मैं कल इस बात की चर्चा कर रहा था कि इतिहास में कई प्रसंग ऐसे आते हैं जो कालजयी होते हैं। वह किन्हीं जाति, वर्ग और धर्म विशेष के लिए नहीं वह सारी मानवता के िलए उपदेश होते हैं। हमारा सनातन वांग्डमय अद्भुत है। भव्य राम मंदिर निर्माण तक जो भी कुछ हुआ वो इतिहास के कलंकित पन्ने समझकर भुला दिए जाने चाहिए। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद केन्द्र में रही सरकारों ने गुलामी के कलंक मिटाने के लिए अनेक कार्य किए हैं।
-सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार, सरदार वल्लभ भाई पटेल (प्रथम गृहमंत्री-भारत सरकार), डा. के.एम. मुंशी, श्री काकासाहेब गाडगिल के प्रयत्नों से तथा महात्मा गांधी जी की सहमति व केन्द्रीय मंत्रिमंडल की स्वीकृति से 1950 में हुआ।
-दिल्ली में इंडिया गेट के अन्दर ब्रििटश राज्य सत्ता के प्रतिनिधि किन्हीं जार्ज की खड़ी मूर्ति हटाई गई। सुना जाता है कि किसी आजादी के दीवाने ने इस मूर्ति की नाक तोड़ दी थी। भारत सरकार ने उसे हटवा दिया।
-दिल्ली का चांदनी चौक, अयोध्या का तुलसी उद्यान व देश में जहां कहीं विक्टोरिया की मूर्तियां थीं वे सब हटाईं।
-भारत में जहां-जहां पार्कों के नाम कम्पनी गार्डन थे वे सब बदल दिए गए और कहीं-कहीं उनका नाम गांधी पार्क हो गया।
-अमृतसर से कोलकाता तक की सड़क जी.टी. रोड कहलाती थी, उसका नाम बदला गया। बड़े-बड़े शहरों के माल रोड जहां केवल अंग्रेज ही घूमते थे उन सड़कों का नाम एम.जी. रोड कर दिया गया।
-दिल्ली में मिन्टो ब्रिज आज शिवाजी पुल के रूप में पहचाना जाता है।
-दिल्ली में स्थित इरविन हॉस्पिटल तथा बिल्गिंटन हॉस्पिटल क्रमशः जयप्रकाश नारायण अस्पताल व डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल कहलाए जाते हैं।
-कलकत्ता, बाम्बे, मद्रास के नाम बदलकर कोलकाता, मुम्बई व चेन्नई कर दिए गए। श्रीराम जन्मभूमि को प्राप्त करके उस पर खड़े कलंक के प्रतीक मस्जिद जैसे दिखने वाले ढांचे को हटाकर भारत के लिए महापुरुष, मर्यादा पुरुषोत्तम, रामराज्य के संस्थापक, भगवान विष्णु के अवतार, सूर्यवंशी प्रभु श्रीराम का मंदिर पुनर्निर्माण का यह जनांदोलन उपर्युक्त शृंखला का ही एक भाग है।
हम विचारें यदि अंग्रेजों के प्रतीक हटाए जा सकते हैं, क्योंकि उन्होंने इस देश को गुलाम बनाए रखा और उस गुुलामी से मुक्त होने के लिए 1947 की पीढ़ी ने संघर्ष किया तो अंग्रेजों के पूर्व भारत पर आक्रमण करने वाले विदेशियों के चिन्हों को क्यों नहीं हटाया जा सकता? क्या केवल इसलिए कि अंग्रेजों से संघर्ष करने वाली पीढ़ी ने मुस्लिम आक्रमणकारियों से संघर्ष नहीं किया था।
अब जबकि अयोध्या में श्रीराम मंदिर बनकर तैयार हो चुका है। अब समय आ गया है िक श्रीराम के चरित्र की सुगंध को विश्व के हर हिस्से तक पहुंचाया जाए। श्रीराम चरितमानस ही क्यों, अनेकानेक ग्रंथ ऐसे हैं जो श्रीराम के पावन चरित्र को समर्पित हैं। वाल्मीकि रामायण से लेकर गोविन्द रामायण तक महर्षि वाल्मीकि से लेकर गुरु गोविन्द सिंह जी तक राम कथा को अपनाकर कौन ऐसा है जो धन्य नहीं हुआ। श्रीराम सिर्फ भारत ही नहीं अपितु दुनिया के अनेक देशों में अनुकरणीय बने हुए हैं। रामलीलाएं आम जनमानस के लिए प्रेरणा का महान स्रोत बनी हुई हैं। सांस्कृतिक विषयों के विद्वान अनेक शोधों के बाद भी यह निष्कर्ष नहीं निकाल सके हैं कि रामलीला में भला ऐसा क्या है जिसे सैकड़ों वर्षों से देखते रहने के बाद भी लोगों का मन नहीं भरता। आज रामायण की आध्यात्मिक अमृतधारा समूचे विश्व में विस्तारित है। राम चरित मानस हो या वाल्मीकि रामायण या फिर कम्बन रामायण इनकी गूंज दुनिया में कई जगह सुनाई देती है। मॉरिशस, कम्बोडिया, फिजी, त्रिनीदाद, गोआना, सूूरीनाम, नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड आदि में रामायण ही शक्ति स्रोत बनकर उदित हुई है। इंडोनेशिया में हिन्दुओं के अलावा मुस्लिम समुदाय के लोग भी श्रीराम को अपना राष्ट्रीय महापुरुष मानते हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com