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राजनाथ की पाकिस्तान को चेतावनी

अफगानिस्तान से अमेरिका भाग चुका है। पूरी दुनिया के निशाने पर अमेरिका की बाइडेन सरकार है। अमेरिका विरोधी चीत्कार फिर से सुनाई देने लगी है।

अफगानिस्तान से अमेरिका भाग चुका है। पूरी दुनिया के निशाने पर अमेरिका की बाइडेन सरकार है। अमेरिका विरोधी चीत्कार फिर से सुनाई देने लगी है। अमेरिकी न तो पहले विश्वासपात्र थे न आने वाले वर्षों में होंगे। ऐसी टिप्पणियां सुनने को मिल रही हैं कि अमेरिकी अपना उल्लू सीधा करके निकल जाते हैं और उनके द्वारा फैलाई गंदगी किसी और को साफ करनी पड़ती है। अमेरिका बहुत बड़ी ताकत है, उसके इशारे पर एक मिनट में सब कुछ ध्वस्त हो सकता है लेकिन वह भी पाकिस्तान की साजिश को पकड़ नहीं पाया। जबकि अमेरिका अफगानिस्तान और पाकिस्तान से जुड़े इतिहास से पूरी तरह जानकार है।
स्तिथि को देखते हुए भारत ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा प्रणाली में बदलाव कर उसे सुदृढ़ बनाने की कवायद शुरू कर दी है।
अफगानिस्तान में सोवियत सेनाओं को असहाय बनाने का श्रेय भी पाकिस्तान को मिला था। तब अमेरिकी सीआईए ने पाकिस्तान की आईएसआई के सहयोग से मुजाहिदीन सेना तैयार कर उसे धीरे-धीरे अफगानिस्तान में सोवियत सेना के खिलाफ लड़ने के लिए भेज दिया था। अब इतिहास की पुनरावृत्ति हुई है। कौन नहीं जानता कि पाकिस्तान ने तालिबान की सरकार में वापसी के लिए हर संभव मदद की है। तालिबान नेताओं और पाक प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच गहरा दोस्ताना है। पाकिस्तान ने अपने प्रतिष्ठानों का पूरा उपयोग किया और अमेरिका की हार सुनिश्चित की। इस अभियान में उसे चीन का कूटनीतिक समर्थन मिला। अब सबसे ज्यादा खतरा भारत के लिए पैदा हो गया है। तालिबान और पाकिस्तान के गठजोड़ से एक नया राक्षस पैदा हो गया। जिससे पूरी दुनिया को निपटना ही होगा। पाकिस्तान इस बात का ख्वाब देख रहा है कि तालिबान उनको भारत से कश्मीर छीनकर पाकिस्तान को सौंप देगा। यह सोचकर पाकिस्तान में लोग खुशी जता रहे हैं। इमरान खान की पार्टी पीटीआई की नेता नीलम इरशाद शेख ने एक न्यूज चैनल में चर्चा के दौरान कहा कि तालिबान वापस आएगा और कश्मीर फतेह कर हमें देगा। पाकिस्तान ने उनका साथ दिया और अब वह हमारा साथ देगा। भारत कई वर्षों से अमेरिका को कहता आया है कि आतंकवाद को खत्म करना है तो पहले पाकिस्तान की गर्दन मरोड़े लेकिन 9/11 हमले के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति बुश ने युद्ध उन्माद में अफगानिस्तान से बदला लेने की धुन में आतंकवाद की खेती करने वाले पाकिस्तान को अपना साथी बना लिया। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप सरकार ने आते ही पाकिस्तान की गर्दन दबाना शुरू किया और उसे दी जा रही आ​र्थिक सहायता बंद कर दी। परिणाम स्वरूप वह कटोरा लेकर चीन के पास पंहुचा। अंततः पाकिस्तान और चीन की जुगलबंदी हो गई। 
