इस संसार में घर-परिवार, नातेदार, सुख-सम्पत्ति, वैभव सभी कुछ मिलना सहज हो सकता है लेकिन सच्चा संत मिलना बहुत कठिन है। बाबाओं के बारे में काफी कुछ पहले ही लिखा जा चुका है।
”रामचन्द्र कह गये सिया से ऐसा कलियुग आयेगा,
पंडितजन तो दुखी रहेंगे, मूर्ख मौज उड़ाएगा,
अभिमानी आडंबर वाला संत यहां कहलाएगा,
डींग मारने वाला भाई यहां गुरु कहलाएगा,
भक्ष्य-अभक्ष्य को जो नाहिं जाने वो जन पूजा जाएगा,
उलटी-सीधी बात कहे वही ‘बाबा’ कहलायेगा”
लगभग दो दशकों से दिन-रात टीवी चैनलों पर अध्यात्म की धारा बह रही है। चैनलों पर संतों के दर्शन, प्रवचन, सत्संग का लाभ मिल रहा है। शहर-शहर गांव-गांव में कथावाचक संत मिल जायेंगे। कदम-कदम पर योगी मिल जायेंगे लेकिन वास्तविक संत नहीं मिलेंगे। गुरमीत राम रहीम को बलात्कार मामले में 20 वर्ष की सश्रम कैद हो जाने पर रहस्य से जितने पर्दे उठने हैं, उठ रहे हैं। जिम्मेदार हम सब लोग भी हैं। धर्म और अध्यात्म एक-दूसरे के अभिन्न अंग हैं। आध्यात्मिक व्यक्ति धार्मिक है, उसने जो धर्म ग्रहण किया हुआ है, वही धर्म उसके आचरण द्वारा प्रगट होता है। धर्म और चरित्र की व्याख्या करना कठिन होता है।
एक की दृष्टि में धर्म और चरित्र की परिभाषा कुछ और होती है और दूसरे की कुछ और। धर्म हमें सहिष्णु, विनम्र बना शालीनता की सीख देता। परोपकार और परपीड़ा को समझने की राह दिखाता है। हमारा शरीर पंच तत्वों के मिश्रण से संचालित होता है। हम इन्हीं पंच तत्वों को देवतुल्य मानकर इनकी पूजा करते हैं। अफसोस! हम एक मानव को देवतुल्य मानकर उसकी पूजा करने लगे हैं। यही होता है अंधविश्वास। हमारे अंधविश्वास का फायदा ढोंगी बाबा उठाते हैं। जो वीभत्स कथाएं सामने आ रही हैं उनसे धर्मभीरू लोगों को समझ आ जानी चाहिए। आम लोगों की छोडि़ए, राजनीतिज्ञों ने भी ढोंगी बाबाओं को प्रमोट करने के लिये क्या कुछ नहीं किया। राजनीति में बाबाओं की धूम हमेशा से ही रही है। इसी कड़ी में सबसे पहला नाम धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का आता है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से नजदीकियों के कारण धीरेन्द्र ब्रह्मचारी शक्ति का केन्द्र बन गये थे और बड़े-बड़े राजनीतिज्ञों पर भारी पड़ते थे। फिर हुए चन्द्रास्वामी। तत्कालीन प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर और अन्य नेताओं से नजदीकियों के कारण चन्द्रास्वामी बहुत चर्चित हुए। उनकी गाड़ी तो सीधे प्रधानमंत्री आवास के भीतर तक बिना रोक-टोक जाती थी। नरसिम्हा राव से लेकर राजीव गांधी तक और ब्रूनेई के सुल्तान तक उसकी पहुंच थी।
बाद में असलियत सामने आई और तांत्रिक बाबा तो हथियारों का सौदागर निकला। बापू आसाराम को ही देख लीजिये। श्वेत वस्त्र धारण कर उसने कितने पाप किये, इसका सच सामने आ चुका है। आसाराम जेल में है लेकिन जांच की प्रक्रिया इतनी धीमी है कि अदालत को गुजरात सरकार को फटकार लगानी पड़ी है। धर्म के डेरे व्यभिचार के अड्डे बन चुके हैं। हरियाणा के तथाकथित संत रामपाल मामला भी सामने है। किस तरह की किलेबंदी कर उसने हरियाणा पुलिस से टक्कर ली। महिलाओं को संतान देने का धंधा चला रखा था। यद्यपि दो मामलों में रामपाल को बरी कर दिया गया है लेकिन उसके विरुद्घ गंभीर आरोपों की सुनवाई अभी होनी है। एक व्यक्ति गार्ड की नौकरी छोड़कर इच्छाधारी बाबा भीमानंद बनकर दक्षिणी दिल्ली में पुलिस की नाक तले युवतियों के साथ नागिन डांस करता था और उसने अपने आश्रम को व्यभिचार का अड्डा बना डाला था। 2009 में उसे गिरफ्तार किया गया था, लेकिन इसके बाद जमानत पर रिहा हो गया। इसके बाद से ही वह फिर काली करतूतें करने लगा। खुद को इच्छाधारी संत स्वामी भीमानंद महाराज बताने वाले बाबा का असली नाम शिवमूरत द्विवेदी है। जमानत पर आकर उसने जॉब रैकेट चलाया और नौकरी दिलवाने के नाम पर एक लड़की से 12 लाख ठग लिये। पुलिस ने उसे फिर गिरफ्तार कर लिया है।
कोई बाबा कालेधन को सफेद करते पकड़ा जा रहा है तो किसी बाबा का अभिनेत्रियों के साथ अश्लील वीडियो सामने आता है। इसके बावजूद बाबाओं की महिमा खत्म नहीं हो रही। बाबाओं पर ऊपर वाले की लाठी कहर बनकर बरस रही है लेकिन भक्तों को गुरु के अलावा कोई सही नहीं लगता। वास्तव में मानवीय चरित्र होता है कि हर कोई अपने दुखों का अंत बहुत ही सरलता से ढूंढना चाहता है। लोग साधु-संतों, बाबाओं के आगे नतमस्तक होकर अपने दुखों से छुटकारा चाहते हैं। हमने देवरहा बाबा जैसे संत भी देखे हैं जो अपने भक्तों को लात मारकर आशीर्वाद देते थे लेकिन एक मचान पर रहते थे, किसी आलीशान आश्रम में नहीं रहते थे। आज के बाबा इंसान हैं, भगवान या उसके देवदूत नहीं। बाबा बनकर बेशुमार धन-दौलत जोडऩा, जनता से छल करना, स्वयं को आलौकिक शक्तियों से लैस और खुद महान बनने का उपक्रम करना अपराध है। जनता सच को पहचाने और अपने कर्म पर विश्वास करे क्योंकि देश को खतरा बाहर से नहीं, इन बाबाओं से ज्यादा है।