''हिन्दुत्व इस राष्ट्र के प्राण हैं,
हिन्दुत्व इस राष्ट्र की आत्मा है,
हिन्दुत्व एक सम्पूर्ण जीवन वृति है,
हिन्दुत्व आध्यात्मिकता की चर्म उपलब्धि है,
हमें अपनी जड़ों की ओर लौटना ही होगा।''
यह भारतवर्ष का दुर्भाग्य ही रहा कि कभी शकों ने इस आर्यव्रत पर आक्रमण किया। चंगेज खान से तैमूर लंग तक न जाने कितने ही अहमदशाह अब्दाली, महमूद गजनबी, मोहम्मद गौरी और नादिर शाह तक कितने ही जालिमों ने हमारे भारत पर आक्रमण कर हमें लूटा। आक्रमण मुगलकाल में भी हुए। बाबर से लेकर औरंगजेब तक सभी आक्रांता थे, जिन्होंने तलवार के बल पर हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन कराया और श्रीराम जन्मभूमि, श्रीकृष्ण जन्मभूमि और काशी विश्वनाथ धाम को भी नहीं छोड़ा और हजारों मंदिरों को ध्वस्त कर मस्जिदें तामीर करवा दीं। राम मंदिर राजनीति का विषय नहीं है बल्कि आस्था का विषय है। आस्था हर व्यक्ति की अस्मिता से जुड़ा प्रश्न है। राम लला साढ़े पांच सौ वर्षों से इसका इंतजार कर रहे थे। अब वह समय आ गया है कि धर्म को प्रतिष्ठित किया जाए। अयोध्या आज पूरी दुनिया की चर्चा के केन्द्र में है। क्योंकि वहां भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण हो चुका है और आगामी 22 जनवरी का दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज होने वाला है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस दिन राम लला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में उपस्थित रहेंगे। राम भारतीय समाज के आदर्श पुरुष रहे हैं। एक राजा के तौर पर भी और एक परिवार के रूप में भी। अयोध्या का पुरातन वैभव लौट आया है। श्रीराम भारत के सांस्कृतिक पुरुष भी रहे हैं। सही अर्थों में राम राज की अवधारणा ऐसे समाज की कल्पना है जहां सत्ता किसी भी भेदभाव के बिना अपने नागरिकों के विकास में सहायक बने। प्रभु राम के बिना भारत और लोकतंत्र की कल्पना नहीं की जा सकती। राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम केवल हिन्दुओं का ही नहीं बल्कि राष्ट्र का उत्सव है। साथ ही देश के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक गौरव का दौर है।
राम राज्य के आदर्श राम राज्य की अवधारणा मूल्यों और सिद्धांतों के एक समूह पर आधारित है जो एक न्यायपूर्ण और समतामूलक समाज के लिए आवश्यक माने जाते हैं। इसमें शामिल है- न्याय और समानता: राम न्याय और निष्पक्षता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे। उन्होंने अपने सभी विषयों के साथ उनकी सामाजिक स्थिति या पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना सम्मान और करुणा के साथ व्यवहार किया। वह अपने लोगों की शिकायतों को सुनने और उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए कार्रवाई करने को तैयार थे। राम राज्य में कानून सभी पर समान रूप से लागू होता था और कानून से ऊपर कोई नहीं था। करुणा और सहानुभूति: राम न केवल एक न्यायप्रिय और निष्पक्ष शासक थे, बल्कि विनम्र और दयालु भी थे। वह जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते थे और दूसरों की पीड़ा के प्रति सहानुभूति दिखाते थे। उन्हें उत्पीड़ित और दलितों के चैंपियन के रूप में जाना जाता था और उनके शासन को सामाजिक सद्भाव और समावेशिता की भावना से चिह्नित किया गया था। सुशासन और प्रशासन: राम राज्य की विशेषता कुशल और प्रभावी शासन था। राम का शासन विकेंद्रीकरण, प्रतिनिधिमंडल और जवाबदेही सहित प्रशासन के ठोस सिद्धांतों पर आधारित था। वह अपने मंत्रियों और अधिकारियों को सशक्त बनाने और लोगों के सर्वोत्तम हित में निर्णय लेने की स्वतंत्रता देने में विश्वास करते थे। उन्होंने निर्णय लेने की प्रक्रिया में सार्वजनिक भागीदारी और परामर्श के महत्व को भी पहचाना। आध्यात्मिकता और नैतिकता: राम न केवल एक राजनीतिक नेता थे बल्कि आध्यात्मिक भी थे। उन्होंने ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और नैतिकता के गुणों को मूर्त रूप दिया जो समाज की भलाई के लिए आवश्यक थे। वह धर्म या धार्मिकता की शक्ति में विश्वास करते थे और अपने लोगों को सच्चाई और अच्छाई के मार्ग पर चलने की शिक्षा देते थे। उनके शासन को आध्यात्मिक जागृति और ज्ञान की भावना से चिह्नित किया गया था।
रामचरितमानस में एक आदर्श राज्य का दिग्दर्शन होता है। राम राज्य एक आदर्शवादी प्रजातंत्र आत्मक व्यवस्था है जिसमें किसी प्रकार का शोषण और अत्याचार नहीं है सभी लोग एक दूसरे से स्नेह रखते हैं। राम राज्य में कोई किसी का शत्रु नहीं है।
रामराज बैठे त्रैलोका। हरषित भये गए सब सोका।।
बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई।।
श्री रामचंद्र जी निष्काम और अनासक्त भाव से राज्य करते थे। उनमें कर्त्तव्य परायणता थी और वे मर्यादा के अनुरूप आचरण करते थे। जहां स्वयं रामचंद्र जी शासन करते थे उस नगर के वैभव का वर्णन नहीं किया जा सकता है।
रमानाथ जहँ राजा सो पुर बरनी की जाइ।
अनिमादिक सुख संपदा रहीं अवध सब छाइ।।
अयोध्या में सर्वत्र प्रसन्नता थी। वहां दुख और दरिद्रता का कोई नाम तक नहीं था। ना कोई अकाल मृत्यु को प्राप्त होता था और ना किसी को कोई पीड़ा होती थी। कारण कि सभी लोग अपने वर्ण और आश्रम के अनुरूप धर्म में तत्पर होकर वेद मार्ग पर चलते थे और आनंद प्राप्त करते थे। राम राज्य में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसी को नहीं सताते थे। राम के राज्य में राजनीति स्वार्थ से प्रेरित ना होकर प्रजा की भलाई के लिए थी। इसमें अधिनायकवाद की छाया मात्र भी नहीं थी। राम का राज्य मानव कल्याण के आदर्शों से युक्त एक ऐसा राज्य था जिसमें निस्वार्थ प्रजा की सेवा निष्पक्ष आदर्श न्याय व्यवस्था सुखी तथा समृद्ध सादी समाज व्यवस्था पाई जाती थी। स्वयं श्री रामचंद्र जी ने नगर वासियों की सभा में यह स्पष्ट घोषणा की: "भाइयों! यदि मैं कोई अनीश की बात कहूं तो तुम लोग निसंकोच मुझे रोक देना।" (क्रमशः)
आदित्य नारायण चोपड़ा
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