आज हर तरफ एक धार्मिक संस्कारों का वातावरण है। सारे देश में जगह-जगह रामलीलाएं हो रही हंै। नवरात्रे चल रहे हैं। हर घर में मां की पूजा हो रही है। विदेशों में भी जो भारतीय रह रहे हैं वो भी वहां अपनी भारतीय संस्कृति, सभ्यता को कायम रखते हुए बहुत ही अच्छे तरीके से पूजन कर रहे हैं।
अष्टमी पूजन से पहले जब मुझे यह खबर मिली कि प्रसिद्ध पत्रकार सौम्या विश्वनाथन की पन्द्रह साल पहले हुई हत्या का फैसला आया है तो मन को थोड़ी शांति मिली। क्योंकि हमारे देश में कन्याओं को पूजा जाता है परन्तु उन पर अन्याय रुक ही नहीं रहा और मैं हमेशा इस बात पर जोर देती रही हूं कि अगर इसे रोकना है तो जल्दी से जल्दी सजा होनी चाहिए और सजा भी ऐसी हो कि बेटियों को कष्ट देने वालों को सजा तो मिलते ही आगे से कोई उसे करने की कोशिश भी न करे। साथ ही साथ जो सुप्रीम कोर्ट का समलैंगिक शादी पर निर्णय आया है उस पर भी महसूस हुआ कि भारतीय संस्कारों काे जीिवत रखने के लिए यह बहुत जरूरी था। अखबार में विभिन्न लोगों की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। सबने इस निर्णय का स्वागत किया है।
बात फिर वहीं आ जाती है कि भारतीय संस्कार, संस्कृति देश-विदेशों में मशहूर है और हम कहीं न कहीं पिछड़ते जा रहे हैं। ऐसे में अगर जगह-जगह रामलीलाएं हो रही हैं तो वह भारतीय संस्कृति, संस्कारों को जीवित रखने का एक अच्छा प्रयास है और आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन भी करता है। मर्यादा में रहकर हमें जीवन को चलाना है। जीवन की चुनौतियों को स्वीकार करना है। बेटियों की रक्षा करनी है और बेटियों-बेटों को संस्कार भी देने हैं।
व्यक्तिगत तौर पर मेरा यह भी मानना है कि पहले की तुलना में अब बेटियों से इंसाफ तो हो रहा है लेकिन सवाल पैदा होता है कि उनके साथ जुल्म क्यों ? इसके लिए हमें अपने आचरण में भी बदलाव करना होगा। जब हम अपनी खुद की बात करते हैं तो जीवन के हर क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता है। मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे या चर्च हम जहां भी सिर झुकाते हैं हमें मानवता के बारे में पहले सोचना है। कोई भी धर्म हमें एक-दूसरे से अलग करने या खून बहाने की इजाजत नहीं देता तो फिर बेटियों का जब-जब खून बहता है तो इस मामले में इंसाफ तुरंत मिलने की व्यवस्था होनी चाहिए। मेरा यह भी मानना है कि जब हम बेटियों की बात करते हैं और कन्या पूजन के माध्यम से अपनी संस्कृति को मजबूत बनाते हैं तो फिर बेटियों का भविष्य भी सुंदर होना चाहिए। जीवन के हर क्षेत्र में बेटियां आज बेटों से आगे निकल रही हैं। यह कोई कम्पिटीशन तो नहीं लेकिन जिस तरह से जीवनशैली बदल रही है, माता-पिता बेटियों को पढ़ा रहे हैं। खुद लोग बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के सरकारी आह्वान का पालन कर रहे हैं तो फिर भी बेटियों की हत्या या गर्भ में ही बेटियों को मार डालने की परिपाटी को खत्म करने के लिए हम सबको गंभीर प्रयास करने होंगे। इस मामले में आंकडे़ चौंकाने वाले हैं।
जब हम अच्छे आचरण की बात करते हैं तो यही अपेक्षा की जाती है कि बेटियों का लालन-पालन सुंदर ढंग से हो लेकिन बेटियों पर जुल्म को लेकर जब सुर्खियां बनती हैं और जुर्म के आंकड़े सामने आते हैं तो हम सिहर उठते हैं। यद्यपि जुर्म पर नियंत्रण तो हुआ है लेकिन पुराने पेंडिंग केस बहुत ज्यादा हैं। एक बात यह है कि पुलिस के पास जाकर एफआईआर दर्ज कराने को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ी है और इस मामले में पुलिस भी शिकायतें दर्ज कर रही है। शहरों में इसीलिए आजकल महिलाओं के देर रात तक आने-जाने का चलन भी बढ़ा है। मैट्रो हो या दफ्तर, समाज में खुलापन बढ़ा है।
मेरा मानना है कि बेटियां शत-प्रतिशत सुरक्षित रहनी चाहिए। इसी पॉजिटिव इंपेक्ट के साथ वे आगे बढ़ सकती हैं। सरकार और पुलिस कानून व्यवस्था के मोर्चे पर बहुत कुछ कर रही है लेकिन फिर भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। यहां मैं एक बात व्यवस्था से भी जोड़ रही हूं कि सुरक्षा की भावना बेटियों में पैदा करने के लिए बड़े शहरों या छोटे कस्बों में पुलिस टास्क फोर्स की तैनाती रात्रि में भी होनी चाहिए ताकि कामकाजी महिलाओं की स्थिति को और बेहतर बनाया जा सके। यद्यपि दिल्ली पुलिस ने महिलाओं की सुरक्षा और उनकी जागरूकता के लिए बहुत कुछ किया है। कई समाजसेवी संगठन भी लड़कियों की सुरक्षा के प्रति अभियान चला रहे हैं लेकिन मेरा मानना है कि देश में अगर बेटियों से जुल्म को लेकर लाखों केस पेंडिंग हैं तो उन्हें खत्म करने की एक व्यवस्था भी स्थायी तौर पर होनी चाहिए तभी पीडि़तों को समय पर न्याय मिल सकेगा और वही सच्चा इंसाफ होगा और इसे ही सुशासन और अच्छी व्यवस्था का नाम दिया जा सकेगा। हमारी रामलीलाएं और दुर्गा पूजन भी तभी सफल होंगे।