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राजनाथ सिंह का ‘रक्षा कौशल’

रक्षामन्त्री श्री राजनाथ सिंह को ऐसा राजनीतिज्ञ कहा जा सकता है जो सत्य की स्थापना के लिए कोई भी बहाना स्वीकार नहीं करते बल्कि उसे तथ्यात्मक रूप में गर्व से स्वीकार करते हैं।

रक्षामन्त्री श्री राजनाथ सिंह को ऐसा राजनीतिज्ञ कहा जा सकता है जो सत्य की स्थापना के लिए कोई भी बहाना स्वीकार नहीं करते बल्कि उसे तथ्यात्मक रूप में गर्व से स्वीकार करते हैं। 2020 में जब चीनी फौजों ने लद्दाख के क्षेत्र में अतिक्रमण किया था तो उन्होंने ही सबसे पहले सार्वजनिक रूप से इसकी पुष्टि की थी और  ऐलान किया था कि भारत की तरफ से इसके जवाब में माकूल कार्रवाई की जायेगी। और वास्तव में एेसा हुआ भी क्योंकि लद्दाख क्षेत्र की गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों ने जून महीने में जो कार्रवाई की उसने चीनी फौजों को ही नहीं बल्कि चीन की कम्युनिस्ट सरकार को भी यह सोचने के लिए विवश कर दिया कि अब का भारत 1962 का भारत नहीं है। इस कार्रवाई में बेशक 20 भारतीय सैनिकों ने वीरगति को प्राप्त किया मगर बदले में कितने चीनी सैनिक हलाक हुए इसका हिसाब चीन आज तक नहीं दे सका है। बेशक भारत की विपक्षी पार्टियां चीन के मुद्दे पर आक्रामक रही हैं और सरकार से लगातार सवाल पूछती रही हैं कि वह बताये कि सीमा पर क्या हालात हैं और चीन के कब्जे में भारत की कितनी भूमि है। 
देश के रक्षामन्त्री होने का दायित्व निभाते हुए श्री राजनाथ सिंह ने हमेशा यही जवाब दिया कि भारत अपनी एक इंच भूमि भी विदेशी कब्जे में नहीं रहने देगा। राजनाथ सिंह ने जून 2020 के बाद स्वयं लद्दाख मोर्चे पर जाकर भारतीय सैनिकों का मनोबल बढ़ाया और उन्हें आश्वस्त किया कि राष्ट्र रक्षा के पावन कार्य में पूरा भारत उनके साथ खड़ा हुआ है। हाल ही में श्री सिंह अमेरिका के साथ आपसी सैनिक सम्बन्धों व सहयोग पर चर्चा करने के लिए विदेशमन्त्री एस. जयशंकर के साथ वाशिंगटन गये थे और वहां उन्होंने अमेरिकी रक्षा मन्त्री लायड जे आस्टिन के साथ बातचीत की और स्पष्ट किया कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा किसी अन्य देश के साथ उसके सम्बन्धों से प्रभावित नहीं होगी बल्कि किसी भी देश के साथ अपने सम्बन्धों से सम्बद्ध होगी। इसका मतलब यही निकलता है कि भारत किसी एक पाले में खड़े होकर अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा की समीक्षा करेगा। उनका यह कथन बताता है कि अमेरिका सामरिक व रणनीतिक रूप से भारत को प्रभावित करने की स्थिति में नहीं आ सकता। अमेरिका के साथ रक्षा सहयोग करके भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत तो करना चाहता है मगर इसका मतलब यह कतई न निकाला जाये कि वह अमेरिका पर निर्भरता को तवज्जो दे रहा है। भारत अपनी रक्षा सामर्थ्य तो बढ़ाना चाहता है मगर स्वावलम्बी होकर। इस दिशा में श्री राजनाथ सिंह ने बहुत महत्वपूर्ण कार्य किया है और विदेशी हथियारों पर भारत की निर्भरता समाप्त करने के लिए देश में ही उनके उत्पादन के लिए नये-नये रास्ते तैयार किये हैं। 
इस सन्दर्भ में विदेशी सामरिक हथियारों की टैक्नोलोजी हस्त गत करने के लिए बाकायदा नियमावली का पालन किया जा रहा है। श्री राजनाथ सिंह ने अमेरिका को तब भी स्पष्ट रूप से जता दिया था जब उसने रूस से आधुनिक मिसाइल खरीदने के सौदे पर आपत्ति की थी। श्री सिंह ने कहा था कि यह भारत का अधिकार है कि वह जिस देश से चाहे हथियार खरीदे इसमें किसी तीसरे देश को दखल देने का हक नहीं है। जहां तक चीन का सम्बन्ध है तो राजनाथ सिंह की नीति रही है। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद का हल शान्तिपूर्ण तरीकों से होना चाहिए और सीमावर्ती क्षेत्र में भारत की स्थिति में अन्तर नहीं आना चाहिए। इसीलिए हमने देखा कि जब चीन गलवान घाटी व लद्दाख के इलाकों में अपनी सैनिक गतिविधियां कम करने के लिए नहीं माना तो उन्होंने भी भारतीय क्षेत्र में पचास हजार सैनिकों को मय लाव-लश्कर के तैनात कर दिया जिससे चीन यह समझ सके कि उसकी बेजा हरकतों का मुंहतोड़ जवाब बिना कोई समय गंवाये दिया जायेगा। 
चीन ने जब लद्दाख के इलाके में भारतीय सेना की चौकियों को घेरना चाहा तो भारतीय फौजों ने ऐसे ऊंचे स्थानों पर मोर्चा जमा दिया जहां से चीन की सैनिक गतिविधियों को अपनी गिरफ्त में लिया जा सके। इससे चीन की समझ में यह आ गया कि यदि उसने हद तोड़ने की कोशिश की तो उसे ईंट का जवाब पत्थर से मिलेगा। इसके साथ यह भी महत्वपूर्ण है कि पाकिस्तानी सीमा पर भी पूरी शान्ति बहाल करने में उनके नेतृत्व में बेहतर काम हुआ है और दोनों देशों के सैनिक कमांडरों के बीच युद्ध विराम का पालन करने की नीति पर काम हो रहा है। श्री राजनाथ सिंह सैनिक स्तर पर जिस तरह सीमावर्ती देशों के साथ वार्तालाप का तन्त्र कायम किया है उससे सरहदों पर रहने वाले हजारों भारतीय नागरिक चैन की सांस ले रहे हैं। विशेषकर पाकिस्तान सीमा पर पंजाब व राजस्थान के गांवों के लोगों का जीवन सुख-शान्ति से गुजर रहा है। सीमा पर शान्ति होने से ही भारत के सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोग अपना दैनिक जीवन आराम से गुजार पाते हैं वरना अशान्ति होने पर इनका जीवन भारी मुश्किलों से भर जाता है और उनके आर्थिक व सामाजिक हालात बहुत दयनीय हो जाते हैं। अतः सफल रक्षामन्त्री वही कहलाता है जिसके नेतृत्व में सीमा पर अधिक से अधिक शांत माहौल बना रहे और इसके लिए कुशल नेतृत्व की जरूरत होती है। अतः राजनाथ सिंह का अमेरिका में बैठ कर यह कहना कि ‘यदि भारत को किसी ने छेड़ा तो वह छोड़ेगा नहीं’ उनके रक्षा कौशल को दर्शाता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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