अयोध्या में श्री राम मन्दिर निर्माण के लिए भूमि पूजन आज स्वयं देश के प्रधानमन्त्री के हाथों सम्पन्न होने के बाद सत्ताधारी भाजपा का स्वतंत्र भारत का सर्वाधिक विवादास्पद चुनावी मुद्दा समाप्त हुआ। अतः अब राम के उस विराट स्वरूप पर मंथन किया जाना चाहिए जो भारत के कण-कण में रमा हुआ माना जाता है राम की शक्ति का अभिप्राय केवल साकार उपासना से कभी नहीं रहा जिसे सन्त कबीर और भक्त रैदास जैसे मनीषियों ने सिद्ध किया और निराकार ब्रह्म के रूप में राम को सम्पूर्ण जगत का स्वामी निरूपित किया। इन दोनों महान सन्तों में सबसे बड़ी समानता यह थी कि उनके गुरु कांशी के स्वामी रामानन्द ही थे। सिखों के पवित्र ग्रन्थ श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में इन दो सन्तों की वाणी का वृहद रूप में समागम किया गया है। इनके साथ ही महाराष्ट्र के भक्त नामदेव की वाणी भी प्रचुरता के साथ इसमें समाहित है। ये तीनों ही भक्त निराकार राम के उपासक थे। कबीर ने डंके की चोट पर कहा-
ज्यों तिलन में तेल है, ज्यों चकमक में आग
तेरा सांई तुझमें बसै, जाग सके तो जाग
वहीं सन्त नाम देव को जब मन्दिर के पुजारियों ने उनकी शूद्र जाति की वजह से मन्दिर में उनकी भक्ति करने पर एतराज किया और उनके साथ मारपीट तक की तो वह मन्दिर के पिछवाड़े जाकर बैठ कर भक्ति करने लगे तो मन्दिर की मूर्तियों का मुंह उनकी तरफ होकर मुख्य द्वार बदल गया और पंडितों की तरफ भगवान की मूर्ति की पीठ हो गई, तब स्वयं नामदेव जी ने यह रचना की-
ज्यों-ज्यों नामा हरिगुन उचरै, भक्त जना को देहुरा फिरै
लै कमली चलियों पलटाय, देहुरे पाछे बैठो जाय
ज्यों गुरुदेव का कन्द नहीं हिरे, ज्यों गुरुदेव का देहुरा फिरै
सन्त रैदास ने भक्ति मार्ग के माध्यम से सामाजिक गैर बराबरी दूर करने की क्रान्ति का शंख बजाया और राम के नाम की महिमा को तब प्रकट किया जब शास्त्रार्थ में उन्होंने कर्मकांडी ब्राह्मणों को परास्त किया और शूद्र होने के बावजूद राजाज्ञा से उन्हें पालकी में बैठा कर गन्तव्य तक पहुंचाया गया। रैदास ने लिखा,
एसी लाड तुझ बिन कौन करे
गरीब नवाज गुसैंया मेरा माथे छतर धरै
मुख्य तथ्य यह है कि ये तीनों सन्त ही शूद्र या पिछड़ी जाति के थे जिन्होंने राम के निराकार स्वरूप की वन्दना की व गुणगान किया और इन तीनों की वाणी को श्री गुरु ग्रंथ साहिब में समाहित किया गया। इसका अर्थ यही निकलता है कि केवल राम के साकार स्वरूप की कल्पना ही ‘राम राज्य’की अभिव्यक्ति का प्रतीक नहीं है, बल्कि आर्थिक गैरबराबरी को नष्ट करते हुए जाति समता स्थापित करने वाले समाज के निर्माण की परिकल्पना है जिसका घोषित आख्याता गुरू ग्रन्थ साहिब है क्योंकि इसमें भी रामराज्य का वर्णन कई बार किया गया है। आधुनिक भारत में क्रान्तिकारी कवि महाप्राण निराला ने भगवान राम की वन्दना में साकार स्वरूप को केन्द्र में रख कर अपनी प्रख्यात कविता ‘राम की शक्ति पूजा’ लिखी इसमें राम-रावण युद्ध का उन्होंने अद्भुत सजीव वर्णन शब्दों के माध्यम से किया और कहा-
ज्योति के पत्र पर लिखा अमर
रह गया राम-रावण का अपराजेय समर
निराला ने हालांकि रावण अन्त दिखाया परन्तु बुराई और अच्छाई के बीच चलते युद्ध को शाश्वत स्वरूप में भी व्यक्त किया। उन्होंने साकार राम की कल्पना पर ही समूची कविता रची मगर उसका मूल भाव राम का कण-कण व्यापी विराट स्वरूप रहा। राम के पौराणिक स्वरूप की यह आधुनिक दृष्टि मानी गई। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के राम भी इसी दृष्टि के परिचायक हैं क्योंकि बापू जीवित रहते कभी किसी मन्दिर में पूजा-अर्चना करने नहीं गये फिर भी उन्होंने कहा-
रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीताराम
इस सह्स्त्राब्दि के सबसे बड़े जनकवि गोस्वामी तुलसी दास ने भगवान राम के चरित्र को ही अपनी रचना के लिए चुना जो कालजयी बन गई। श्री राम चरितमानस ऐसा महान ग्रन्थ है जिसमें ‘जनशक्ति’ का वैभव गान है। महाज्ञानी, महापराक्रमी सप्तद्वीप पति लंकाधिपति रावण की अजेय सैनिक शक्ति को राम के नेतृत्व में आदिवासियों की सेना (बानर व भालू प्रतीक रूप में) ने परास्त कर डाला भारत के पौराणिक इतिहास का इसे प्रथम जन युद्ध कहा जा सकता है क्योंकि जंगलों में भटकते वनवास भोगते राम की सहायता के लिए केवल आदिवासी समुदाय के लोग ही थे। उन्हें ही लेकर उन्होंने अपनी सेना का निर्माण किया था। मगर इस जनशक्ति ने राजशक्ति का विध्वंस कर डाला राम की असली शक्ति यही थी और इसी वजह से उनकी पूजा होती है क्योंकि उन्होंने जनशक्ति को सत्ता पर बैठाया था जन-जन के प्रिय राम का ‘रामराज’ इसी ‘जनसत्ता’ का प्रतीक माना जायेगा। हालांकि गोस्वामी तुलसीदास ने राम जन्म का उद्देश्य अपने प्रकार से इस तरह व्याख्यायित किया।
विप्र, धेनु, सुर, सन्त हित लीन्ह मनुज अवतार
निज इच्छा निज तनु धरि माया गुन गोपाल
भारत के लोंगों को राम की शक्ति पूजा हेतु अयोध्या में मन्दिर के दर्शन करने हेतु जाकर स्वयं में राम गुण विकसित करने के प्रयत्न करने चाहिएं जिससे भारत में ‘राम राज’ स्थापित हो सके। प्रधानमन्त्री मोदी को इसका श्रेय इसलिए दिया जा सकता है क्योंकि मस्जिद विवाद होने के बावजूद राम मन्दिर निर्माण न्यायालय के आदेश पर ही किया जा रहा है।