता है कि चीन उल्टे भारत पर अपने क्षेत्र में अतिक्रमण करने का आरोप लगा रहा है। यह मामला कूटनीतिक व सामरिक दोनों ही दृष्टियों से बहुत गंभीर है क्योंकि चीन भारत की भौगोलिक सीमाओं का पुनर्निर्धारण अपनी मर्जी के हुक्म से करना चाहता है मगर 2013 में ठीक ऐसी ही उसकी हरकत को तब की डा. मनमोहन सिंह सरकार ने जिस प्रकार असफल किया था वह खुद में एक नजीर के तौर पर दोनों देशों के बीच के सम्बन्धों को निर्देशित कर सकती है और चीन को वापस अपने दायरे में रहने की ताकीद कर सकती है, 2013 में चीन ने लद्दाख के दौलतबेग ओल्डी क्षेत्र में अक्साई चिन के निकट लद्दाख की सीमा से छूते इलाके में आकर सैनिक लाव-लश्कर के साथ निर्माण कार्य शुरू कर दिया था। तब भारतीय सैनिकों ने इस पर आपत्ति की और दोनों फौजें आमने-सामने आ गईं।
दूसरी तरफ भारत ने ‘चुमार’ क्षेत्र में  सैनिक निर्माण शुरू कर दिया जिस पर चीन ने आपत्ति की और अपनी सुरक्षा के लिए खतरा बताना शुरू कर दिया, तब तीन सप्ताह तक दोनों देशों के सैनिक अफसरों के बीच बातचीत चली और यह तय हुआ कि जिस क्षेत्र में भी नियन्त्रण रेखा के बारे में चीन व भारत की अवधारणा होगी वहां दोनों देशों के फौजी आपस में नहीं भिड़ेंगे और अपने-अपने इलाकों में गश्त लगाते रहेंगे तथा साथ ही ऐसे क्षेत्र में कोई स्थायी निर्माण भी नहीं करेंगे। यह समझौता भारत द्वारा चुमार में फौजी निर्माण करने के बाद हुआ था।
समझौते के बाद दोनों पक्षों ने अपने-अपने निर्माण हटा लिये। इसके बाद चीन ने 2014 में देपसांग घाटी में अतिक्रमण किया मगर बाद में स्वयं ही स्वीकार कर लिया कि नियन्त्रण रेखा की गलत अवधारणा की वजह से उससे यह भूल हो गई थी। डा. मनमोहन सिंह जैसे सरल, मृदु भाषी व सदाकत की सलाहियत के मालिक प्रधानमन्त्री की सरकार ने बड़े आराम से चीन की हेकड़ी निकाल दी थी और भारत की ताकत का फौजी अन्दाज में कूटनीतिक मुजाहिरा भी करा डाला।
उन्हीं मनमोहन सिंह ने भारत-चीन हिंसक झड़प के बारे में आज जो विचार व्यक्त किये हैं वे देश की सरकार और समस्त राजनैतिक दलों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो सकते हैं। उसका कुछ भाग मैं अक्षरशः उद्धृत कर रहा हूं -आज हम इतिहास के नाजुक मोड़ पर खड़े  हैं, हमारी सरकार के निर्णय व उसके द्वारा उठाये गये कदम तय करेंगे कि भविष्य की पीढि़यां हमारा आंकलन कैसे करें, जो देश का नेतृत्व कर रहे हैं उनके कन्धों पर कर्त्तव्य का गहन दायित्व है। हमारे प्रजातन्त्र में यह दायित्व देश के प्रधानमन्त्री का है। प्रधानमन्त्री को अपने शब्दों व ऐलानों द्वारा देश की सुरक्षा एवं सामरिक व भू-भागीय हितों पर पड़ने वाले प्रभाव के प्रति सदैव बेहद सावधान रहना चाहिए।
चीन ने अप्रैल 2020 से लेकर आज  तक भारतीय सीमा में गलवान घाटी व पेंगोंग-सो झील में अनेकों बार जबरन घुसपैठ की है, हम न तो उसकी धमकियों या दबाव के आगे झुकेंगे और न ही अपनी भूभागीय अखंडता से कोई समझौता स्वीकार करेंगे, प्रधानमन्त्री को अपने बयान से उनके षडयंत्रकारी रुख को बल नहीं देना चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकार के सभी अंग इस खतरे का सामना करने व स्थिति को और ज्यादा गंभीर होने से रोकने के लिए परस्पर सहमति से काम करें।
यही समय है जब पूरे राष्ट्र को एकजुट होना है तथा संगठित होकर चीनी दुस्साहस का जवाब देना है। हम सरकार को आगाह करेंगे कि भ्रामक प्रचार कभी भी कूटनीति तथा मजबूत नेतृत्व का विकल्प नहीं हो सकता। हम प्रधानमन्त्री व केन्द्र सरकार से आग्रह करते हैं कि वे वक्त की चुनौतियों का सामना करें और कर्नल बी. सन्तोष बाबू और हमारे सैनिकों की कुर्बानी की कसौटी पर खरा उतरें, जिन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा व भूभागीय अखंडता के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
मगर रक्षामन्त्री राजनाथ सिंह ने पहले ही डा. मनमोहन सिंह के मन्तव्य के अनुसार ही सीमा पर तैनात भारतीय फौजियों को खुला हाथ देकर प्रत्यक्ष घोषणा कर दी है कि चीन होश की दवा करे। इसका मतलब है कि मुक्के का जवाब गोली से दिया जायेगा।
राजनाथ सिंह स्वयं में बेखौफ होकर सच्चे राष्ट्रवाद और राष्ट्रभक्ति की राजनीति करते हैं उन्होंने बहुत ही साफ तौर पर विगत 2 जून को कह दिया था कि चीनी सैनिक लद्दाख में हमारे इलाके में अच्छी-खासी संख्या में घुस आये हैं, उसके बाद ही 6 जून को दोनों सेनाओं के लेफ्टि. जनरल स्तर के अफसरों के बीच बातचीत हुई थी और साफ हो गया था कि चीनी सैनिक वापस अपने इलाके में जायेंगे मगर 15 जून के आते-आते चीन ने धोखा देते हुए पल्टी मार डाली और हमारे 20 वीर सैनिकों को  मार डाला।
राजनाथ सिंह अब रूस में हैं और वहां उनकी मुलाकात उन रूसी नेताओं के साथ होगी जो हर मुसीबत की घड़ी में भारत के साथ मजबूती से खड़े रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत का परचम गलवान घाटी में बेसाख्ता तरीके से फिर से उंचा उड़ेगा। आज की रात शम्मा जलाये रखिये, सुबह होने को है माहौल बनाये रखिये।   

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