अल्लामा इकबाल जैसे शायर ने श्रीराम के पावन व्यक्तित्व पर नाज करते हुए उन्हें इमाम-ए-हिन्द की संज्ञा दी थी और लिखा था कि ः
''हे राम के बजूद पे हिन्दोस्तां को नाज
एहले नजर समझते हैं उनको इमामे हिन्द।''
सचमुच आज हमें उनके आदर्शों की बड़ी जरूरत है। हमें श्रीराम के नाम की पावन शक्ति को पहचानना होगा। कहते हैं यदि राष्ट्र की धरती अथवा राज्य सत्ता छिन जाए तो शौर्य उसे वापिस ला सकता है, यदि धन नष्ट हो जाए तो परिश्रम से कमाया जा सकता है परन्तु यदि राष्ट्र अपनी पहचान ही खो दे तो कोई भी शौर्य या परिश्रम उसे वापस नहीं ला सकता। इसी कारण भारत के वीर सपूतों ने भीषण विषम परिस्थितियों में, लाखों अवरोधों के बाद भी राष्ट्र की पहचान को बनाए रखने के लिए बलिदान दिए। इसी राष्ट्रीय चेतना और पहचान को बचाए रखने का प्रतीक है श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण का संकल्प।
अयोध्या की गौरवगाथा अत्यंत प्राचीन है। अयोध्या का इतिहास भारत की संस्कृति का इतिहास है। अयोध्या सूर्यवंशी प्रतापी राजाओं की राजधानी रही, इसी वंश में महाराजा सगर, भगीरथ तथा सत्यवादी हरिशचन्द्र जैसे महापुरुष उत्पन्न हुए, इसी महान परम्परा में प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ। पांच जैन तीर्थंकरों की जन्मभूमि अयोध्या है। गौतम बुद्ध की तपस्थली दंत धावन कुंड भी अयोध्या की धरोहर है। गुरुनाक देव जी महाराज ने भी अयोध्या आकर भगवान श्रीराम का पुण्य स्मरण किया था, दर्शन किए थे। अयोध्या में ब्रह्मकुंड गुरुद्वारा है। मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम का जन्म स्थान होने के कारण पावन सप्तपुरियों में एक पुरी के रूप में अयोध्या विख्यात है। विश्व प्रसिद्ध स्विटस्बर्ग एटलस में वैदिक कालीन, पुराण व महाभारत कालीन तथा 8वीं से 12वीं, 16वीं, 17वीं शताब्दी के भारत के सांस्कृति मानचित्र मौजूद हैं। इन मानचित्रों में अयोध्या को धार्मिक नगरी के रूप में दर्शाया गया है। ये मानचित्र अयोध्या की प्राचीनता और ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं।
सरयू तट पर बने प्राचीन पक्के घाट शताब्दियों से भगवान श्रीराम का स्मरण कराते आ रहे हैं। श्रीराम जन्मभूमि हिन्दुआें की आस्था का प्रतीक है। अयाेध्या मंदिरों की ही नगरी है। हजारों मंदिर हैं, सभी राम के हैं। सभी सम्प्रदायों ने भी ये माना है कि वाल्मीकि रामायण में वर्णत अयोध्या यही है। श्रीराम जन्मभूमि पर बने मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाने का वर्णन अन्य विदेशी लेखकों और भ्रमणकारी यात्रियों ने किया है। फादर टाइफैन्थेलर की यात्रा वृत्तान्त इसका जीता-जागता उदाहरण है। आस्ट्रिया के इस पादरी ने 45 वर्षों तक (1740 से 1785) भारतवर्ष में भ्रमण किया, अपनी डायरी लिखी। लगभग पचास पृष्ठों में उन्होंने अवध का वर्णन किया। उनकी डायरियों का फ्रैंच भाषा में अनुवाद 1786 ईस्वी में बर्लिन से प्रकाशित हुआ है। उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि अयोध्या के रामकोट मोहल्ले में तीन गुम्बदों वाला ढांचा है। उसमें 14 काले कसौटी पत्थर के खम्भे लगे हैं, इसी स्थान पर भगवान श्रीराम ने अपने तीन भाइयों के साथ जन्म लिया। जन्मभूमि पर बने मंदिर को बाबर ने तुड़वाया। आज भी हिन्दू इस स्थान की परिक्रमा करते हैं, यहां साष्टांग दंडवत् करते हैं।
अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि को लेकर बहुत ज्यादा सियासत हुई। भारत का सच यह है कि अवध नरेश दशरथ पुत्र भगवान श्रीराम की क्रीड़ास्थली से लेकर कर्मभूमि है। बहुत से सियासतदानों ने इतिहास के उन निशानों के सहारे राजनीति करने की कोशिश की जो भारत की संस्कृति और इसकी अस्मिता को पांव तले रौंद कर इस देश का मालिक बनने का ऐलान करने वाले लोगों ने छोड़े थे। क्या इंडिया गेट पर लगी हुई जार्ज पंचम की प्रतिमा को हमने अंग्रेजों की दास्तां की निशानी समझ कर नहीं उखाड़ फैंका। हमने 1947 के बाद गुलामी के कई कलंक उखाड़ फैंके हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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