दो दिन पहले ही बुराई पर अच्छाई की और झूठ पर सच की जीत हुई है। दशहरा संपन्न हो चुका है। रावण का वध हो चुका है, तो ऐसे में हम यही कहेंगे कि इन सबके पीछे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ही रहे हैं, तो फिर उनकी जन्मस्थली अयोध्या में मंदिर निर्माण को लेकर दिक्कतें आखिरकार क्यों आती रहीं? यह सही है कि अयोध्या में श्रीराम के मंदिर के साक्ष्य उस वक्त सामने आए जब बाबरी मस्जिद गिरा दी गई लेकिन डेढ़ दशक होने जा रहा है तो अब देशवासी इंतजार कर रहे हैं कि श्रीराम का मंदिर कब बनेगा? इस कड़ी में आरएसएस प्रमुख श्री मोहन भागवत जी ने जो कुछ कहा उस पर सरकार की सहमति होनी चाहिए। जिस तरह से भागवत जी ने मंदिर निर्माण को लेकर कानून लाए जाने की जरूरत पर बल देकर सरकार को खुद पहल करने की बात कही है, वह वजनदार है। उनकी बात का महत्व इसलिए ज्यादा है कि अब मंदिर बनाने का माहौल बन रहा है।
मामला सुप्रीम कोर्ट में है लेकिन यह भी तो सच है कि कोर्ट-कचहरी में केसों के चलते कई-कई पक्षकार बन जाते हैं। श्रीराम इस ब्रह्मांड के चप्पे-चप्पे पर हैं तो इसमें कोई संदेह तो है ही नहीं लेकिन कहीं न कहीं मुस्लिम पक्ष पंगेबाजी करते रहे हैं। यद्यपि देश में अपने-अपने धर्म को लेकर विरोधी विचारधारा वाले लोग भी मंदिर निर्माण के पक्ष में हैं, तो फिर हम समझते हैं कि श्री भागवत के विजयदशमी के मौके पर दिए गए इस वक्तव्य का न सिर्फ सम्मान किया जाना चाहिए, बल्कि उसे राष्ट्रीय स्तर पर सरकार की ओर से मंजूर भी किया जाना चाहिए। हमारा मानना है कि जब मंदिर निर्माण को लेकर सरकार कानून लाने की पहल करेगी तो उसे दिक्कत नहीं आनी चाहिए क्योंकि उसके पास प्रचंड बहुमत है। मंदिर निर्माण को लेकर तो कोई भी विपक्षी पार्टी इसका विरोध नहीं कर पाएगी। कांग्रेस, सपा, बसपा या कम्युनिस्ट जो कि मुस्लिम वोटों को अपने पक्ष में करने के लिए बहुत कुछ करते रहे हैं, हिन्दुओं के मामले में अगर राम मंदिर को लेकर कुछ बोलेंगे तो सचमुच वो आग से खेलेंगे। भागवत जी ने बड़ी बेबाकी से कहा कि कुछ कट्टरपंथी ताकतें साम्प्रदायिकता की बातें कहकर मंदिर निर्माण में विलंब करती रही हैं। ऐसा कहकर उन्होंने विरोध करने वाले लोगों को चेतावनी देने की कोशिश की है। नागपुर का संदेश अपने आप में स्पष्ट है कि आज श्रीराम मंदिर अगर संभव हो रहा है तो इसके लिए सरकार की ओर से पहल होनी ही चाहिए। इतने प्रचंड बहुमत के बावजूद राम मंदिर नहीं बना तो कब बनेगा, यह सवाल सोशल मीडिया पर खूब उभर रहा है। हमारा मानना है कि राम मंदिर भाजपा का अगर राजनीतिक स्तर पर एक एजेंडा रहा भी है तो इसमें आरएसएस की भूमिका रही है।
आरएसएस ने ही विश्व हिन्दू परिषद के साथ मिलकर समय-समय पर इसे एक मुद्दा बनाकर सीधे तौर पर भाजपा की मदद ही की थी। ऐसे में अगर आप इस मुद्दे को नजरंदाज करेंगे तो मुश्किलों के बादल घिरने लगेंगे। आने वाले दिनों में सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई शुरू होने जा रही है। कहा जा रहा है कि इस मामले में कानून लाए जाने की कोशिशें शुरू हो जानी चाहिएं। ऐसा करने से आगे चलकर रास्ते सहज हो जाते हैं। आखिरकार इतने बड़े राष्ट्रीय मुद्दे पर रास्ता तो सरकारें ही तय करती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अभी भी राजनीतिक पंगेबाजी तो होगी। हो सकता है कि कल जब मंदिर निर्माण को लेकर कानूनी प्रक्रिया शुरू होगी तो इसका विरोध करने वाले मामला सुप्रीम कोर्ट तक दोबारा ले जा सकते हैं लेकिन आज की तारीख में कानून की पहल होनी चाहिए, भागवत जी की इसी बात को लेकर पूरे देश में सहमति बन रही है। हम यह भी मानते हैं कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट जो फैसला देगी वह राष्ट्रीय स्वीकृति को ध्यान में रखकर ही दिया जाएगा लेकिन भावनात्मक सम्मान भी होना चाहिए। स्पष्ट है कि राम मंदिर मुद्दे को लेकर जिस तरह से श्री श्री रविशंकर ने अपने आप ही वार्ताकार बनकर मुस्लिम संगठनों से मिलना-जुलना शुरू कर दिया और कुछ मुस्लिम संगठन प्रतिक्रिया भी देने लगे, तो इसके परिणाम अच्छे नहीं निकले थे।
रविशंकर की मध्यस्थता से मंदिर निर्माण की दिशा में माहौल अच्छा नहीं बन सका। ऐसे में जब मामला सुप्रीम कोर्ट में हो और तब श्री भागवत जी जैसी हस्ती श्रीराम मंदिर को लेकर नागपुर से कानून लाए जाने की बात कहती है तो इसके अर्थ बहुत गहरे हैं, लेकिन इस बात की गारंटी है कि यह सब देश के हित में है। अभी भी विश्व हिन्दू परिषद अगर मंदिर निर्माण को लेकर धर्म संसद बनाने जा रही है तो परिषद के लोग देश के महान चिंतक और भारत माता के सपूत भागवत जी से चर्चा अवश्य करते रहते हैं। साधु-संतों पर आधारित धर्म संसद मंदिर निर्माण की पहल पर पहले ही मोहर लगा चुकी है, लेकिन जिस तरह से समय निकलता जा रहा है इसीलिए सोशल साइट्स पर कहा जा रहा है कि चुनावों के वक्त यह मामला गर्मा दिया जाता है। भाजपा का अपना एजेंडा स्पष्ट होना चाहिए तभी विपक्ष शांत हो सकेगा। अब जो भी वजह मंदिर निर्माण में देरी की रही है आज की तारीख में अगर सकारात्मक रूप से मंदिर की बात की जा रही है तो आगे बढ़ने की पहल सरकार को ही करनी है। धर्म के मामले में सबरीमाला में महिलाओं की एंट्री को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद अडं़गा चल रहा है। हमें इसे भी नहीं भूलना चाहिए और मंदिर निर्माण को लेकर अब सरकार को भागवत जी की बात मानकर बहुत जल्द रास्ता बनाते हुए कानूनी प्रक्रियाएं पूरी कर देनी चाहिएं जिसका देशवासियों को इंतजार है।