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह बहुत ही अनुभवी आैर परिपक्व नेता हैं। पूरी स्तिथि का आकलन करने के बाद उन्होंने पाकिस्तान और चीन को सीधी चेतावनी दी है कि भारत राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर कभी समझौता नहीं करेगा। भारत अपनी जमीन पर आतंकवादियों का मुकाबला करेगा। भारत अपनी जमीन से वार करने में सक्षम है बल्कि जरूरत पड़ने पर सीमा पार भी कर सकता है। उन्होंने साफ कहा कि हमारे पड़ोसी देश ने छद्म युद्ध और आतंकवाद को राज्य की नीति का अभिन्न अंग बना लिया है और उसने भारत को निशाना बनाने के लिए आतंकवादियों को हथियार, पैसा और प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया है। रक्षामंत्री का बयान इस बात का संकेत है कि परिस्थितियों को देखते हुए भारत ने राष्ट्रीय सुरक्षा प्रतिमान में बदलाव के साथ अपनी नीतियों में बदलाव किया है बल्कि खुद को भी मजबूत बनाया है। क्वाड की स्थापना इन ​​स्थितियों को ध्यान में रखते हुए की गई है। आधिकारिक तौर पर चतुर्भज सुरक्षा संवाद अमेरिका, आस्ट्रेलिया भारत और जापान को एक साथ लाता है। चीन और पाकिस्तान से चुनौतियां तो आजादी के बाद भारत को बिरासत में मिली हैं। भारत अब एक बड़ी सैन्य शक्ति है। भारत ने बालाकोट एयर स्ट्राइक कर पाकिस्तान को और लद्दाख में चीनी सेना का जबर्दस्त प्रतिरोध कर अपनी सैन्य शक्ति  का परिचय दे दिया है।
भारत भी यह जानता है कि अफगानिस्तान में तालिबानी निजाम काबिज होने पर पाकिस्तान भले ही तालियां बजा रहा हो लेकिन अफगान की बिसात की दरारें उसकी उम्मीदों पर पानी भी फेर सकता हैं। इतना ही नहीं साम्राज्य की कब्रगाह कहलाने वाले अफगानिस्तान में चीन और पैसे के दम पर राजनितिक विस्तार की साजिश रच रहा है तो यह उसकी बड़ी भूल ही साबित हो सकती है। यह भी संभव है कि तालिबान और पाकिस्तान के गठजोड़ से उपजा नया राक्षस पाकिस्तान को ही लील जाए। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रिश्तों में एक बड़ी फाल्ट लाइन है डूरंड रेखा जो ब्रिटिश साम्राज्य के समय खींची गई थी। इसके तहत अफगानिस्तान का एक हिस्सा ब्रिटिश साम्राज्य को दिया गया था जो अब पाकिस्तान के पास है। पाकिस्तान लम्बे समय से इस कोशिश में लगा है कि किसी तरीके से डूरंड रेखा के इस समझौते को अंतर्राष्ट्रीय सीमा में बदला लिया जाए। अफगान जमीन सौदा तालिबान के लिए भारी पड़ सकता है। यह मामला जमीन पर काफी पेचीदा है। क्योंकि पाकिस्तान के इलाके में भी पश्तून अपनी आजादी के लिए आवाज बुलंद कर रहे हैं। विभिन्न गुटों में बंटे तालिबानी अफगानिस्तान पर शासन चलाने में अक्षम हैं, यह साफ नजर आ रहा है। पाकिस्तान में करीब 30 लाख अफगान शरणार्थी हैं, इतनी बड़ी संख्या में लोगों को तभी वापस लिया जा सकता है जब अफगान अर्थव्यवस्था उनका बोझा उठाने को तैयार हो। रक्षामंत्री ने पाकिस्तान को चेतावनी सभी स्थितियों का आकलन करने के बाद ही दी है। जरूरत पड़ी तो भारत ही पाकिस्तान को निपटा देगा। 

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