चीन का रवैया भारत के प्रति कभी भी सकारात्मक नहीं रहा। उसने न केवल सीमा विवाद को लेकरतार तनाव पैदा किया बल्कि दक्षिण एशिया में भारत के प्रभाव को कम करने के लिए पाकिस्तान के साथ दोस्ती की और साथ ही साथ भारत के पड़ोसी देशों नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका और बंगलादेश में अपनी पैठ बढ़ाई। लगा चीन की गतिविधियों को भारत के सामरिक तथा रक्षा हितों के लिए सही नहीं कहा जा सकता लेकिन केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपनी कूटनीति के जरिए चीन को हर कदम पर मात ही दी है और चीन का जबरदस्त ढंग से प्रतिरोध किया है। शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक से अलग केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और चीन के रक्षा मंत्री जनरल ली शांग फू में मुलाकात हुई जिसमें रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भारत की तरफ से चीन को कड़ा संदेश दे दिया है। रक्षा मंत्री ने चीन के रक्षा मंत्री को यह कह कर आईना दिखाया कि चीन ने मौजूदा समझौतों का उल्लंघन कर द्विपक्षीय संबंधों के पूरे आधार को खत्म कर दिया है। जबकि दोनों देशों के संबंधों का विकास सीमाओं पर शांति एवं अमन-चैन के प्रसार पर आधारित है। भारत और चीन के सैन्य कमांडरों के बीच 18 दौर की बातचीत के बाद गलवान और पैगौंग झील के उत्तरी तट और हॉट स्प्रिंग्स सहित लद्दाख के कुछ क्षेत्रों से सैनिकों की वापसी हुई लेकिन रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण डेमचोक, देवसांग की स्थिति को हल करने में कोई खास प्रगति नहीं हुई।
लद्दाख में बार-बार चीनी अतिक्रमण के कारण भारतीय सैनिकों के साथ चीनी सैनिकों का आमना-सामना हुआ है। 2020 में गलवान में हुई झड़प में भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों को गर्दनें मरोड़ कर मार डाला था। हालांकि इस झड़प में 20 भारतीय जवानों को शहादत देनी पड़ी थी लेकिन चीन को िजस कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। इसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। भारत के आंकलन के अनुसार चीनी सेना पीएलए के हताहतों की संख्या भारतीय सेना की तुलना में दोगुणी थी। दोनों पक्ष लगभग तीन वर्षों से पूर्वी लद्दाख में सीमा रेखा पर डटे हुए हैं। भारतीय और चीनी सेनाओं के 60 हजार से अधिक सैनिक हथियार लेकर डटे हुए हैं। भारत चीन के साथ सीमा पर किसी भी आक्रामक स्थिति को आकस्मिक स्थिति का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार है।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर लगातार यह कहते आ रहे हैं कि चीन के साथ हमारे संबंध सामान्य नहीं हैं और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बड़ी संख्या में सैनिक तैनात हो तो फिर संबंध सामान्य हो भी नहीं सकते। सीमा पर तनाव के चलते ऐसी खबरें लगातार आ रही हैं कि चीन लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर भारतीय क्षेत्र को काट रहा है और सड़कों, हवाई अड्डों और छोटे-छोटे गांव बसाकर बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रहा है। चीन का मुकाबला करने के लिए भारत को भी सीमाओं पर पूरी तैयारी करनी पड़ रही है। चीन लगातार अरुणाचल पर अपना दावा जताता है और कभी अरुणाचल के स्थानों का नाम बदलता है। जबकि वास्तविकता यह है कि अरुणाचल भारत का अभिन्न अंग है और मनघड़न्त नामों को बताने का प्रयास वास्तविकता को नहीं बदल सकता। दोनों देशों में तनाव के बावजूद आपसी व्यापार बढ़ रहा है। चीन से भारत आयात ज्यादा करता और निर्यात कम करता है। इस असंतुलन को लेकर भी भारत की अपनी चिन्ताएं हैं। गलवान घाटी की घटना और कोविड महामारी के पहले तक चीन और भारत के बीच आपसी व्यापार बहुत तेजी से बढ़ा था जिसको लेकर भारत के आर्थिक जगत में चिन्ताएं व्यक्त की जा रही थी। भारत ने कई दर्जन चीनी एप्स पर रोक लगाई और इसके साथ ही संवेदनशील क्षेत्रों में चीन के निवेश को सीमित किया। भारत अब आत्मनिर्भर बन रहा है। इससे चीन को बहुत नुक्सान होगा।
चीन का इतिहास और उस का विस्तारवादी रवैया देखते हुए सीमा विवाद का कोई ठोस हल निकट भविष्य में संभव न देखते हुए अब भारत ने चीन से उसी भाषा में बात करनी शुरू कर दी है जो भाषा वह समझता है। टकराव के बावजूद चीन भारत से सीधा टकराव करने से बच रहा है। क्योंकि रूस और जापान काफी ताकतवर हो चुके हैं और अमेरिका उससे पूरी तरह से टक्कर ले रहा है। अमेरिका ने हाल ही में यह वक्तव्य देकर कि वह अरुणाचल को भारत का अभिन्न अंग मानता है। भारत का खुला समर्थन कर दिया था। अमेरिका, जापान, भारत, आस्ट्रेलिया चार देशों का क्वाड चीन का मुकाबला करने के लिए तैयार है और यह सभी भारत-प्रशांत क्षेत्र में रक्षा सहयोग बढ़ाने पर सहमत हैं। दक्षिणी चीन सागर में भी चीन का वर्चस्व खत्म करने के लिए भी क्वाड पूरी तरह से काम कर रहा है। आस्ट्रेलिया को चीन का मुकाबला करने के लिए सामरिक तैयारी भी कर रहा है। भारत चीन से सीमा पर हर स्थिति से निपटने को तैयार है। चीन को संबंध सामान्य बनाने के लिए पूर्वी लद्दाख के तनाव को कम करना ही होगा अन्यथा उसे अपने आर्थिक हितों का बहुत नुक्सान सहना पड़ सकता है।