लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

रामसेतु: आस्था फिर जीती

NULL

भारत सौभाग्यशाली है क्योंकि यहां भगवान राम-कृष्ण दो ऐसे महामानवों ने जन्म लिया जो हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति, रीति-रिवाज और जनमानस में इस कदर रच-बस गये और घुल-मिल गये हैं कि इसके बिना हिन्दू धर्म अधूरा और पंगु के समान है। भगवान श्रीराम तो हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक हैं। अगर हिन्दू जाति अब तक जीवित है तो इसका बड़ा कारण यहां राम और कृष्ण का अवतार लेना है। बात शुरू हुई थी सेतु समुद्रम परियोजना से, पहुंच गई राम और रामायण के अस्तित्व पर। जब श्रीराम सेतु पर विवाद खड़ा हुआ था तो सवाल उठाये गये थे कि भगवान राम थे या नहीं? रामायण के पात्र थे या नहीं। तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगों ने तो भगवान राम के अ​िस्तत्व पर ही सवाल उठा दिये थे।

श्रीराम हों या श्रीकृष्ण या फिर मोहम्म या ईसा मसीह, ये किसी वैज्ञानिक प्रमाण के मोहताज नहीं हैं। ये लोगों की भावनाओं और उनकी आस्थाओं के प्रतीक हैं। इन पर सवालिया निशान लगाना ऐसा है जैसे यह कहना कि हवा का रंग क्या होता है? या खुशबू का आकार कैसा है। विडम्बना यह है कि बार-बार इस तरह के सवाल उठते हैं? आस्था पर आघात क्यों लगता है? आस्था पर कुठाराघात करने वाले अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सहारा लेते हैं और इस तरह की कार्रवाई का विरोध करने वाला भी तर्कसंगत नहीं होता। एक दार्शनिक ने कहा था-‘‘तुम्हारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वहां खत्म हो जाती है, जहां मेरी नाक शुरू होती है।’’ यानी किसी के व्यक्तित्व, उसके मन, उसकी भावनाओं पर प्रहार ​किसी तरह भी उचित नहीं ठहराया जा सकता। भारत में हिन्दुओं की आस्था पर लगातार कुठाराघात किया गया। आस्था के प्रश्न उठाने और उसे सतही ढंग से झुठलाने की सारी प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाती रही है। क्योंकि मुद्दों पर परिपक्व तरीके से बहस करने की राजनीतिक परम्परा अभी तक ठीक से स्थापित नहीं हो सकी है।

श्रीराम जन्मभूमि का मसला हो या श्रीराम सेतु का, श्रीराम के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाने की कोई जरूरत ही नहीं थी। संप्रग सरकार के शासन में जब श्रीराम सेतु को तोड़कर सेतु समुद्रम परियोजना तैयार की गई तो आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा था। यूपीए पार्ट-I सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया था कि इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि राम सेतु कोई पूजजीय स्थल है। साथ ही सेतु को तोड़ने की इजाजत मांगी गई थी। राम सेतु को नहर के लिये रोड़ा बताते हुए इसकी चट्टानों को तोड़ने की तैयारी थी। बाद में कड़ी आलोचना के बाद तत्कालीन सरकार ने हलफनामा वापिस ले लिया था। इस परियोजना की इसलिये भी कड़ी आलोचना हुई थी कि इससे हिंद महासागर की जैव विविधता तो प्रभावित होती ही, साथ ही देश के बड़े समुदाय की धार्मिक भावनाएं भी आहत होतीं। अब वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार कर लिया है कि भारत और श्रीलंका के बीच स्थित प्राचीन एडम्स ब्रिज यानी राम सेतु इंसानों ने बनाया था। अमेरिकी पुरातत्ववेत्ताओं ने भी माना कि रामेश्वरम के करीब स्थिति द्वीप पम्बन और श्रीलंका के द्वीप मन्नार के बीच 50 किलोमीटर लंबा अद्भुत पुल कहीं और से लाये पत्थरों से बनाया गया है। लम्बे गहरे जल में चूना-पत्थर की चट्टानों का नेटवर्क दरअसल मानव निर्मित है। सोशल मीडिया पर डिस्कवरी चैनल के इस शो ने तहलका मचा रखा है लेकिन भारतीय ऐतिहासिक सर्वेक्षण (एएसआई) ने इस मामले को सुलझाने के लिये अभी तक कुछ नहीं किया। जो हुआ अब तक सियासत ही हुई।

हमारे प्राचीन ग्रंथ रामायण, महाभारत, स्कंद पुराण, कूर्म पुराण आदि अनेक प्रकरणाें के साथ कालिदास, भवभूति आदि श्रेष्ठ कवियों के ग्रंथों में राम सेतु का स्पष्ट वर्णन है। यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या ये सभी झूठे हैं? यह प्रश्न भी उठता है कि यदि उनके द्वारा वर्णित भौगोलिक स्थान पर पर्वत, नदी, तीर्थ आदि आज भी यथा स्थान हैं तो उनके द्वारा व​​​​िर्णत एवं उनसे जुड़ी कृतियां किस प्रकार झूठी हो सकती हैं। वाल्मीकि रामायण में श्रीराम सेतु निर्माण का विस्तारपूर्वक उल्लेख है। श्रीराम सेना सहित समुद्र तट पर पहुंचे। विभीषण की सलाह पर समुद्र पार करने के लिए मार्ग मांगने के लिये श्रीराम समुद्र तट पर कुशा बिछा कर हाथ जोड़कर लेट गये। इस घटना का उल्लेख महाभारत में भी है। रामेश्वरम में आज भी उस स्थान पर जहां राम लेटे थे, एक विशाल मंदिर है, जिसमें राम की शयन मुद्रा में प्रतिमा विद्यमान है। भारत में अन्यत्र किसी भी स्थान पर राम की लेटी हुई प्रतिमा नहीं है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार समुद्र ने श्रीराम को सलाह देते हुए कहा कि ‘‘सौम्य, आपकी सेना में जो यह नल नामक कांतिमान ‘वानर’ है, साक्षात विश्वकर्मा का पुत्र है। इसे इसके पिता ने यह वर दिया है कि वह उसके ही समान समस्त शिल्पकलाओं में निपुण होगा। प्रभो, आप भी तो विश्व के विश्वकर्मा हैं। अत: नल मेरे ऊपर पुल का निर्माण करे। मैं उस पुल को धारण करूंगा। इसीलिये इस पुल को नल सेतु भी कहा जाता है। दक्षिण भारत की प्रांतीय भाषाओं में रचित रामायणों में भी नल के द्वारा सेतु बांधे जाने का उल्लेख मिलता है।

शास्त्रों में श्रीराम सेतु के आकार का भी वर्णन मिलता है। अब जबकि अमेरिकी वैज्ञानिकों की टीम ने भी इस बात को स्वीकार कर लिया है कि यह सेतु प्रकृति की देन नहीं है बल्कि मानव निर्मित है तो यह भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल उठाने वालों पर बहुत बड़ा तमाचा है। सभी राजनीतिक दलों को यह समझदारी दिखानी चाहिए कि राजनीति के अखाड़े में धर्म पर बहस, मंदिरों मस्जिदों पर बहस हमेशा जटिलता पैदा करती है। इससे साम्प्रदायिक सद्भाव को नुक्सान ही होता है। विजय हमेशा आस्था की होती रही है और आगे भी होगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

thirteen + 7 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।