राम मंदिर : राष्ट्र का उत्सव-4

राम मंदिर : राष्ट्र का उत्सव-4
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श्रीराम नियति पुरुष के साथ-साथ इस राष्ट्र के नायक भी हैं। वे महानयक क्यों हैं उसके महत्वपूर्ण कारण भी हैं। राम के जैसा कोई दूसरा पुत्र नहीं है। राम के जैसा कोई दूसरा भाई नहीं है। राम के जैसा कोई दूसरा संपूर्ण आदर्श वाला पति, राजा, स्वामी कोई भी दूसरा राम जैसा नहीं है। राम को भले सनातन या किसी धर्म के लोग अपने साथ जोड़ें लेकिन राम किसी धर्म के हिस्से नहीं बल्कि मानवीय चरित्र के उदात्त नायक हैं। अगर गहराई से देखा जाए तो राम महान मार्क्सवादी, समाजवादी नायक भी नजर आते हैं। उन्होंने समाज के सबसे निचले तबके को बराबरी का दर्जा दिया जिसे कवियों, लेखकों ने कोल, भील, वानर आदि कहा। राम सत्य के मार्ग के अनुसरण करने वाले अपने विचार के इतने कट्टर अनुगामी हैं कि उससे एक कदम भी इधर से उधर विचलित नहीं होते। राम ने बाली को मारा और जब बाली ने उनसे तर्क किया कि सुग्रीव आपको क्यों प्यारा है? आपने मुझे क्यों मारा? क्या इसलिए कि वह आपकी सहायता करने जा रहा है? तो राम ने कहा-नहीं। तुम्हें इसलिए मारा क्योंकि
अनुज बधू भगिनी सुत नारी, रे सठ ये कन्या सम चारी।
इन्हहिं कुदृष्टि विलोकत जोई, ताहि बधे कछु पाप न होई।।
बाली समझ गया कि उसने जो कुछ पाप किए हैं यह उनका फल है और अंत में वह द्रवित होकर कहता है- प्रभु अजहुं मैं पातकी अंतकाल गति तोर।
राम महान वीर थे। उन्होंने महान विजय हासिल की लेकिन उनमें अद्भुत विनयशीलता थी। विजय हासिल करने के बाद भी कभी मोह नहीं पाला। उन्होंने बाली का वध करके पम्पापुर का राज्य सुग्रीव को दे दिया। एक बार भी उसकी तरफ नजर उठाकर नहीं देखा। बाली को मारने के बाद उन्होंने सुग्रीव को वर्षा ऋतु के कठिन समय में आराम से रहने के लिए पम्पापुर भेज दिया और स्वयं किष्किंधा पर्वत पर कुटिया बनाकर रहने लगे। क्या इतिहास के किसी दूसरे नायक में इतना बड़ा त्याग दिखता है? क्या इतिहास का कोई दूसरा नायक माया से इतना तटस्थ, इतना निस्पृह दिखता है? सिर्फ पम्पापुर के एक छोटे से राज को ही उन्होंने तुच्छ नहीं समझा बल्कि सोने की लंका को जीतने के बाद उस वैभवशाली नगरी में प्रवेश तक नहीं किया। राम की उदात्त वीरता और उनके अजस्र नायकत्व को देखिए कि दशानन के धरती पर गिर जाने के बाद वह अनुज लक्ष्मण से कहते हैं- जाओ, महाराज दशानन से राज विद्या सीखो। क्या ऐसा वीर कभी कोई और इतिहास में देखने को मिलता है जो अपने दुश्मन का इतना सम्मान करे? राम ने लंका को जीता, राम ने पम्पापुर जीता लेकिन उन्हें अयोध्या का विस्तार नहीं बनाया।
राम महज नायक नहीं थे वे आदर्श पुंज थे। राम ने गर्भवती पत्नी सीता को इसलिए वन में भेज दिया क्योंकि उनके राज्य का एक साधारण व्यक्ति उन पर यह कहकर सवाल उठा रहा था कि राम धर्म की मान्यताओं का पालन नहीं कर रहे। राम चाहते तो उस नाचीज़ व्यक्ति की अनसुनी कर देते। नक्कारखाने में उसकी तूती की भी आवाज नहीं थी लेकिन नहीं। राम उस समय के मौजूद संविधान की मर्यादा बनाये रखने के लिए, यह दिखाने के लिए कि राजा भी प्रजा के जैसे तय धर्म, संविधान को मानने वाला है। इसलिए अपनी पत्नी को वन भेज दिया।
राम एक आदर्श शिष्य हैं। जनकपुर के सीता स्वयंवर में वह बैठे हुए यह जानते हैं कि उनके लिए धनुष को उठाना बहुत मामूली बात है लेकिन वह तब तक धनुष की तरफ देखते तक नहीं जब तक कि गुरु विश्वामित्र उन्हें इसके लिए आदेश नहीं देते। राम एक आदर्श भाई हैं। वह भरत को अपने आप से ज्यादा प्यार करते हैं। भरत के जैसे दूसरे भाई की दुनिया में कल्पना नहीं करते। वह कभी अपने दिलोदिमाग में इस बात को लाना तक गवारा नहीं करते कि भरत किसी तरह का उनके साथ द्वेष रख सकते हैं। जब लक्ष्मण युद्धभूमि में मूर्छित हो जाते हैं तो वह किसी आम आदमी की तरह रोते-बिलखते हैं। बावजूद इसके कि राम चराचर ब्रह्मांड के स्वामी हैं लेकिन वह दुख के आदर्श को, पीड़ा के आदर्श को अपनी ताकत, अपनी क्षमता और शौर्य के अहंकार में नहीं दबाते। वे आम मनुष्यों की भांति विलाप करते हैं। राम एक पत्नीव्रत हैं। जबकि जिस युग में उनके होने की कल्पना की जाती है उस युग में किसी महान और ताकतवर व्यक्ति का मतलब ही होता था उसकी कई पत्नियां होना। खुद रावण की सैकड़ों रानियां थीं लेकिन राम ने एक नारीव्रत होने का आदर्श प्रस्तुत किया। राम हर कदम पर आदर्शों की प्रतिमूर्ति हैं।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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