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दिल्ली के चुनावों में राम मंदिर

श्रीराम मन्दिर निर्माण के लिए स्वायत्तशासी न्यास के गठन की घोषणा करके आज संसद में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने साफ कर दिया है कि पिछले कई वर्षों से चले आ रहे इस धार्मिक विवाद की इतिश्री हो चुकी है।

श्रीराम मन्दिर  निर्माण के लिए स्वायत्तशासी न्यास के गठन की घोषणा  करके आज संसद में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने साफ कर दिया है कि पिछले कई वर्षों से चले आ रहे इस धार्मिक विवाद की इतिश्री हो चुकी है। जाहिर है कि धर्मनिरपेक्ष भारत में सरकारों का काम मन्दिर या मस्जिद निर्माण का नहीं होता है। इसी नजरिये से सर्वोच्च न्यायालय ने विगत वर्ष 9 नवम्बर को जो फैसला दिया था उसमें आदेश दिया था कि अयोध्या की विवादित भूमि मन्दिर निर्माण के लिए दी जाये और इसके भवन को बनाने का काम एक न्यास या ट्रस्ट के सुपुर्द किया जाये जिसका गठन केन्द्र सरकार करेगी।  अतः प्रधानमन्त्री ने अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वाह करते हुए श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास की घोषणा की, जो पूरी तरह गैर सरकारी होगा।  
भारत के प्रथम गृहमन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने जब स्वतन्त्रता के बाद गुजरात के सोमनाथ मन्दिर का जीर्णोद्धार किया था तो तब भी एक गैर सरकारी ट्रस्ट ही बना कर यह कार्य किया गया था। मगर संयोग से यह घोषणा दिल्ली विधानसभा चुनावों के चलते हुई है जिस पर किसी भी राजनीतिक दल या सामाजिक- धार्मिक संगठन को किसी प्रकार की आपत्ति नहीं होनी चाहिए क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रस्ट गठित करने के लिए तीन महीने अर्थात 9 फरवरी तक का ही समय दिया था। अतः दिल्ली के चुनावों में इस अर्ध राज्य के मूल मुद्दों की तरफ ही मतदाताओं का ध्यान रहेगा। इस सन्दर्भ में इस महानगर के तीनों प्रमुख दल आम आदमी पार्टी, भाजपा व कांग्रेस ने जो घोषणापत्र जारी किये हैं उनमें मुफ्त सौगातों की बहार आयी हुई है।
चुनाव से पहले यह आरोप आम आदमी पार्टी पर लगाया जाता था कि वह मुफ्त बिजली, पानी परिवहन यहां तक कि बुजुर्गों के लिए मुफ्त धार्मिक पर्यटन की सुविधा देकर दिल्ली वालों को भरमाना चाहती है परन्तु चुनावों के चलते भाजपा, कांग्रेस और अन्य दलों ने भी इसी रास्ते को अपना कर इस क्षेत्र में भी प्रतियोगिता का माहौल बना दिया है, परन्तु भारतीय जनता पार्टी ने अपनी संगठन शक्ति के बूते पर राज्य की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी को जिस तरह चारों तरफ से घेरा है उससे उसके मनोबल का अन्दाजा लगाया जा सकता है। पार्टी ने अपनी पूरी ताकत इस अर्ध राज्य में अपनी सरकार गठित करने के लिए लगा दी है। हालांकि पिछले चुनावों में उसे 70 में से मात्र तीन सीटें ही मिली थीं। 
प्रधानमन्त्री, गृहमन्त्री समेत भाजपा ने अपने 11 राज्यों के मुख्यमन्त्रियों को चुनावी प्रचार में लगा रखा है और बीसियों केन्द्रीय मन्त्री तक नुक्कड़ सभाएं सम्बोधित कर रहे हैं। इसके अलावा सांसदों की संख्या भी जम कर है. यह भाजपा की कमजोरी नहीं बल्कि इसकी प्रबल इच्छा शक्ति को दर्शाता है कि वह छोटी सी छोटी सी प्रजातान्त्रिक लड़ाई को भी कम करके नहीं आंकती। मगर इसका दूसरा मतलब यह भी निकलता है कि राजनीतिक दलों को दिल्ली के मतदाताओं की सियासी सजगता और बुद्धि चातुर्य का पूरा अनुमान है दिल्ली जिसे मिनी भारत भी कहा जाता है। 
