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राम मंदिर : मोदी का मास्टर प्लान

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खलील जिब्रान ने एक बड़ी प्यारी सी कथा लिखी है- ‘‘एक बार शाम के समय एक दरिया के किनारे अच्छाई की देवी शिला पर अकेली बैठी हुई थी। थोड़ी देर बाद बुराई की देवी भी वहां आकर बैठ गई। कुछ देर तक तो शांति रही, फिर अच्छाई की देवी ने उसे कहा- बहन तुम मेरे साथ क्यों? तुम तो जानती हो कि अच्छाई के साथ बुराई नहीं रह सकती। बुराई की देवी व्यथित हो गई और बोली- हम दोनों जुड़वां बहनें हैं, मैं जब पीठ कर लेती हूं, लोग तुम्हारा अनुभव करते हैं और तू जब पीठ कर लेती है तो लोग मुझे देखते हैं। हम दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।’’ तब से यह कहावत अस्तित्व में आई-
‘‘लोग शायद ही कभी समझ पाते ​हों कि
कई बार अशुभता में भी शुभता छिपी होती है।’’
इतिहास में भी प्रसंग आते हैं, जो कालजयी हैं, वे किन्हीं जाति, वर्ग और धर्म के लिए नहीं हैं, वे सारी मानवता को दिए गए उपदेश हैं, उनका विस्तार दिल से दिल तक है। हमारा सनातन वांग्मय अद्भुत है। श्रीराम के चरित्र की सुगन्ध ने विश्व के हर हिस्से को प्रभावित किया है। साकेत नामक काव्य में मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है-
‘‘राम तुम्हारा चरित्र ही काव्य है,
कोई कवि हो जाए, सहज संभाव्य है।’’
श्रीरामचरित मानस ही क्यों, अनेक ग्रंथ ऐसे हैं जो श्रीराम के पावन चरित्र को समर्पित हैं। महर्षि वाल्मीकि रामायण से लेकर गोबिन्द रामायण तक रामकथा को लेकर कई ग्रंथ रचे गए। भारत के करोड़ों लोग इनका अध्ययन कर धन्य हुए हैं। प्रातः स्मरणीय मर्यादा पुरुषोत्तम राम की स्मृति में उनके जन्म स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण होना ही चाहिए। श्रीराम देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं की आस्था हैं। यदि किसी राष्ट्र की धरती और राजसत्ता छिन जाए तो शौर्य उसे वापस ला सकता है। यदि धन नष्ट हो जाए तो परिश्रम से कमाया जा सकता है परन्तु यदि राष्ट्र अपनी पहचान ही खो दे तो कोई शौर्य या परिश्रम उसे वापस नहीं ला सकता। इसी कारण भारत के वीर सपूतों ने विषम परिस्थितियों में लाखों अवरोधों के बाद भी राष्ट्र की पहचान को बनाए रखने के लिए बलिदान दिए। इसी राष्ट्रीय चेतना और पहचान को बचाए रखने का प्रतीक है श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का संकल्प। भारतीय जनता पार्टी श्रीराम मंदिर निर्माण का वादा कर सत्ता तक पहुंची है। संत और जनमानस काफी अधीर हैं। भारत की न्यायपालिका के समक्ष श्रीराम मंदिर जैसा मामला कोई ऐसा दुरूह मामला नहीं है कि इसका समाधान न निकल सके। इसे अब और टाला जाना उचित नहीं है।

धर्मगुरुओं ने बहुत प्रयास कर लिए, बुद्धिजीवियों ने बहुत भाषण दे दिए, टीवी चैनलों पर बहुत बहस हो चुकी है, उन्मादियों ने काफी जहर घोला है। इन सब परिस्थितियों के बीच भारतीय जनता पार्टी पर भी मंदिर निर्माण के लिए काफी दबाव बढ़ चुका है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्पष्ट रूप से सरकार को कह रहा था कि राम मंदिर निर्माण के लिए सोमनाथ मंदिर की तर्ज पर अध्यादेश लाया जाए। यद्यपि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अध्यादेश के सवाल पर कहा था कि सरकार न्यायिक प्रक्रिया पूरा होने का इंतजार करेगी। सरकार संवैधानिक मर्यादाओं से बंधी होती है। सरकार की कोशिश यह होती है कि कोई भी कदम उठाते समय संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन न हो ताकि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसकी छवि पर आंच न आए।

मोदी सरकार को मंदिर निर्माण के लिए नई राह तलाशनी थी, अंततः उसने इसकी राह तलाश ही ली। उसने अयोध्या की गैर-विवादित भूमि को मांगने की सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगा दी है। अयोध्या विवाद पर सुनवाई में लगातार हो रही देरी से भी सरकार और करोड़ों हिन्दुओं के सब्र का बांध टूटता जा रहा था। इसी दौरान यह तय किया गया कि राम जन्मभूमि न्यास अपने हिस्से की जमीन सौंपने के लिए केंद्र को पत्र लिखे। न्यास ने इसी माह यह पत्र सरकार को लिखा जिसके आधार पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। अब देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर क्या रुख अपनाता है। वैसे मोदी सरकार गैर-विवादित भूमि राम जन्मभूमि न्यास को सौंपने के लिए बजट सत्र में बिल लाने का विकल्प भी खुला रख रही है। मोदी सरकार ने फिलहाल कानूनी रास्ता अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में आदेश दिया था कि 67 एकड़ भूमि मामले में यथास्थिति कायम रहे और उस पर कोई गतिविधि न हो।

नरसिम्हा राव सरकार ने 1991 में जमीन का अधिग्रहण किया था। इसका उद्देश्य मंदिर निर्माण ही था। यद्यपि कानूनी और तकनीकी अड़चनें अब भी हैं। अगर न्यायालय यथास्थिति बनाए रखने का आदेश वापस ले लेता है तो ऐसी स्थिति में राम जन्मभूमि न्यास को जमीन देकर विवादित स्थल के आसपास तमाम तरह के मंदिर से जुड़े निर्माण कार्य शुरू हो सकते हैं। हो सकता है तब तक कोई हल निकल आए। बाकी की विवादित जमीन के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार किया जा सकता है। वैसे सरकार के पास अध्यादेश लाने का पूरा अधिकार है। मोदी सरकार ने राम मंदिर के लिए मास्टर स्ट्रोक चल दिया है। सियासत अब भी जारी है। निर्मोही अखाड़ा केंद्र के कदम से नाराज दिखाई देता है। समस्या यह है कि हम हर बार हिन्दू-मुस्लिम हो जाते हैं। हर बार हिन्दुस्तान को भूल जाते हैं। मुस्लिम पक्षकारों के लिए यह कितना अच्छा होता कि वह स्वयं ही मंदिर निर्माण के लिए भूमि हिन्दुओं को दे देते। अब भी समय है कि अतीत की भूलों को न दोहराया जाए।

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