राष्ट्रीय गतिविधियों का केन्द्र भी है।  इतना ही नहीं भारत की अन्तर्राष्ट्रीय गतिविधियां भी यहीं से संचालित होती हैं। अतः दिल्ली के मुद्दों के साथ ही राष्ट्रीय मुद्दों से भी राजधानी के मतदाता प्रभावित रहते हैं। इसे देखते हुए ही भाजपा ने अपनी चुनावी रणनीति तैयार की है। उसकी विरोधी पार्टियां इसे मूल मुद्दों से ध्यान हटाने का बहाना बना सकती हैं मगर ऐसा कहते हुए वे भली-भांति समझती हैं कि गड्ढा कहां है जहां पानी भर सकता है। चुनावी लड़ाई में सारे दांव-पेंच इस्तेमाल किये जाते हैं और अपने विपक्षी को रक्षात्मक मुद्रा में लाने के लिए भारी शोर-शराबा भी मचाया जाता है। 
 भारत की इस हकीकत को स्व. अरुण जेतली ने बखूबी पहचाना था और उन्होंने इसे ‘शोर-शराबे का लोकतन्त्र’ की संज्ञा दी थी। यही वजह है कि शाहीन बाग में नागरिकता कानून की मुखालफत करने वाले आन्दोलन को चुनावी मुद्दा बनाया जा रहा है। अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण की पूरी योजना भी आज संसद में घोषित कर दी गई है मगर वास्तविकता यह भी है यहां बाबरी मस्जिद को ढहाने के जुर्म में भाजपा के नेता श्री लालकृष्ण अडवानी पर अभी भी मुकदमा चल रहा है। संविधान के सामने राजनीतिक हैसियत के कोई मायने नहीं होते। 
अतः यह स्पष्ट होना चाहिए कि चुनावों का अन्तिम फैसला अन्ततः मतदाताओं के विवेक पर ही निर्भर करता है। मगर दिल्ली के चुनाव की मायनों में आम आदमी के दिमाग से वे भ्रम भी साफ कर रहे हैं जो राजनीतिक दल एक-दूसरे को पटकी देने के चक्कर में फैलाते रहते हैं। मसलन आयुष्मान भारत स्कीम मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली में इसलिए शुरू नहीं की क्योंकि इसकी जद में मुश्किल से दिल्ली के एक लाख लोग ही आते। जिन लोगों के पास स्कूटर, मोबाइल फोन या मासिक आय दस हजार रुपए तक की है वे इस योजना से बाहर रहते जिसकी वजह से उनकी सरकार ने दिल्ली में मुफ्त मोहल्ला क्लीनिक योजना चलाई। 
जबकि दोनों स्कीमों को चालू रखने की अनुमति केन्द्र सरकार की तरफ से नहीं दी गई। भारत में कल्याणकारी राज्य की स्थापना का वचन संविधान में निहित है और इसकी जिम्मेदारी सरकारों को अपने कन्धों पर इस तरह लेनी पड़ती है कि प्रत्येक सुयोग्य पात्र को बिना किसी हील-हुज्जत के जीवन की आवश्यक सहूलियात मुहैया कराई जायें। परन्तु राज्यसभा में मंगलवार को ही यह सवाल कांग्रेस के सांसद श्री पी.एल. पूनिया ने उठाया कि आयुष्मान भारत योजना में किस प्रकार आरोग्य मित्र बनाये गये लोग भारी भ्रष्टाचार कर रहे हैं और एक ही परिवार के सौ- सौ से भी ज्यादा सदस्यों का गोल्ड बनवा कर चयनित अस्पतालों की मार्फत सरकारी योजना को पलीता लगा रहे हैं। 
केजरीवाल सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहीम चला कर ही दिल्ली में स्थापित हुई थी इस मोर्चे पर उनकी विरोधी पार्टियां कांग्रेस व भाजपा जुबान खोलने में शरमा रही हैं, परन्तु भाजपा ने पर्यावरण व परिवहन के मुद्दे पर केजरीवाल को घेरने में कसर नहीं छोड़ी है और इसका उत्तर उन्हें देना ही होगा। जहां तक दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था का सवाल है तो पूरे भारत के विभिन्न राज्यों के लिए दिल्ली एक माडल बनकर उबरा है कि किस तरह सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली को खर्चीली और संभ्रांत लोगों का विशेषाधिकार माने जाने वाली निजी शिक्षा प्रणाली को पीछे धकेला जा सकता है। अतः राम के नाम पर दिल्ली में शोर मचना लाजिमी है।  इसमें कोई बुराई भी नहीं है। आखिरकार भारत के लोगों की ही तो इच्छा थी कि अयोध्या में राम मन्दिर बने।  
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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